नई दिल्ली: राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने देश के विभिन्न राज्यों में ठोस कचरा प्रबंधन की स्थिति पर अपनी चिंता व्यक्त की है। हाल ही में गुजरात और ओडिशा द्वारा प्रस्तुत की गई प्रगति रिपोर्ट का निरीक्षण करते हुए NGT के चेयरपर्सन जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव की अध्यक्षता वाली पीठ ने दोनों राज्यों में कचरा प्रबंधन में कमी और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स (STPs) की स्थापना में धीमी गति पर सवाल उठाए हैं। यह कदम सर्वोच्च न्यायालय के ठोस कचरा प्रबंधन नियमों के अनुपालन के निर्देशों के मद्देनज़र उठाए गए हैं।
गुजरात और ओडिशा में ठोस कचरा प्रबंधन की स्थिति
NGT ने बताया कि पिछले साल गुजरात पर ठोस कचरा प्रबंधन की कमी के लिए 2,100 करोड़ रुपये का पर्यावरणीय जुर्माना लगाया गया था। इस जुर्माने की राशि को एक सुरक्षित खाते में रखा गया है ताकि इसका उपयोग पर्यावरणीय सुधार के लिए किया जा सके। ओडिशा पर जुर्माना न लगाकर 1,138 करोड़ रुपये का बजट निर्धारित करने का निर्देश दिया गया है, ताकि वह अपने ठोस कचरा प्रबंधन में सुधार कर सके।
गुजरात की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में प्रतिदिन लगभग 10,317 टन कचरा उत्पन्न होता है, लेकिन इसमें से केवल 8,872 टन का ही प्रोसेसिंग हो पाता है। ऐसे में 1,445 टन कचरा बिना प्रोसेस किए ही रह जाता है, जो कि पर्यावरण के लिए गंभीर समस्या बन सकता है। NGT के न्यायिक सदस्य जस्टिस सुधीर कुमार अग्रवाल और विशेषज्ञ सदस्य ए सेंथिल वेल ने इस मुद्दे पर भी गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता पर जोर दिया।
पर्यावरण पर प्रभाव
गुजरात और ओडिशा जैसे राज्यों में ठोस कचरा प्रबंधन की कमी का पर्यावरण और लोगों के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। बिना प्रोसेस किए हुए कचरे और अनुपचारित सीवेज के कारण वायु, जल और भूमि प्रदूषण बढ़ रहा है, जिससे स्वास्थ्य समस्याएं और पर्यावरणीय संकट गहराते जा रहे हैं। यह प्रदूषण जलस्रोतों को दूषित कर रहा है, जिससे नदियों और तालाबों में रहने वाले जलीय जीवों पर भी संकट मंडरा रहा है।
NGT का मानना है कि ठोस कचरा प्रबंधन और सीवेज ट्रीटमेंट में तेजी से सुधार की आवश्यकता है ताकि पर्यावरणीय संतुलन और मानव स्वास्थ्य की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।