दुनियाभर में हर पांच मिनट में लगभग 50 लोग सांप के काटने का शिकार होते हैं, जिनमें से चार स्थायी रूप से विकलांग हो जाते हैं और एक की मृत्यु हो जाती है। सांप के काटने के बाद का समय बेहद महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि जहर की पहचान न केवल जान बचाने के लिए, बल्कि प्रभावी इलाज के लिए भी आवश्यक है।
पारंपरिक रूप से, सांप के जहर का पता लगाने के लिए एंटीबॉडी-आधारित परीक्षणों का उपयोग होता है, लेकिन ये महंगे, धीमे और परिणामों में असंगत हैं। अब, एक नए शोध ने इस समस्या का एक किफायती और तेज विकल्प प्रस्तुत किया है।
एसीएस बायोमैक्रोमोलेक्यूल्स में प्रकाशित एक शोध पत्र में, शोधकर्ताओं ने ग्लाइकोपॉलिमर-आधारित पराबैंगनी-दृश्यमान (यूवी-विज) परीक्षण विकसित किया है, जो सांप के जहर का तेजी से पता लगाने में सक्षम है। यह परीक्षण विशेष रूप से पश्चिमी डायमंडबैक रैटलस्नेक (क्रोटलस एट्रोक्स) के जहर को पहचानने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि सांप का जहर जटिल होता है, और इसके विषाक्त पदार्थों का पता लगाना चुनौतीपूर्ण है, लेकिन यह जीवन रक्षा के लिए जरूरी है।
इस नई तकनीक में, शोधकर्ताओं ने सिंथेटिक शर्करा (ग्लाइकोपॉलिमर) का उपयोग किया है, जो शरीर में मौजूद उन शर्कराओं की नकल करता है, जिनसे जहर स्वाभाविक रूप से बंधता है। इन सिंथेटिक शर्कराओं को सोने के नैनोकणों के साथ जोड़ा गया है, जिससे जहर के संपर्क में आने पर रंग बदलने वाला एक दृश्यमान परीक्षण तैयार हुआ है। यह प्रणाली न केवल तेज है, बल्कि इसे स्टोर करना आसान है और इसे विशिष्ट जहर के लिए अनुकूलित भी किया जा सकता है।
पश्चिमी डायमंडबैक रैटलस्नेक का जहर गैलेक्टोज-टर्मिनल ग्लाइकेन्स से बंधता है, जो लाल रक्त कोशिकाओं और प्लेटलेट्स को प्रभावित करता है, जिससे रक्त के थक्के बाधित हो सकते हैं या प्रतिरक्षा प्रणाली में हस्तक्षेप हो सकता है। इस परीक्षण ने क्रोटलस एट्रोक्स के जहर को प्रभावी ढंग से पहचाना, लेकिन भारतीय कोबरा (नाजा नाजा) के जहर के साथ यह बंधन नहीं दिखा, जिससे यह तकनीक विभिन्न सांपों के जहर के बीच अंतर करने में सक्षम साबित हुई।
शोधकर्ताओं का कहना है कि यह तकनीक सांप के जहर का पता लगाने में क्रांतिकारी बदलाव ला सकती है। यह न केवल तेज और सस्ती है, बल्कि इसे अन्य सांप प्रजातियों के जहर के लिए भी अनुकूलित किया जा सकता है। यह शोध वारविक विश्वविद्यालय के स्टेम कनेक्ट कार्यक्रम के तहत संभव हुआ है और कोविड-19 का पता लगाने के लिए ग्लाइकोनेनोपार्टिकल मंच पर आधारित है।
यह नई जांच प्रणाली सांप के काटने के इलाज में तेजी लाने और मरीजों के स्वास्थ्य में सुधार करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। शोधकर्ताओं का मानना है कि यह तकनीक भविष्य में और अधिक सांप प्रजातियों के जहर का पता लगाने के लिए विकसित की जा सकती है, जिससे वैश्विक स्तर पर सांप के काटने से होने वाली मौतों और विकलांगता को कम करने में मदद मिलेगी।