दिल्ली में शनिवार सुबह एक घने स्मॉग की चादर छा गई, जिससे शहर के कई इलाकों की हवा की गुणवत्ता ‘बहुत खराब’ श्रेणी में पहुंच गई। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के आंकड़ों के अनुसार, इस खराब हवा के कई कारण होते हैं, लेकिन पड़ोसी राज्यों पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में पराली जलाना एक प्रमुख कारण माना जाता है।
हालांकि, एक चौंकाने वाली बात यह है कि सरकारी आंकड़ों से पता चला है कि शनिवार, 19 अक्टूबर को पराली जलाने का दिल्ली के प्रदूषण में केवल 1.3 प्रतिशत योगदान था। भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (IITM), पुणे द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, पराली जलाने का योगदान रविवार (20 अक्टूबर) को 2.3 प्रतिशत और सोमवार (21 अक्टूबर) को 2.4 प्रतिशत तक हो सकता है।
हालांकि ये प्रतिशत कम लग सकते हैं, लेकिन यह चिंता की बात है क्योंकि अक्टूबर के पहले हिस्से में पराली जलाने का योगदान 1 प्रतिशत से भी कम था, जो अब धीरे-धीरे बढ़ रहा है। 15 अक्टूबर को पराली जलाने का योगदान 1.2 प्रतिशत तक पहुंच गया था।
इसके मुकाबले, दिल्ली के भीतर के वाहनों से निकलने वाले धुएं का सबसे बड़ा योगदान है। 18 अक्टूबर, शुक्रवार को यह 14.2 प्रतिशत था, जो शनिवार को घटकर 11.2 प्रतिशत हो गया। अनुमान है कि आने वाले दिनों में यह थोड़ा और घटकर 10.5 प्रतिशत तक पहुंच सकता है।
दिल्ली के पास के इलाकों से आने वाला प्रदूषण भी स्थिति को और खराब करता है। नोएडा से दिल्ली के प्रदूषण में 10 से 11 प्रतिशत का योगदान रहता है, जबकि गाजियाबाद का हिस्सा 5 से 10 प्रतिशत के बीच है। दिल्ली से लगभग 110 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश का बुलंदशहर भी 6 से 9 प्रतिशत तक योगदान देता है। वहीं, हरियाणा के गुरुग्राम और फरीदाबाद से क्रमशः 1.5 से 3 प्रतिशत और 3 से 5 प्रतिशत प्रदूषण आता है।
दिल्ली में चल रहे निर्माण कार्य और धूल से केवल 2 प्रतिशत और 1 प्रतिशत के करीब प्रदूषण होता है। वहीं, औद्योगिक उत्सर्जन और कचरा जलाने का योगदान भी अपेक्षाकृत कम रहता है।
दिलचस्प बात यह है कि IITM के आंकड़ों में यह भी खुलासा हुआ है कि 32 से 44 प्रतिशत प्रदूषण ऐसे स्रोतों से आता है जिनकी अभी तक पहचान नहीं हो सकी है। यह तथ्य दिल्ली की वायु गुणवत्ता को सुधारने के प्रयासों में एक बड़ी चुनौती के रूप में उभर रहा है और इससे निपटने के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है।
इन अज्ञात स्रोतों का बड़ा योगदान यह दिखाता है कि दिल्ली के प्रदूषण से निपटना कितना जटिल है। प्रदूषण की इस बढ़ती समस्या को हल करने के लिए सरकार और अधिकारियों को और गहराई से सोचने की जरूरत है।