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हाथियों की सुरक्षा के लिए जारी हुई नई हैंडबुक, सड़कों और रेलवे ट्रेक की दुर्घटनाओं आएंगी कमी!

by kishanchaubey
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सरकार के एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2018 से 2023 तक ट्रेनों से टकराने के कारण 75 हाथियों की मौत हो गई। इस साल की शुरुआत में, कॉर्बेट नेशनल पार्क के पास एक ट्रेन ने एक हाथी और उसके बच्चे को टक्कर मार दी, जिससे दोनों की मौत हो गई। कुछ महीने पहले, पिछले साल नवंबर में पश्चिम बंगाल के बुक्सा टाइगर रिजर्व से होकर गुजरने वाले एक रेलवे ट्रैक पर एक बच्चे सहित तीन हाथियों के झुंड के साथ भी ऐसा ही हादसा हुआ। इस तरह की दुखद घटनाएं पूरे देश में ट्रेन और सड़क दुर्घटनाओं के कारण हाथियों की मौतों की बढ़ती घटनाओं को उजागर करती हैं।

एशियाई हाथियों की आवाजाही को बाधित करने वाली खराब ढंग से बनाई गई सड़कों और रेलवे लाइनों के लिए एक नई गाइडबुक जारी की गई है। यह गाइडबुक पर्यावरण के अनुकूल इंजीनियरिंग और तकनीकी समाधान प्रदान करती है ताकि हाथियों को होने वाले नुकसान को कम किया जा सके। एशियाई हाथी खतरे में हैं, यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है। दुनियाभर के जंगलों में सिर्फ 52,000 हाथी बचे हैं, जिनमें से लगभग 30,000 भारत में हैं। हैंडबुक को दो IUCN विशेषज्ञ ग्रुप- कनेक्टिविटी कंजर्वेशन स्पेशलिस्ट और एशियन एलीफेंट स्पेशलिस्ट ग्रुप ने मिलकर बनाया है। अमेरिका के ‘द सेंटर फॉर लार्ज लैंडस्केप कंजर्वेशन’ (CLLC) ने भी इसमें मदद की है।

रेलवे ट्रैक और राजमार्गों को धीरे-धीरे विशाल जीवों के लिए कब्रगाह में बदलने की बढ़ती घटनाओं का जिक्र करते हुए, वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया के कार्यकारी निदेशक और IUCN के पार्षद विवेक मेनन हैंडबुक की प्रस्तावना में लिखते है: “अभी हाथियों के लिए सड़कें और रेलवे लाइनें सुरक्षित बनाने के तरीकों के बारे में विस्तृत दिशानिर्देशों की बहुत जरूरत है। हाथियों के लिए यह समय पहले से ज्यादा मुश्किल है। ये विशाल शरीर और लंबी दूरी तय करने वाले जानवर कई खराब योजनाओं या पर्यावरण के प्रति असंवेदनशील विकास परियोजनाओं का शिकार हुए हैं, जो उन्हें अपने आवासों के बीच घूमने से रोकते हैं और उनकी खाने, पानी और सुरक्षा की बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने में बाधा डालते हैं।”

हाथियों की आवाजाही के लिए बेहतर सुविधा

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यह बात भारत जैसे देशों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है जहां पिछले दो दशकों में वन्यजीवों के अनुकूल बुनियादी ढांचे के बारे में जागरूकता बढ़ी है। एशियन एलीफेंट ट्रांसपोर्ट वर्किंग ग्रुप के सह-अध्यक्ष संदीप कुमार तिवारी ने जोर देकर कहा है कि जब कुछ बड़े रैखिक परिवहन बुनियादी ढांचे की योजना बनाई गई थी, तो वन्यजीवों पर प्रभाव के बारे में पहले कोई चिंता नहीं थी, लेकिन समय के साथ यह सोच बदल गई है। वह कहते हैं, “1987 से अब तक जंगलों से होकर गुजरने वाली रेलवे लाइनों के कारण 360 से ज्यादा हाथियों की मौत हो चुकी है। इसी तरह, कई जगहों पर सिंचाई नहरों ने जानवरों की आवाजाही को पूरी तरह से रोक दिया है, जिससे वे एक छोटे से क्षेत्र में सिमटकर रह गए हैं। इससे इंसानों और जानवरों के बीच संघर्ष बढ़ गया है।”

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