एक नए अध्ययन ने यह स्पष्ट किया है कि जलवायु परिवर्तन और कृषि के बीच एक जटिल दो-तरफा संबंध है। शोध से पता चला है कि कृषि गतिविधियों के कारण होने वाला जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और विलुप्ति के लिए जिम्मेदार है, जबकि जलवायु परिवर्तन खुद भी बाढ़, सूखा और बढ़ते तापमान के जरिए फसलों के उत्पादन को खतरे में डाल रहा है। 1960 के दशक की तुलना में कृषि से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन 18 गुना बढ़ चुका है, जो वैश्विक तापमान वृद्धि का लगभग 30% कारण है। खेतों में छोड़े गए उर्वरकों के कारण बैक्टीरिया द्वारा नाइट्रस ऑक्साइड का निर्माण होता है, जो कार्बन डाइऑक्साइड से 300 गुना अधिक शक्तिशाली है।
शोधकर्ताओं ने नई कृषि पद्धतियों की पहचान की है, जो जलवायु के प्रभावों को कम कर सकती हैं और खाद्य आपूर्ति को स्थिर रख सकती हैं। अध्ययन में पाया गया कि जलवायु परिवर्तन से न केवल कृषि के तरीकों पर असर पड़ता है, बल्कि पानी की उपलब्धता, नाइट्रस ऑक्साइड और मीथेन उत्सर्जन, मिट्टी का क्षरण, और जैव विविधता पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
टिकाऊ कृषि की दिशा में कदम
शोधकर्ताओं का सुझाव है कि मौजूदा टिकाऊ कृषि पद्धतियों और तकनीकों को व्यापक रूप से लागू किया जाना चाहिए, ताकि कृषि के कारण होने वाले उत्सर्जन को कम किया जा सके। इसके लिए सरकारों को सामाजिक-आर्थिक बाधाओं को दूर करना होगा और किसानों के लिए जलवायु-हितैषी समाधान प्रदान करने होंगे।
नई तकनीकों का महत्व
शोध में सटीक खेती, बारहमासी फसल एकीकरण, और जीनोम संपादन जैसी नई तकनीकों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए प्रभावी बताया गया है। इसके साथ ही, जलवायु अनुकूल कृषि और ऑन-फार्म रोबोट जैसी तकनीकों पर आगे के शोध की भी सिफारिश की गई है।
इस अध्ययन के परिणाम बताते हैं कि हमें कृषि के कारण होने वाले पर्यावरणीय नुकसान को कम करने की आवश्यकता है, जबकि खाद्य उत्पादन को भी बनाए रखना जरूरी है। भविष्य में कृषि विधेयकों का विकास करना, जो दोनों उद्देश्यों को पूरा करे, आवश्यक है। किसानों को बेहतर प्रबंधन और संसाधनों की मदद से स्थिरता की ओर अग्रसर किया जा सकता है।