MSP गारंटी कानून: देश में न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) गारंटी कानून को लेकर जानबूझकर भ्रम फैलाया जा रहा है। सरकार समर्थित अर्थशास्त्री और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों से जुड़े कुछ विशेषज्ञ इसे आर्थिक रूप से असंभव और विनाशकारी बता रहे हैं। वे दावा कर रहे हैं कि यदि एमएसपी को कानूनी दर्जा दे दिया जाए, तो सरकार को हर साल 17 लाख करोड़ रुपये से अधिक खर्च करने होंगे, क्योंकि उसे सभी 24 फसलों को एमएसपी पर खरीदने के लिए बाध्य होना पड़ेगा।
सच्चाई: सरकार को पूरी फसल खरीदने की जरूरत नहीं
ये तर्क पूरी तरह भ्रामक हैं। एमएसपी गारंटी कानून का उद्देश्य सरकार द्वारा पूरी कृषि उपज खरीदना नहीं, बल्कि बाजार में एमएसपी से कम दाम पर होने वाली बिक्री को रोकना है। यदि एमएसपी लागू किया जाता है, तो किसानों को उनकी फसलों का उचित मूल्य मिलेगा, जिससे कृषि आय में वृद्धि होगी, उपभोग बढ़ेगा और फसल विविधीकरण को बढ़ावा मिलेगा।
एमएसपी की लागत: सरकार के लिए बड़ा बोझ नहीं
वर्तमान में कपास की सरकारी खरीद का एक व्यावहारिक मॉडल मौजूद है, जहां सरकार केवल तब खरीदती है जब बाजार में दाम एमएसपी से कम हो जाते हैं। क्रिसिल मार्केट इंटेलिजेंस एंड एनालिटिक्स के अनुसार, 2023 में सरकार को इस गारंटी के लिए वास्तविक लागत मात्र 21,000 करोड़ रुपये आई थी। 2025 तक यह लागत 30,000 करोड़ रुपये के आसपास रहने की संभावना है, जिसके लिए सरकार को लगभग 6 लाख करोड़ रुपये की कार्यशील पूंजी की जरूरत होगी।
कृषि उत्पादन और आयात: क्या सरकार झूठ बोल रही है?
सरकार दावा करती है कि देश में अनाज का भरपूर उत्पादन हो रहा है, लेकिन वास्तविकता कुछ और है। 2023-24 में भारत ने
1.31 लाख करोड़ रुपये का तिलहन, 6.64 मिलियन मीट्रिक टन दलहन आयात किया
गेहूं के रिकॉर्ड उत्पादन के झूठे दावों और निर्यात प्रतिबंध के बावजूद, सरकार 2023 और 2024 में 37 मिलियन मीट्रिक टन के लक्ष्य के मुकाबले केवल 26.2 और 26.6 मिलियन मीट्रिक टन ही खरीद पाई।
सरकार किसानों को क्यों नुकसान पहुंचा रही है?
सरकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के तहत एमएसपी की जगह A2+FL लागत मॉडल का इस्तेमाल कर रही है, जिससे किसानों को हर साल 72,000 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हो रहा है।
इसके अलावा, ओपन मार्केट सेल स्कीम (OMSS) के तहत सरकार व्यापारियों और उद्योगों को कम कीमत पर अनाज बेच रही है, जिससे किसानों को सीधा नुकसान होता है। 11 फरवरी 2025 को जारी सरकार की रिपोर्ट के अनुसार:
चावल 550 रुपये प्रति क्विंटल कम दाम पर 2,250 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बेचा गया।
गेहूं 900 रुपये प्रति क्विंटल कम दाम पर 2,325 रुपये प्रति क्विंटल के रिजर्व मूल्य पर बेचा गया।
इस रणनीति से सरकार जानबूझकर बाजार में कृत्रिम मंदी पैदा कर रही है, जिससे किसानों की फसल औने-पौने दाम पर बिकती है।
किसानों को 14 लाख करोड़ रुपये का नुकसान
इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल रिलेशंस (ICRIER) और ऑर्गनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (OECD) के अध्ययन के अनुसार, सरकार की पक्षपाती नीतियों की वजह से भारतीय किसानों को 2022 में 14 लाख करोड़ रुपये और 2000-2017 के बीच 45 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।
बिचौलियों और साहूकारों का खेल
भारत में फसल उत्पादन घरेलू मांग से कम है, लेकिन फिर भी किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य नहीं मिलता। इसका कारण बिचौलियों और साहूकारों द्वारा बनाई गई कृत्रिम मंदी है।
RBI रिपोर्ट 2025 के अनुसार:
किसानों को फलों और सब्जियों की उपभोक्ता कीमत का केवल 30% ही मिलता है।
रबी फसलों में किसानों को 40-67% ही मिलता है, जबकि बिचौलिये 70% मुनाफा हड़प जाते हैं।
क्या एमएसपी कानून ही किसानों का असली समाधान है?
एमएसपी गारंटी कानून लागू करने से किसानों को उनकी मेहनत का पूरा मूल्य मिलेगा और वे साहूकारों व बिचौलियों के चंगुल से बच सकेंगे। यह कानून किसानों को मजबूरी में फसल बेचने की स्थिति से बाहर निकालेगा और कृषि को एक लाभकारी व्यवसाय बनाएगा।