प्लास्टिक प्रदूषण दुनियाभर में एक गंभीर समस्या बन चुका है, और अब इसका असर इंसानी शरीर में भी गहराई से देखा जा रहा है। हाल ही में हुए एक वैज्ञानिक अध्ययन में यह सामने आया है कि इंसानी दिमाग में माइक्रोप्लास्टिक्स के सूक्ष्म कण तेजी से जमा हो रहे हैं। यह शोध प्रतिष्ठित विज्ञान पत्रिका “नेचर मेडिसिन” में प्रकाशित हुआ है, जिसमें बताया गया है कि मस्तिष्क के फ्रंटल कॉर्टेक्स हिस्से में प्लास्टिक के कणों की मौजूदगी अन्य अंगों की तुलना में अधिक पाई गई है।
शोध में क्या सामने आया?
वैज्ञानिकों ने 1997 से 2024 के बीच किए गए पोस्टमॉर्टम के आधार पर निष्कर्ष निकाला कि माइक्रोप्लास्टिक्स और नैनोप्लास्टिक्स की मात्रा शरीर के कई अंगों में बढ़ रही है। इस अध्ययन में लीवर, किडनी और मस्तिष्क के नमूनों का विश्लेषण किया गया और पाया गया कि मस्तिष्क में प्लास्टिक के महीन कण सबसे अधिक मात्रा में मौजूद थे।
- 2016 में लिए गए नमूनों की तुलना में 2024 के नमूनों में माइक्रोप्लास्टिक्स का स्तर कहीं अधिक था।
- डिमेंशिया से पीड़ित लोगों के मस्तिष्क में स्वस्थ लोगों की तुलना में छह गुना अधिक माइक्रोप्लास्टिक्स पाए गए।
- 1997 से 2013 के बीच लिए गए मस्तिष्क के नमूनों की तुलना में हाल के वर्षों में प्लास्टिक के कणों का स्तर कई गुना बढ़ गया है।
कैसे हो रही है माइक्रोप्लास्टिक्स की एंट्री?
माइक्रोप्लास्टिक्स, जो आकार में पांच मिलीमीटर से भी छोटे होते हैं, हवा, पानी, भोजन और रोजमर्रा के प्लास्टिक उत्पादों के जरिए इंसानी शरीर में पहुंच रहे हैं।
- प्लास्टिक की बोतलों और पैकिंग में मौजूद कण भोजन और पानी के साथ शरीर में चले जाते हैं।
- हवा में मौजूद प्लास्टिक कण सांस के जरिए शरीर में प्रवेश कर सकते हैं।
- समुद्री भोजन, खासकर मछलियों और झींगों में भी माइक्रोप्लास्टिक्स पाए जाते हैं।
- सिंथेटिक कपड़ों से निकलने वाले कण भी शरीर में प्रवेश कर सकते हैं।
स्वास्थ्य पर प्रभाव
वैज्ञानिकों का मानना है कि माइक्रोप्लास्टिक्स इंसानी मस्तिष्क, लीवर, किडनी, रक्त और अन्य अंगों को नुकसान पहुंचा सकता है। हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि यह बीमारियों का सीधा कारण बनता है या नहीं, लेकिन कई शोधों में इसके संभावित खतरों को लेकर चेतावनी दी गई है।
- मस्तिष्क में अधिक प्लास्टिक जमा होने से डिमेंशिया और न्यूरोलॉजिकल बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है।
- माइक्रोप्लास्टिक्स शरीर की हार्मोन प्रणाली को प्रभावित कर सकता है, जिससे हार्मोन असंतुलन की समस्या हो सकती है।
- कुछ वैज्ञानिक अध्ययनों में पाया गया है कि प्लास्टिक में मौजूद कुछ केमिकल्स कैंसर के कारक हो सकते हैं।
- यह पुरुषों और महिलाओं दोनों की प्रजनन क्षमता को प्रभावित कर सकता है।
- सांस के जरिए शरीर में जाने वाले माइक्रोप्लास्टिक्स दिल और फेफड़ों पर बुरा असर डाल सकते हैं।
कैसे बचा जा सकता है?
- प्लास्टिक बोतलों और पैकिंग में रखे खाद्य पदार्थों के इस्तेमाल से बचें।
- सिंथेटिक कपड़ों के बजाय प्राकृतिक फाइबर वाले कपड़े पहनें।
- ताजा और जैविक भोजन को प्राथमिकता दें।
- उच्च गुणवत्ता वाले वाटर फिल्टर का उपयोग करें ताकि पानी में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक्स को हटाया जा सके।
- प्लास्टिक कचरे को कम करने के लिए पुन: उपयोग योग्य और प्राकृतिक उत्पादों का अधिक से अधिक इस्तेमाल करें।