एक चौंकाने वाले नए वैज्ञानिक शोध ने खुलासा किया है कि माइक्रोप्लास्टिक अब सिर्फ पर्यावरण नहीं, बल्कि हमारे दिमाग के लिए भी गंभीर खतरा बन चुके हैं। ये अति सूक्ष्म प्लास्टिक कण दिमाग में सूजन, ऑक्सीडेटिव तनाव और कोशिकाओं को सीधा नुकसान पहुंचाकर अल्जाइमर और पार्किंसन जैसी न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारियों को बढ़ावा दे रहे हैं।
ऑस्ट्रेलिया की यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी सिडनी और अमेरिकी वैज्ञानिकों द्वारा मॉलिक्यूलर एंड सेलुलर बायोकेमिस्ट्री जर्नल में प्रकाशित इस रिव्यू स्टडी में बताया गया है कि एक वयस्क व्यक्ति हर साल करीब 250 ग्राम माइक्रोप्लास्टिक निगल लेता है – यानी एक डिनर प्लेट भर प्लास्टिक! ये कण समुद्री भोजन, नमक, पैक्ड फूड, प्लास्टिक की बोतलों का पानी, टी-बैग, सिंथेटिक कपड़ों के रेशों, घर की धूल और कार्पेट से शरीर में पहुंचते हैं।
शोधकर्ताओं ने पांच प्रमुख तरीकों से माइक्रोप्लास्टिक के दिमाग पर हमले को समझाया है:
- दिमाग की इम्यून कोशिकाएं इन्हें दुश्मन समझकर लगातार सूजन पैदा करती हैं।
- रिएक्टिव ऑक्सीजन स्पीशीज (ROS) बढ़ाकर ऑक्सीडेटिव तनाव उत्पन्न करते हैं।
- ब्लड-ब्रेन बैरियर को कमजोर कर हानिकारक पदार्थों को दिमाग में घुसने देते हैं।
- माइटोकॉन्ड्रिया को खराब कर न्यूरॉन्स में ऊर्जा (ATP) उत्पादन रोकते हैं।
- सीधे न्यूरॉन्स को नुकसान पहुंचाकर कोशिकाएं मरने लगती हैं।
इससे अल्जाइमर में बीटा-एमायलॉयड और टाउ प्रोटीन का जमाव बढ़ता है, जबकि पार्किंसन में अल्फा-सिन्यूक्लिन जमा और डोपामाइन न्यूरॉन्स को नुकसान होता है।
वैज्ञानिकों की सलाह: प्लास्टिक कंटेनर, कटिंग बोर्ड, पैक्ड फूड, सिंथेटिक कपड़े और ड्रायर का इस्तेमाल तुरंत कम करें। कांच, स्टील, लकड़ी और प्राकृतिक कपड़ों को प्राथमिकता दें।
शोधकर्ता कहते हैं – अभी और अध्ययन जरूरी हैं, लेकिन मौजूदा सबूत इतने गंभीर हैं कि प्लास्टिक प्रदूषण को अब जन-स्वास्थ्य आपातकाल मानना चाहिए
