Microplastic: माइक्रोप्लास्टिक आज हमारी जिंदगी का हिस्सा बन चुके हैं, जिन्हें पूरी तरह से हटाना आसान नहीं है। ये छोटे-छोटे प्लास्टिक कण धरती के लगभग हर कोने में पाए जाते हैं। अंटार्कटिका की बर्फ से लेकर महासागरों की गहराइयों तक, पहाड़ों, मिट्टी और यहां तक कि जिस हवा में हम सांस लेते हैं, उसमें भी इनकी मौजूदगी पाई जाती है।
माइक्रोप्लास्टिक और हमारा भोजन-पानी
हमारा खाना और पीने का पानी भी माइक्रोप्लास्टिक से सुरक्षित नहीं है। वैज्ञानिकों ने इन कणों को मानव रक्त, फेफड़ों, दिमाग और अन्य महत्वपूर्ण अंगों तक में पहुंचते हुए पाया है। हमारी रोजमर्रा की चीजें, जैसे टूथपेस्ट, क्रीम, पैकेजिंग सामग्री, कपड़े और घरेलू सामान, माइक्रोप्लास्टिक के स्रोत हो सकते हैं।
माइक्रोप्लास्टिक और बैक्टीरिया का संबंध
हाल ही में वैज्ञानिकों ने यह पाया है कि माइक्रोप्लास्टिक बैक्टीरिया को एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति अधिक प्रतिरोधी बना सकता है। बोस्टन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में बताया कि जब बैक्टीरिया माइक्रोप्लास्टिक के संपर्क में आते हैं, तो वे अधिक ताकतवर और खतरनाक हो जाते हैं। इसका सबसे बड़ा खतरा शरणार्थी शिविरों और आर्थिक रूप से कमजोर इलाकों में देखने को मिल सकता है, जहां प्लास्टिक कचरा अधिक होता है और बीमारियां तेजी से फैलती हैं। यह शोध ‘जर्नल एप्लाइड एंड एनवायरनमेंटल माइक्रोबायोलॉजी’ में प्रकाशित हुआ है।
माइक्रोप्लास्टिक क्या है?
जब प्लास्टिक के बड़े टुकड़े टूटकर छोटे कणों में बदल जाते हैं, तो उन्हें माइक्रोप्लास्टिक कहा जाता है। कपड़ों और अन्य वस्तुओं से निकलने वाले माइक्रोफाइबर भी इसका एक रूप हैं। आमतौर पर, एक माइक्रोमीटर से लेकर पांच मिलीमीटर तक के प्लास्टिक कणों को माइक्रोप्लास्टिक माना जाता है।
एंटीबायोटिक प्रतिरोध और बढ़ता खतरा
बैक्टीरिया कई कारणों से एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति प्रतिरोध विकसित करते हैं। इनमें सबसे अहम कारण है एंटीबायोटिक दवाओं का अत्यधिक और अनियंत्रित उपयोग। इसके अलावा, बैक्टीरिया का माइक्रोएनवायरनमेंट भी इसमें अहम भूमिका निभाता है। बोस्टन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पाया कि माइक्रोप्लास्टिक के संपर्क में आने वाले बैक्टीरिया अधिक मजबूत हो जाते हैं और एंटीबायोटिक दवाओं का उन पर असर कम हो जाता है।
शोधकर्ताओं ने पाया कि माइक्रोप्लास्टिक की सतह पर बैक्टीरिया आसानी से चिपक जाते हैं और फिर एक ‘बायोफिल्म’ बनाते हैं। यह बायोफिल्म बैक्टीरिया के लिए सुरक्षा कवच का काम करती है, जिससे एंटीबायोटिक्स उन्हें खत्म नहीं कर पातीं। अन्य सतहों की तुलना में माइक्रोप्लास्टिक पर बनने वाली बायोफिल्म ज्यादा मजबूत और मोटी होती है।
भविष्य में बढ़ेगा खतरा
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) की रिपोर्ट के अनुसार, एंटीबायोटिक प्रतिरोध से हर साल 49.5 लाख लोगों की मौत हो रही है। यदि यह समस्या यूं ही बढ़ती रही, तो 2050 तक यह आंकड़ा एक करोड़ तक पहुंच सकता है। विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, एंटीबायोटिक प्रतिरोध के कारण 2030 तक 2.4 करोड़ लोग गरीबी में जा सकते हैं, और इसका वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी गंभीर प्रभाव पड़ेगा।
क्या किया जा सकता है?
- प्लास्टिक कचरे को कम करें – जितना संभव हो, प्लास्टिक उत्पादों का उपयोग सीमित करें और बायोडिग्रेडेबल विकल्प अपनाएं।
- स्वच्छता और जागरूकता बढ़ाएं – खासकर उन क्षेत्रों में जहां प्लास्टिक कचरे का स्तर अधिक है।
- शोध और नियमों को मजबूत करें – सरकार और वैज्ञानिक समुदाय को मिलकर इस पर अधिक शोध करने और सख्त नियम लागू करने की जरूरत है।