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पंजाब में मक्के की फसल: भूजल संकट को बढ़ाने वाला एक नया खतरा

by kishanchaubey
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पंजाब राज्य, जो हरित क्रांति का अग्रदूत रहा है, आज गंभीर भूजल संकट का सामना कर रहा है। मक्के की फसल, जो वसंत ऋतु में किसानों द्वारा तेजी से उगाई जाती है, इस संकट को और भयावह बना रही है। पहले, किसानों ने पराली जलाने की समस्या को कम करने के उद्देश्य से लघु और मध्यम अवधि की धान की किस्मों को अपनाया, लेकिन इसके अप्रत्याशित परिणामस्वरूप भूजल संकट और गहराने लगा है।

पराली जलाने की समस्या से भूजल संकट की ओर

पराली जलाने से होने वाले वायु प्रदूषण से निपटने के लिए राज्य ने ऐसी धान की किस्मों को बढ़ावा दिया, जिनकी खेती में समय कम लगता है, जैसे पीआर 124, पीआर 126, और पीआर 131 (पंजाब कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित)। इस कदम से किसानों को धान की खेती के लिए अतिरिक्त समय मिला और वे रबी (सर्दियों) की फसल से पहले खेत तैयार करने के लिए पराली जलाने की आवश्यकता से बचने लगे। हालाँकि, इस बदलाव का असर जल संसाधनों पर पड़ा। मक्का, जिसे 18 से 20 बार सिंचाई की आवश्यकता होती है, भूजल की खपत को बढ़ा रहा है, जबकि पंजाब का भूजल स्तर पहले से ही गंभीर रूप से घट रहा है।

मक्के की फसल और पानी की खपत

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मार्च-अप्रैल और जून के बीच किसान मक्के की फसल की बुवाई करते हैं और इस प्रक्रिया में बड़ी मात्रा में पानी का उपयोग होता है। बरनाला जिले के किसान सुखविंदर सिंह के अनुसार, मक्का लगाने का कारण यह है कि गेहूं की कटाई के बाद उन्हें धान की बुवाई के लिए अतिरिक्त समय मिल जाता है। हालाँकि, मक्का की खेती के लिए अत्यधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है, जिससे भूजल के भंडार पर दबाव बढ़ता है।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की चेतावनी और जल संसाधन प्रबंधन की चुनौतियां

जून 2022 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, पंजाब में केवल 17 साल तक चलने योग्य भूजल बचा है। इस गंभीर स्थिति को देखते हुए पंजाब सरकार ने नहरों को पक्का करने का कदम उठाया है ताकि पानी की बर्बादी कम हो, लेकिन यह कदम स्थानीय निवासियों को चिंतित कर रहा है। मिसाल सतलुज के जत्थेदार देविंदर सिंह सेखों का कहना है कि नहरों का पानी राजस्थान की ओर बह जाता है और इस पानी की जवाबदेही नहीं है। यदि नहरों को पक्का किया गया, तो भूजल रिचार्ज की प्रक्रिया पर भी असर पड़ेगा, जिससे संकट और बढ़ सकता है।

पंजाब के जल संकट के समाधान के लिए तत्काल नीति और जल प्रबंधन की आवश्यकता है। जल संरक्षण, फसल चक्र में परिवर्तन, और जल वितरण की नीतियों में सुधार आवश्यक है ताकि जल संकट को और गंभीर होने से रोका जा सके।

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