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मध्य प्रदेश में पराली जलाने का नया रिकॉर्ड: 2024 में सबसे अधिक घटनाएं दर्ज

by kishanchaubey
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MP Agriculture News: मध्य प्रदेश ने 2024 में पराली जलाने के मामले में एक अनचाहा रिकॉर्ड बना लिया है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) के कंसोर्टियम फॉर रिसर्च ऑन एग्रोइकोसिस्टम मॉनिटरिंग एंड मॉडलिंग फ्रॉम स्पेस (CREAMS) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, 15 सितंबर से 30 नवंबर 2024 के बीच राज्य में धान की पराली जलाने की 16,360 घटनाएं दर्ज की गईं। यह देश में हुई कुल घटनाओं का 44% है।

पंजाब को पीछे छोड़ पहला स्थान

इतिहास में पहली बार, मध्य प्रदेश ने पंजाब को पीछे छोड़ दिया है। 2024 में पंजाब में पराली जलाने की 10,909 घटनाएं दर्ज की गईं, जबकि मध्य प्रदेश में यह संख्या अधिक रही। CREAMS सैटेलाइट रिमोट सेंसिंग तकनीक के माध्यम से छह राज्यों में पराली जलाने की निगरानी करता है।

30 नवंबर 2024 को जारी रिपोर्ट के अनुसार, देश के शीर्ष 10 सबसे अधिक प्रभावित जिलों में से 6 जिले मध्य प्रदेश के हैं। श्योपुर जिले में 2,508 घटनाएं दर्ज की गईं, जिससे यह पहले स्थान पर आ गया। इसके बाद पंजाब का संगरूर (1,725 घटनाएं) और फिर मध्य प्रदेश के अन्य जिले जैसे होशंगाबाद, दतिया, गुना, अशोकनगर, रायसेन और जबलपुर शामिल हैं।

पराली जलाने की घटनाओं में बढ़ोतरी

2023 की तुलना में पंजाब में पराली जलाने की घटनाओं में 300% की कमी आई है, जबकि मध्य प्रदेश में यह 25% बढ़ी हैं। 2023 में राज्य में 12,500 घटनाएं दर्ज हुई थीं, जबकि पंजाब में 36,663। 2022 में भी मध्य प्रदेश (11,737 घटनाएं) पंजाब (49,922 घटनाएं) के बाद दूसरे स्थान पर था।

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धान की खेती का बढ़ता आकर्षण

मध्य प्रदेश में धान की खेती का दायरा तेजी से बढ़ रहा है। विशेष रूप से श्योपुर जिले में किसान तेजी से धान की ओर आकर्षित हो रहे हैं। डाउन टू अर्थ द्वारा किए गए सर्वेक्षण में यह सामने आया कि किसान मुख्य रूप से बासमती धान की 1718 किस्म उगा रहे हैं, जिसकी खरीदी मुख्य रूप से पंजाब और हरियाणा के व्यापारी कर रहे हैं।

सिलपुरी गांव के किसान हरिओम यादव बताते हैं कि पहले यहां सोयाबीन और उड़द की खेती होती थी, लेकिन अब 70% भूमि पर धान उगाया जा रहा है। इसी तरह कराहल ब्लॉक के कलमी गांव में भी पिछले दो वर्षों में धान की खेती में तेजी आई है।

धान की खेती क्यों बढ़ रही है?

  1. अधिक लाभ: एक बीघा धान की खेती पर 12-15 हजार रुपये खर्च होते हैं, जबकि 10 क्विंटल धान की पैदावार होती है। 3,400 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से प्रति बीघा 34,000 रुपये की आय होती है, जिससे 20,000 रुपये का शुद्ध लाभ मिलता है।
  2. सोयाबीन की कम पैदावार: सोयाबीन की पैदावार 3-5 क्विंटल प्रति बीघा होती है, जिससे अधिकतम 20,000 रुपये मिलते हैं। धान की खेती ज्यादा फायदेमंद साबित हो रही है।
  3. बढ़ती जल उपलब्धता: श्योपुर में पिछले कुछ वर्षों में सामान्य से 100% अधिक बारिश हो रही है, जिससे धान की खेती को बढ़ावा मिला है।
  4. बेहतर सिंचाई सुविधाएं: किसानों ने बड़े पैमाने पर बोरवेल खोदे हैं, जिससे सिंचाई की समस्या कम हुई है।

धान का बढ़ता रकबा और उत्पादन

2018-19 में श्योपुर जिले में 43,127 हेक्टेयर भूमि पर धान की खेती होती थी, जो 2024 में बढ़कर 85,000 हेक्टेयर हो गई है। कृषि विज्ञान केंद्र के प्रमुख वैज्ञानिक एस.एल. गुर्जर के अनुसार, अगले साल यह रकबा 1 लाख हेक्टेयर तक पहुंच सकता है।

धान का उत्पादन 2018-19 में 1,68,612 टन था, जो 2022-23 में 2,86,847 टन तक पहुंच गया। श्योपुर मंडी में धान की आवक 2018-19 में 2,514 क्विंटल थी, जो 2023-24 में बढ़कर 12,40,225 क्विंटल हो गई।

भविष्य में संभावित चुनौतियां

  1. भूजल संकट: धान की खेती में अधिक पानी की जरूरत होती है, जिससे भूजल स्तर गिर सकता है।
  2. पराली जलाने की समस्या: उचित प्रबंधन न होने से प्रदूषण की समस्या और बढ़ सकती है।
  3. अन्य फसलों का संकट: उड़द, सोयाबीन, ज्वार और तिल की खेती में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है।

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