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भारत में कोविड-19 के कारण जीवन प्रत्याशा में मामूली गिरावट, 50 वर्षों की प्रगति रुकी

by kishanchaubey
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नई दिल्ली, 6 जून 2025: भारत ने पिछले पांच दशकों में जन्म के समय जीवन प्रत्याशा में उल्लेखनीय प्रगति की है, जो 1970 के दशक में 49.7 वर्ष थी और 2016-20 तक बढ़कर 70 वर्ष हो गई। हालांकि, कोविड-19 महामारी ने इस स्थिर वृद्धि को अचानक रोक दिया।

नमूना पंजीकरण प्रणाली (एसआरएस) के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, 2017-21 के दौरान जीवन प्रत्याशा मामूली रूप से घटकर 69.8 वर्ष हो गई। यह 0.2 वर्ष की गिरावट भले ही छोटी लगे, लेकिन यह एक महत्वपूर्ण जनसांख्यिकीय संकेतक है, जो देश की स्वास्थ्य प्रणाली पर महामारी के प्रभाव को दर्शाता है।

ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में गिरावट यह गिरावट शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में देखी गई। शहरी क्षेत्रों में जीवन प्रत्याशा 2016-20 में 73.2 वर्ष से घटकर 2017-21 में 72.9 वर्ष हो गई, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह 68.6 वर्ष से 68.5 वर्ष रही। यह उलटफेर 2020 और 2021 में मृत्यु दर में उल्लेखनीय वृद्धि के साथ मेल खाता है, जो कोविड-19 के प्रभाव को दर्शाता है।

जीवन प्रत्याशा की गणना कैसे होती है? जन्म के समय जीवन प्रत्याशा यह अनुमान लगाती है कि कोई व्यक्ति औसतन कितने वर्ष जीवित रहेगा, यह मानते हुए कि वर्तमान मृत्यु दर स्थिर रहेगी। भारत में इसके लिए नमूना पंजीकरण प्रणाली (एसआरएस) का उपयोग किया जाता है, जो प्रजनन और मृत्यु दर के संकेतकों का व्यापक सर्वेक्षण है। एसआरएस डेटा से प्राप्त आयु विशिष्ट मृत्यु दर (एएसडीआर) का उपयोग करके भारत एमओआरटीपीएके 4 सॉफ्टवेयर के माध्यम से जीवन तालिकाएं तैयार करता है। यह सॉफ्टवेयर संयुक्त राष्ट्र द्वारा विकसित मृत्यु दर मापने वाला पैकेज है। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लिए पंचवर्षीय औसत एएसडीआर की गणना लिंग के आधार पर अलग-अलग की जाती है ताकि परिवर्तनशीलता कम हो और अनुमान विश्वसनीय हों।

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महामारी का प्रभाव विशेषज्ञों का मानना है कि कोविड-19 के कारण स्वास्थ्य सेवाओं पर पड़ा दबाव और मृत्यु दर में वृद्धि इस गिरावट का प्रमुख कारण है। हालांकि, यह गिरावट अस्थायी हो सकती है, और स्वास्थ्य नीतियों में सुधार के साथ जीवन प्रत्याशा फिर से बढ़ सकती है। सरकार और स्वास्थ्य विशेषज्ञ अब इस दिशा में नीतिगत हस्तक्षेप पर ध्यान दे रहे हैं ताकि भविष्य में ऐसी गिरावट को रोका जा सके।

यह खबर भारत के जनसांख्यिकीय परिदृश्य में कोविड-19 के प्रभाव को रेखांकित करती है और स्वास्थ्य प्रणाली को और मजबूत करने की आवश्यकता पर जोर देती है।

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