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किसान उत्पादक कंपनियों के सामने दस्तावेज़ीकरण और संसाधनों की कमी बड़ी चुनौती

by reporter
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एक नए अध्ययन से पता चला है कि भारत में किसान उत्पादक कंपनियों (FPCs) को पंजीकरण के दौरान कई दस्तावेज़ी प्रक्रियाओं का सामना करना पड़ता है। लगभग 36 प्रतिशत FPCs ने कहा कि उन्हें पंजीकरण के लिए बहुत सारे दस्तावेज़ों की आवश्यकता पड़ी, जबकि 22 प्रतिशत ने कई कार्यालयों के चक्कर लगाने की बात कही।

प्रबंधन में मजबूती, लेकिन कौशल और विपणन में कमी
यह अध्ययन नेशनल एसोसिएशन फॉर फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गनाइजेशंस (NAFPO) और डेवलपमेंट इंटेलिजेंस यूनिट (DIU) द्वारा किया गया था और ‘स्टेट ऑफ द सेक्टर रिपोर्ट 2024’ में प्रकाशित हुआ। इसमें कहा गया कि लगभग 98 प्रतिशत FPCs में एक CEO नियुक्त था, जो प्रबंधन को मजबूत बनाता है। लेकिन 24 प्रतिशत FPCs को ज्ञान, कौशल या विपणन के लिए कोई सहायता नहीं मिली।

बीमा और कृषि उपकरणों की कमी
फसल बीमा और कृषि उपकरणों तक पहुंच में कमी भी सामने आई। रिपोर्ट के अनुसार, 50 प्रतिशत FPCs के पास फसल बीमा नहीं है और 61 प्रतिशत के पास कृषि उपकरण नहीं हैं, जो किसान उत्पादक कंपनियों के विकास में बाधा बन रहा है।

प्रमुख डेटा और संसाधनों तक पहुंच
अध्ययन में छह राज्यों – आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, और महाराष्ट्र – के किसानों से डेटा एकत्रित किया गया। सर्वेक्षण में 67 FPCs के उत्तर शामिल थे। लगभग 85 प्रतिशत FPCs के पास अपना जीएसटी लाइसेंस था, 56 प्रतिशत को NGOs से और 29 प्रतिशत को सरकार से सहायता प्राप्त हुई।

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प्रबंधन और तकनीकी सहायता की स्थिति
रिपोर्ट के अनुसार, 98 प्रतिशत FPCs में CEO थे, 76 प्रतिशत में एकाउंटेंट, और 85 प्रतिशत में एक स्वतंत्र निदेशक था जो कंपनियों को नियम-कानून और बाजार संपर्क में सहायता करता है। 71 प्रतिशत FPCs ने पूर्णकालिक चार्टर्ड अकाउंटेंट रखा था और 58 प्रतिशत ने Tally और SimplyKhata जैसे सॉफ़्टवेयर का उपयोग करके अपने खातों को मैनेज किया।

प्रदर्शन की निगरानी में 71 प्रतिशत FPCs मैन्युअल तरीके का इस्तेमाल करती हैं, जबकि 21 प्रतिशत ने सॉफ्टवेयर का उपयोग किया। इसके अलावा, 58 प्रतिशत FPCs को सरकारी संस्थानों से सहायता मिली, 40 प्रतिशत को NGOs से, और 11 प्रतिशत को क्लस्टर बेस्ड बिज़नेस ऑर्गनाइजेशन (CBBO) से समर्थन मिला।

ऑनलाइन विपणन में कमी और बुनियादी ढांचे की स्थिति
सर्वेक्षण से पता चला कि केवल 10 प्रतिशत FPCs ऑनलाइन विपणन में सक्रिय हैं, जिससे यह जाहिर होता है कि या तो उनके पास ऑनलाइन चैनल का पर्याप्त ज्ञान नहीं है या वे इस दिशा में आगे नहीं बढ़ पाए हैं।
इंफ्रास्ट्रक्चर की बात करें तो, 34 प्रतिशत FPCs के पास वेयरहाउस की सुविधा थी, 62 प्रतिशत के पास उर्वरक लाइसेंस था, 53 प्रतिशत के पास कीटनाशक लाइसेंस और 52 प्रतिशत के पास मंडी लाइसेंस था।

मुख्य निष्कर्ष और सुझाव
अध्ययन के लेखकों अनीश कुमार और अनीशा बाली ने लिखा कि “98 प्रतिशत FPCs में CEO की उपस्थिति यह दिखाती है कि निदेशक मंडल (BOD) सक्षम नेतृत्व के लिए काम कर रहा है।” हालांकि, दस्तावेज़ीकरण और लाइसेंसिंग की समस्याएं बनी हुई हैं, जो सदस्य किसानों को बुनियादी सेवाएं देने में बाधा डाल रही हैं। लेखकों का मानना है कि यदि अनुकूल परिवेश दिया जाए, तो ये चुनौतियां दूर की जा सकती हैं।

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