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कूनो में चीतों की वापसी: नई चुनौतियां और भविष्य की योजनाएं

by kishanchaubey
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Cheetahs became extinct in India : भारत में चीते 1950 के दशक में विलुप्त हो गए थे। 17 सितंबर 2022 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान (KNP) में अफ्रीकी चीतों को छोड़कर उन्हें फिर से भारत में बसाने की प्रक्रिया शुरू की। यह परियोजना 2009 में शुरू हुई थी, लेकिन इसे 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने स्थगित कर दिया था। बाद में 2020 में इसे मंजूरी दी गई।

परियोजना पर विवाद

चीतों की वापसी की परियोजना को लेकर वन्यजीव संरक्षण समुदाय में काफी आलोचना हुई।

  • कुछ लोगों ने कहा कि चीता भारत की विरासत का हिस्सा नहीं है।
  • गलत प्रजाति के चीतों को चुने जाने का दावा किया गया।
  • यह आरोप लगाया गया कि अन्य प्रजातियों के संरक्षण के लिए आवंटित धन इस परियोजना पर खर्च हो रहा है।
  • सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन और कूनो का गलत चयन भी विवाद का हिस्सा रहा।

इसके अलावा, कूनो को एशियाई शेरों के लिए आरक्षित माना गया था, लेकिन चीते वहां पहले आ गए।

चीतों का आगमन और वर्तमान स्थिति

सितंबर 2022 से अब तक नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से कुल 20 चीते भारत लाए गए हैं। इनमें से कई मर गए, लेकिन कूनो में अब तक 12 शावकों का जन्म हुआ है।

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  • वर्तमान में कूनो में 24 चीते हैं।
  • सभी चीते अभी तक बाड़ों (बोमा) में ही सीमित हैं। ये बाड़े 50 से 150 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले हैं।
  • खुले जंगल में छोड़े गए चीतों को या तो वापस पकड़ना पड़ा या उनकी अप्रत्याशित कारणों से मौत हो गई।

चीतों को खुले में छोड़ने की कोशिशें

4 दिसंबर 2024 को, अंतरराष्ट्रीय चीता दिवस पर, दो चीतों (अग्नि और वायु) को परीक्षण के तौर पर खुले में छोड़ा गया। यदि यह प्रयास सफल रहता है, तो अन्य चीतों को भी छोड़ा जाएगा।

परियोजना के विस्तार की योजना

अब परियोजना को कूनो से आगे बढ़ाने की योजना है।

  • मध्य प्रदेश के गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य और राजस्थान के मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में चीते बसाए जाएंगे।
  • गुजरात के कच्छ की प्रसिद्ध बन्नी घासभूमि में चीता प्रजनन केंद्र को मंजूरी दी गई है।
  • एक व्यापक चीता गलियारा (चीता कॉरिडोर) विकसित करने की योजना है, जो मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के 21 जिलों में फैलेगा। यह गलियारा कूनो, गांधी सागर और मुकुंदरा हिल्स को जोड़ने का काम करेगा।

चुनौतियां और चिंताएं

इस परियोजना के सामने कई चुनौतियां हैं:

  1. पर्याप्त जंगल का अभाव:
    हजारों वर्ग किलोमीटर में फैले इस चीता गलियारे के लिए निरंतर वन क्षेत्र की उपस्थिति की पुष्टि आवश्यक है।
  2. शिकार का आधार (प्रे बेस):
    • कूनो में शिकार की उपलब्धता 2013 में पर्याप्त मानी गई थी, लेकिन अब स्थिति गंभीर है।
    • 2013 में प्रति वर्ग किलोमीटर 69.36 चीतल थे, जो 2024 में घटकर 17.5 रह गए हैं।
    • गांधी सागर और मुकुंदरा हिल्स में तो स्थिति और भी खराब है।

आगे की राह

  • शिकार के आधार को बढ़ाने के लिए उपाय किए जाने चाहिए।
  • चीता परियोजना के सफल प्रबंधन के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाना होगा।
  • स्थानीय समुदायों को इस परियोजना में शामिल कर उनकी भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी।

चीतों की वापसी न केवल भारत के वन्यजीव संरक्षण के इतिहास में एक महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि यह पर्यावरण और जैव विविधता संरक्षण के प्रति हमारी प्रतिबद्धता का भी प्रतीक है। यदि यह परियोजना सफल होती है, तो यह भारत में विलुप्त प्रजातियों को पुनर्स्थापित करने के लिए एक मील का पत्थर साबित हो सकती है।

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