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Krishna River Pollution : भारत की तीसरी सबसे लंबी नदी कृष्णा, जो महाराष्ट्र के महाबलेश्वर से शुरू होकर आंध्र प्रदेश के कृष्णापटनम तक 1,400 किमी तक बहती है, आज गंभीर प्रदूषण का सामना कर रही है। यह नदी महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के लिए सिंचाई, बिजली उत्पादन और पीने के पानी का मुख्य स्रोत है। लेकिन अब यह नदी औद्योगिक कचरे और गंदे पानी के कारण अपनी जीवनदायिनी भूमिका खोती जा रही है।
प्रदूषण के मुख्य कारण
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (NIT) वारंगल और NIT सूरथकल द्वारा किए गए अध्ययन के प्रारंभिक निष्कर्ष बताते हैं:
- 427 औद्योगिक इकाइयां (रसायन, धातु, इंजीनियरिंग और खाद्य प्रसंस्करण) नदी में कचरा बहा रही हैं।
- रासायनिक और धातु उद्योग: 31.38% प्रदूषण के लिए जिम्मेदार।
- इंजीनियरिंग उद्योग: 22%।
- कपड़ा, चीनी मिलें, खनन आदि भी प्रदूषण बढ़ा रहे हैं।
- इंसानों की गतिविधियां जैसे कपड़े धोना और स्नान करना स्थिति को और खराब कर रही हैं।
प्रदूषण का प्रभाव
- नदी का पानी गंदगी, डीजल, सिंथेटिक रसायनों और औद्योगिक कचरे से दूषित हो गया है।
- कई मछलियां जैसे गोल्डन महसीर (टोर) और नेइली विलुप्त हो चुकी हैं।
- केवल गंबुसिया जैसी मछलियां, जो प्रदूषित पानी में जीवित रह सकती हैं, बची हैं।
- तेलंगाना में, फार्मास्युटिकल और सिंथेटिक रसायन उद्योगों का प्रदूषण नागार्जुनसागर को प्रभावित कर रहा है, जो सिंचाई और बिजली उत्पादन का प्रमुख स्रोत है।
- आंध्र प्रदेश में, नदी के पानी में जैव रासायनिक ऑक्सीजन मांग (BOD) 3.3 लाख किग्रा प्रतिदिन तक पहुंच गई है। यह पानी की गुणवत्ता का एक प्रमुख संकेतक है।
- महाराष्ट्र में, सांगली के हरिपुर घाट, वाई और पंढरपुर के भीमा क्षेत्र में शहरी सीवेज और तेल से प्रदूषण गंभीर रूप ले चुका है।
- कर्नाटक में, एक पॉलीफाइबर उत्पादन इकाई 33,000 क्यूबिक मीटर गंदा पानी प्रतिदिन नदी में छोड़ रही है।
प्रदूषण के स्थान और आंकड़े
- तेलंगाना: फार्मास्युटिकल और रसायन उद्योगों का प्रदूषण नागार्जुनसागर परियोजना को प्रभावित कर रहा है।
- आंध्र प्रदेश: कर्नूल में एक कागज उद्योग प्रतिदिन 35,000-40,000 क्यूबिक मीटर गंदा पानी छोड़ता है।
- महाराष्ट्र: सांगली, वाई और पंढरपुर क्षेत्रों में तेल और शहरी कचरे का प्रभाव।
- कर्नाटक: पॉलीफाइबर फैक्ट्री द्वारा भारी मात्रा में गंदा पानी नदी में छोड़ा जा रहा है।
नदी को बचाने का कार्ययोजना
- एनआईटी वारंगल के प्रोफेसर एन वी उमामहेश के नेतृत्व में कृष्णा नदी बेसिन प्रबंधन और अध्ययन केंद्र ने नदी को पुनर्जीवित करने और पानी की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए एक व्यापक कार्ययोजना तैयार करने की योजना बनाई है।
- अंतिम रिपोर्ट तीन साल में नेशनल रिवर कंजर्वेशन डायरेक्टरेट को सौंपी जाएगी।
- विशेषज्ञ जल प्रवाह के पैटर्न और प्रदूषण के स्रोतों की पहचान करेंगे।
सरकार की जिम्मेदारी और उपाय
- केंद्र सरकार ने इस अध्ययन के लिए 6.3 करोड़ रुपये स्वीकृत किए हैं।
- प्रदूषण रोकने के लिए नदी में औद्योगिक कचरा बहाने पर कड़े प्रतिबंध लगाए जाने चाहिए।
- इंसानी गतिविधियों जैसे कपड़े धोना और स्नान करने पर भी निगरानी जरूरी है।