ISFR 2023 Report : भारत सरकार भले ही देश में कुल वन और वृक्ष आवरण में वृद्धि देखकर संतोष कर रही हो, लेकिन इस वृद्धि का अधिकांश हिस्सा पारंपरिक जंगलों के बाहर के क्षेत्रों में हुआ है। वहीं, पश्चिमी घाट, पूर्वोत्तर और मैंग्रोव जैसे जैव विविधता से भरपूर क्षेत्रों में प्राकृतिक घने जंगलों का क्षय या गैर-वन उद्देश्यों के लिए उपयोग हो रहा है।
प्राकृतिक जंगलों का ह्रास
वन सर्वेक्षण ऑफ इंडिया (FSI) की ISFR 2023 रिपोर्ट के अनुसार, भारत में प्राकृतिक घने जंगलों की कुल वृद्धि मात्र 7 वर्ग किमी हुई है, जबकि जंगलों के बाहर 149 वर्ग किमी का इजाफा हुआ है।
जंगलों के विभिन्न प्रकारों की स्थिति
- रिकॉर्डेड फॉरेस्ट एरिया (RFA):
- मिड-डेंस फॉरेस्ट (MDF) और ओपन फॉरेस्ट (OF) क्षेत्रों में 1,200 वर्ग किमी की कमी आई।
- बहुत घने जंगलों (VDF) में 2,400 वर्ग किमी की वृद्धि दर्ज की गई।
- गैर-रिकॉर्डेड फॉरेस्ट एरिया (Non-RFA):
- 64 वर्ग किमी घने जंगल और 416 वर्ग किमी मिड-डेंस फॉरेस्ट का ह्रास हुआ।
- गुजरात और बिहार ने प्राकृतिक जंगलों के बाहर सबसे ज्यादा नए जंगल जोड़े।
जंगलों के ह्रास के कारण
रिपोर्ट में निम्न कारणों को जिम्मेदार ठहराया गया है:
- मानवीय अतिक्रमण।
- प्राकृतिक आपदाएं जैसे तूफान, बाढ़ और भूस्खलन।
- छोटे चक्र वाले वृक्षारोपण की कटाई और अन्य प्रकार की लकड़ी कटाई।
- वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत प्राप्त भूमि अधिकार।
घने जंगलों का क्षरण
पिछले एक दशक (2011-2021) में लगभग 93,000 वर्ग किमी जंगल ओपन फॉरेस्ट, स्क्रब या नॉन-फॉरेस्ट में बदल गए।
- 40,709 वर्ग किमी क्षेत्र में, बहुत घने और मिड-डेंस जंगल ओपन फॉरेस्ट में परिवर्तित हो गए।
- 46,707 वर्ग किमी क्षेत्र नॉन-फॉरेस्ट में बदल गया।
प्रभावित राज्य:
मध्य प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, तेलंगाना और महाराष्ट्र में बड़े प्राकृतिक जंगलों का ह्रास हुआ है।
पश्चिमी घाट और पूर्वोत्तर की स्थिति
- पश्चिमी घाट:
- पिछले 10 वर्षों में 58.22 वर्ग किमी जंगल कम हो गए।
- हालांकि, यहां बहुत घने जंगलों में 3,465.12 वर्ग किमी की वृद्धि हुई, लेकिन मिड-डेंस और ओपन फॉरेस्ट में क्रमशः 1,043.23 और 2,480.11 वर्ग किमी की कमी आई।
- पूर्वोत्तर:
- यह क्षेत्र भारत के कुल भू-भाग का 7.98% है, लेकिन यहां देश के कुल वन आवरण का 21.08% हिस्सा है।
- फिर भी, 327.30 वर्ग किमी जंगल (वृक्ष आवरण सहित) कम हो गए।
- मिजोरम को छोड़कर सभी राज्यों ने अपने जंगल क्षेत्रों में कमी दर्ज की।
जंगल की आग से नुकसान
- 2023 में जंगल की आग ने 34,562 वर्ग किमी क्षेत्र को प्रभावित किया।
- सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्र:
- आंध्र प्रदेश: 5,286.76 वर्ग किमी।
- महाराष्ट्र: 4,095.04 वर्ग किमी।
- तेलंगाना: 3,983.28 वर्ग किमी।
- पश्चिमी हिमालय में आग की घटनाओं में भारी वृद्धि हुई:
- जम्मू-कश्मीर में 18 गुना,
- हिमाचल प्रदेश में 10 गुना,
- उत्तराखंड में 6 गुना वृद्धि।
कारण:
विशेषज्ञों ने एल नीनो प्रभाव और मानसून की कमी को जिम्मेदार ठहराया है। सूखी सर्दी और गर्मियों में तापमान में रिकॉर्ड वृद्धि ने जंगल की आग के लिए अनुकूल परिस्थितियां पैदा कीं।
कार्बन संरण क्षमता में गिरावट
जंगलों के क्षरण के कारण भारत की कुल कार्बन संरण क्षमता में 636.50 मिलियन टन की कमी आई।
समुदाय और वन संरक्षण प्रयास
रिपोर्ट बताती है कि वन अग्नि अलर्ट सेवा के उपयोगकर्ताओं की संख्या बढ़ने से मैदानी क्षेत्रों में आग की घटनाओं में कमी आई। हालांकि, हिमालयी राज्यों में यह कमी नहीं देखी गई।
सुधार के उपाय और भविष्य की रणनीति
- जंगल संरक्षण के लिए सख्त कानून:
- वन अधिकार अधिनियम के तहत दिए गए भूमि अधिकारों की निगरानी।
- जंगल कटाई पर प्रतिबंध और वृक्षारोपण को बढ़ावा।
- स्थानीय समुदायों की भागीदारी:
- जंगलों के संरक्षण में समुदायों को प्रोत्साहित करना।
- आग रोकने के लिए स्थानीय स्तर पर निगरानी और प्रशिक्षण।
- जंगलों की पुनर्बहाली:
- क्षतिग्रस्त क्षेत्रों में वृक्षारोपण और संरक्षण कार्यक्रम।
- जैव विविधता हॉटस्पॉट क्षेत्रों की सुरक्षा।
भारत में जंगलों का संरक्षण न केवल पर्यावरणीय संतुलन के लिए बल्कि कार्बन उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए भी आवश्यक है। इस दिशा में सरकार और समुदाय को मिलकर ठोस कदम उठाने की जरूरत है।