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क्या विकासशील देशों में प्लास्टिक ईंधन बन रहा है नई आपदा ?

by kishanchaubey
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आज के आधुनिक युग में जहां दुनिया विकास का दावा कर रही है, वहीं एक कड़वी सच्चाई यह भी है कि करोड़ों लोग अब भी भोजन पकाने के लिए ऐसे ईंधन का उपयोग कर रहे हैं जो न केवल उनके स्वास्थ्य बल्कि पर्यावरण के लिए भी घातक है। लकड़ी, कोयला और केरोसिन का उपयोग तो दशकों से किया जा रहा है, लेकिन अब एक नया और खतरनाक ट्रेंड उभर रहा है—प्लास्टिक को जलाकर खाना पकाना

प्लास्टिक जलाने का बढ़ता खतरा

कर्टिन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं की नई रिपोर्ट के अनुसार, विकासशील देशों में स्वच्छ ईंधन की कमी और पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों की घटती उपलब्धता के कारण लोग प्लास्टिक को जलाकर खाना पकाने लगे हैं।

शोध में प्रमुख निष्कर्ष:

  • अफ्रीका, एशिया और दक्षिण अमेरिका के कई गरीब देशों में गैस और बिजली के बढ़ते दामों के कारण लोग प्लास्टिक को ईंधन के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं।
  • शहरों के विस्तार के कारण लकड़ी और चारकोल जैसे परंपरागत ईंधन मिलना कठिन होता जा रहा है।
  • कचरा प्रबंधन की खराब व्यवस्था के कारण प्लास्टिक कचरे की मात्रा लगातार बढ़ रही है, जिसे लोग जलाने लगे हैं।

कितने लोग प्रभावित हैं?

अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के अनुसार, दुनिया भर में 200 करोड़ से अधिक लोग साफ-सुथरा ईंधन नहीं पा रहे हैं और लकड़ी, कोयला या केरोसिन का उपयोग कर रहे हैं।

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इन जीवाश्म ईंधनों के जलने से निकलने वाला धुआं हर साल लगभग 37 लाख लोगों की जान ले रहा है और लाखों लोगों को गंभीर बीमारियों की चपेट में ला रहा है।

प्लास्टिक जलाने के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव

डॉ. बिशाल भारद्वाज (कर्टिन इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी ट्रांजिशन, CIET) का कहना है कि प्लास्टिक जलाने से कई खतरनाक गैसें और रसायन निकलते हैं, जैसे:

  • डाइऑक्सिन
  • फ्यूरान
  • हैवी मेटल्स

ये सभी तत्व हवा में घुलकर फेफड़ों की बीमारियों और कैंसर जैसी गंभीर समस्याओं का कारण बन सकते हैं। विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों के लिए यह समस्या ज्यादा खतरनाक है क्योंकि वे दिनभर घर के भीतर रहते हैं और जहरीली हवा में सांस लेते हैं।

शहरीकरण और बढ़ती समस्या

शहरों के अनियंत्रित विकास और झुग्गी-झोपड़ियों के बढ़ते विस्तार ने इस समस्या को और भी जटिल बना दिया है।

  • 2050 तक विश्व की दो-तिहाई आबादी शहरों में रहने लगेगी।
  • 2060 तक प्लास्टिक का उपयोग तीन गुना बढ़ने की संभावना है।
  • कई विकासशील देशों में कचरा प्रबंधन की सुविधाएं न होने के कारण लोग प्लास्टिक कचरे को जलाने लगे हैं।

प्लास्टिक जलाने के प्रमाण

  • नाइजीरिया में 13% घरों में खाना पकाने के लिए कचरा जलाया जाता है।
  • इंडोनेशिया में मिट्टी और भोजन के नमूनों में प्लास्टिक जलाने से बने जहरीले पदार्थों के प्रमाण मिले हैं।

समाधान क्या हो सकता है?

सीआईईटी निदेशक प्रोफेसर पेटा एशवर्थ का कहना है कि इस समस्या से निपटने के लिए निम्नलिखित कदम उठाने होंगे:

  1. स्वच्छ ईंधन पर सब्सिडी – गरीब परिवारों को सस्ती दरों पर गैस और बिजली जैसी ऊर्जा सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं।
  2. कचरा प्रबंधन में सुधार – शहरी क्षेत्रों में प्लास्टिक कचरे को जलाने के बजाय पुनर्चक्रण (recycling) को बढ़ावा दिया जाए।
  3. जागरूकता अभियान – लोगों को प्लास्टिक जलाने के खतरों के बारे में शिक्षित किया जाए।
  4. विकल्प विकसित करना – गरीब परिवारों के लिए किफायती और सुरक्षित ईंधन विकल्प उपलब्ध कराए जाएं।

क्या सरकारें इस समस्या को गंभीरता से ले रही हैं?

दुर्भाग्य से, इस मुद्दे को अक्सर अनदेखा किया जाता है क्योंकि यह मुख्य रूप से झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले गरीब लोगों को प्रभावित करता है। कई सरकारें अभी तक इस खतरे को रोकने के लिए प्रभावी नीतियां नहीं बना पाई हैं।

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