20 सितंबर, 2025 को दुनिया भर में अंतर्राष्ट्रीय रेड पांडा दिवस मनाया जा रहा है, जिसका उद्देश्य इस संकटग्रस्त प्रजाति की घटती संख्या और संरक्षण की आवश्यकता के प्रति लोगों को जागरूक करना है।
रेड पांडा, जिन्हें “फायर फॉक्स” भी कहा जाता है, अपनी लाल-भूरी फर, झबरीदार पूंछ और आकर्षक चेहरे के कारण बेहद खास हैं। ये नेपाल, भारत, भूटान, म्यांमार और चीन के पहाड़ी वनों में पाए जाते हैं।
हालांकि, जंगलों का विनाश, अवैध शिकार और पालतू व्यापार के कारण इनकी संख्या अब केवल 2,500 से 10,000 के बीच रह गई है।
रेड पांडा दिवस की शुरुआत
इस दिवस की शुरुआत 2010 में नेपाल की गैर-लाभकारी संस्था “रेड पांडा नेटवर्क” ने की थी। इसका मकसद लोगों को रेड पांडा के महत्व और उनके संरक्षण की जरूरत के बारे में जागरूक करना है।
हर साल सितंबर के तीसरे शनिवार को यह दिन मनाया जाता है, और आज यह अभियान वैश्विक स्तर पर फैल चुका है।
रेड पांडा की खासियत
रेड पांडा का नाम भले ही पांडा हो, लेकिन ये विशालकाय पांडा से अलग हैं और रैकून व नेवले से अधिक समानता रखते हैं। इनकी पेड़ों पर चढ़ने की क्षमता, बांस खाने की आदत और घने जंगलों में रहने की खूबी इन्हें अनोखा बनाती है। इनके चेहरे पर सफेद धारियां और लाल-भूरी फर इन्हें बेहद आकर्षक बनाती हैं।
खतरे और चुनौतियां
आईयूसीएन ने रेड पांडा को लुप्तप्राय प्रजाति घोषित किया है। अनुमान के मुताबिक, इनकी संख्या 10,000 से भी कम है, और कुछ आकलनों में केवल 2,500 जंगली रेड पांडा बचे हैं।
- आवास का नुकसान: जंगलों की कटाई, खेती, सड़क और निर्माण कार्यों से इनका प्राकृतिक आवास नष्ट हो रहा है।
- अवैध शिकार और व्यापार: इनके सुंदर फर और पूंछ के कारण इन्हें शिकार किया जाता है और अवैध रूप से पालतू जानवर के रूप में बेचा जाता है।
- घटती आबादी: पिछले 20 वर्षों में इनकी संख्या 50% तक कम हो चुकी है।
नेपाल के वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो के अनुसार, 90% वन्यजीव अपराध दर्ज नहीं होते, जिसका सीधा असर रेड पांडा जैसे जीवों पर पड़ता है।
