गुजरात के जामनगर में अंबानी परिवार द्वारा बनाया गया वंतारा पशु-पक्षी संरक्षण केंद्र इन दिनों सुर्खियों में है, लेकिन इस बार कारण सकारात्मक नहीं है। वंतारा को लेकर एक अंतरराष्ट्रीय विवाद खड़ा हो गया है, जिसके केंद्र में है नीला मकाऊ (Blue Macaw), एक ऐसा पक्षी जो ब्राजील का राष्ट्रीय प्रतीक है और 2000 के दशक से विलुप्त माना जाता है।
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वंतारा यात्रा के दौरान उनके हाथ में यह पक्षी देखा गया, जिसके बाद ब्राजील की पर्यावरण एजेंसियां हैरान और नाराज हैं। आइए, इस पूरे मामले को आसान शब्दों में समझते हैं और जानते हैं कि क्या सवाल उठ रहे हैं और क्या है इसका सच।
वंतारा क्या है?
वंतारा को अंबानी परिवार ने एक पशु-पक्षी संरक्षण केंद्र के रूप में बनाया है। इसे दुनिया का सबसे बड़ा निजी चिड़ियाघर या रिहैबिलिटेशन सेंटर कहा जा रहा है, जहां हजारों जानवरों और पक्षियों को रखने की योजना है। हालांकि, इसे आधिकारिक तौर पर चिड़ियाघर का दर्जा नहीं दिया गया है, क्योंकि भारत में चिड़ियाघर के लिए अलग कानून और अनुमतियां जरूरी हैं।
वंतारा का दावा है कि यह विलुप्त हो रहे प्रजातियों को बचाने और उनके संरक्षण के लिए काम करता है। लेकिन अब इसकी कार्यप्रणाली और कानूनी वैधता पर सवाल उठ रहे हैं।
नीला मकाऊ और विवाद की शुरुआत
नीला मकाऊ (वैज्ञानिक नाम: Cyanopsitta spixii) ब्राजील का राष्ट्रीय पक्षी है, जो अमेजन के जंगलों में पाया जाता था। यह पक्षी अपनी नीली चमकदार पंखों के लिए मशहूर था, लेकिन 1970 के दशक से इसकी चोरी और अवैध तस्करी के कारण यह 2000 के दशक में पूरी तरह विलुप्त हो गया।
हाल ही में, जब प्रधानमंत्री मोदी वंतारा गए, तो उनके हाथ में नीला मकाऊ देखा गया। यह तस्वीर दुनिया भर के मीडिया में पहुंची, और ब्राजील के अखबारों ने इसे प्रमुखता से छापा।

ब्राजील की प्रतिक्रिया:
- ब्राजील की पर्यावरण एजेंसियां हैरान हैं कि एक विलुप्त पक्षी वंतारा में कैसे पहुंचा।
- उनका कहना है कि अगर यह पक्षी वहां है, तो इसे अवैध तरीके से लाया गया होगा, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत विलुप्त प्रजातियों को इस तरह ले जाना अपराध माना जाता है।
- ब्राजील ने सवाल उठाया कि क्या भारत के इस निजी केंद्र ने उनके राष्ट्रीय पक्षी को गैर-कानूनी ढंग से हासिल किया है।
खबर की शुरुआत और पत्रकारिता
इस विवाद की जानकारी सबसे पहले परंजय गुहा ठाकुरता, एक वरिष्ठ भारतीय पत्रकार, के ट्वीट से सामने आई। उन्होंने ब्राजील के एक अखबार की रिपोर्ट का जिक्र किया, जिसे सुजाना कैमार्गो नाम की पत्रकार ने लिखा था। सुजाना पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों पर लंबे समय से काम कर रही हैं।
वे ब्राजील की रेडियो और टीवी पत्रकारिता में जानी-मानी हस्ती हैं और 2007-2011 तक स्विट्जरलैंड में रहकर ब्राजील के लिए लेखन करती थीं। अब वे वाशिंगटन डीसी में रहती हैं और वैश्विक पर्यावरण मुद्दों पर लिखती हैं।
सुजाना की इस रिपोर्ट ने ब्राजील और दक्षिण अमेरिका में हलचल मचा दी। उन्होंने वंतारा के प्रशासन से मार्च 2025 में कई सवाल पूछे थे, जैसे:
- नीला मकाऊ वंतारा में कैसे पहुंचा?
- क्या इसे लाने के लिए कानूनी अनुमति ली गई थी?
- वंतारा में कितने और विलुप्त प्रजातियों के जानवर हैं?
शुरुआत में वंतारा प्रशासन ने जवाब देने का वादा किया, लेकिन बाद में वे टालमटोल करते रहे। इसके बाद सुजाना ने अपनी रिपोर्ट प्रकाशित की, जिससे यह मामला और बड़ा हो गया।
क्या कहते हैं अंतरराष्ट्रीय कानून?
विलुप्त या संकटग्रस्त प्रजातियों के संरक्षण के लिए दुनिया में CITES (Convention on International Trade in Endangered Species of Wild Fauna and Flora) नाम का एक अंतरराष्ट्रीय समझौता है। भारत समेत कई देश इसके हस्ताक्षरकर्ता हैं। इस समझौते के तहत:
- विलुप्त या संकटग्रस्त प्रजातियों को एक देश से दूसरे देश में ले जाना सख्त मना है।
- अगर कोई ऐसा करता है, तो इसे तस्करी और अपराध माना जाता है।
- भारत में भी वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत ऐसी प्रजातियों को रखने या ले जाने पर 3 से 7 साल की सजा हो सकती है।
ब्राजील का आरोप है कि अगर नीला मकाऊ वंतारा में है, तो इसे गैर-कानूनी तरीके से लाया गया होगा। इससे भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि पर भी सवाल उठ रहे हैं, खासकर जब इस मामले में प्रधानमंत्री का नाम अनजाने में जुड़ गया।
नीला मकाऊ वंतारा में कैसे पहुंचा?
रिपोर्ट्स के मुताबिक, नीला मकाऊ को वैज्ञानिक तरीके से प्रयोगशाला में पुनर्जनन (reproduction) के जरिए विकसित किया गया था। इसके लिए जर्मनी की एक निजी संस्था ACTP (Association for Conservation of Threatened Parrots) ने ब्राजील सरकार के साथ समझौता किया था। इस समझौते के तहत:
- ACTP को नीले मकाऊ के डीएनए और अन्य वैज्ञानिक सामग्री दी गई थी।
- 2020 में प्रयोगशाला में कुछ नीले मकाऊ पक्षी विकसित किए गए।
- इन पक्षियों को ब्राजील के जंगलों में पुनर्वास (rehabilitation) के लिए तैयार किया जाना था।
लेकिन, ब्राजील का दावा है कि ACTP ने कुछ पक्षियों को निजी तौर पर बेच दिया, जिनमें से कुछ वंतारा पहुंचे। एक जोड़े की कीमत लगभग 3 करोड़ रुपये बताई जा रही है। ब्राजील ने जर्मनी और ACTP से इसकी शिकायत की है कि उनके राष्ट्रीय पक्षी को बिना अनुमति के बेचा गया। अनुमान है कि वंतारा में करीब 24 नीले मकाऊ हो सकते हैं।
वंतारा पर और क्या सवाल?
- कानूनी वैधता:
- क्या नीले मकाऊ और अन्य विलुप्त प्रजातियों को भारत लाना कानूनी था?
- क्या भारतीय कस्टम सेवा ने इनके आयात को मंजूरी दी? अगर हां, तो क्या प्रक्रिया थी?
- क्या वंतारा के पास ऐसी प्रजातियों को रखने की अनुमति है?
- प्रकृति के लिए अनुपयुक्त स्थान:
- वंतारा जामनगर में एक रिफाइनरी के पास है, जिसे CPCB ने प्रदूषित क्षेत्र घोषित किया है।
- गुजरात का गर्म और शुष्क मौसम नीले मकाऊ जैसे पक्षियों के लिए उपयुक्त नहीं है, जो अमेजन के नम जंगलों में रहते थे।
- वंतारा का क्षेत्रफल भी इतना बड़ा नहीं है कि हजारों जानवरों और पक्षियों को प्राकृतिक माहौल दिया जा सके।
- निजीकरण का सवाल:
- क्या वंतारा प्रकृति की संपदा को निजी संपत्ति बनाने की कोशिश है?
- क्या यह एक चिड़ियाघर के नाम पर धनवानों की शौक पूर्ति का केंद्र बन रहा है?
- जर्मन अखबार Süddeutsche Zeitung के मुताबिक, वंतारा में 10,000 से 39,000 जानवर रखने की योजना है, जो लंदन के सबसे पुराने चिड़ियाघर (1828 में बना, 8,000 जानवर) से भी ज्यादा है।
- अन्य देशों की शिकायतें:
- दक्षिण अफ्रीका ने भी वंतारा पर सवाल उठाए हैं। उनके मुताबिक, वहां से शेर, चीते और बाघ जैसे जानवर भी लाए गए हैं, जो CITES के तहत संरक्षित हैं।
- लैटिन अमेरिका और अफ्रीकी देशों ने इसे प्रकृति के साथ खिलवाड़ बताया है।
मीडिया और खबरों पर नियंत्रण?
रिपोर्ट्स के मुताबिक, वंतारा से जुड़ी नकारात्मक खबरों को भारत में दबाने की कोशिश की गई है। पिछले महीने हिमालय साउथ एशियन ने इस मुद्दे को उठाया था, लेकिन बाद में भारत के कई मीडिया पोर्टल्स और निजी वेबसाइट्स से वंतारा से जुड़ी खबरें हटा दी गईं। पत्रकारों का दावा है कि यह अंबानी परिवार की ताकत और प्रभाव का नतीजा है। पहले भी उनके परिवार से जुड़ी एक किताब को ऑस्ट्रेलिया से भारत में प्रतिबंधित करवाया गया था।
प्रधानमंत्री का नाम क्यों चर्चा में?
प्रधानमंत्री मोदी की वंतारा यात्रा और नीले मकाऊ के साथ उनकी तस्वीर ने इस विवाद को और बड़ा कर दिया। ब्राजील के मीडिया ने सवाल उठाया कि एक लोकतांत्रिक देश का नेता ऐसी जगह कैसे जा सकता है, जहां गैर-कानूनी तरीके से विलुप्त प्रजातियां रखी गई हों। हालांकि, यह साफ है कि पीएम को इस पक्षी की पृष्ठभूमि की पूरी जानकारी नहीं थी, लेकिन उनकी मौजूदगी ने मामले को संवेदनशील बना दिया।
भारत के लिए क्यों है चिंता?
- अंतरराष्ट्रीय छवि: भारत CITES का हस्ताक्षरकर्ता है और वन्यजीव संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध है। अगर वंतारा ने गैर-कानूनी तरीके से जानवर लाए, तो यह भारत की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा सकता है।
- कानून का उल्लंघन: अगर नीला मकाऊ या अन्य प्रजातियां तस्करी के जरिए आईं, तो यह भारत के वन्यजीव कानूनों का उल्लंघन है।
- प्रकृति का नुकसान: विलुप्त प्रजातियों को उनके प्राकृतिक आवास से दूर रखना उनके संरक्षण में बाधा डाल सकता है। नीले मकाऊ को ब्राजील के जंगलों में पुनर्वास की जरूरत थी, न कि निजी केंद्र में प्रदर्शन की।
क्या हो सकता है समाधान?
- जांच की जरूरत: भारत सरकार को वंतारा में मौजूद सभी प्रजातियों की जांच करनी चाहिए। यह पता करना जरूरी है कि नीला मकाऊ और अन्य जानवर कैसे और कहां से आए।
- पक्षियों को वापस भेजें: ब्राजील की मांग है कि नीले मकाऊ को उनके जंगलों में लौटाया जाए, जहां उनका पुनर्वास हो सके।
- कानूनी कार्रवाई: अगर तस्करी या गैर-कानूनी आयात का मामला साबित होता है, तो जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई होनी चाहिए।
- जागरूकता: लोगों को वन्यजीव संरक्षण और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के बारे में जागरूक करने की जरूरत है।
लोगों के लिए सलाह
- जागरूक रहें: अगर आप वंतारा या किसी चिड़ियाघर में जाते हैं, तो वहां मौजूद प्रजातियों के बारे में सवाल पूछें। क्या वे कानूनी रूप से वहां हैं?
- प्रकृति का सम्मान: विलुप्त प्रजातियों को निजी संपत्ति बनाना गलत है। हमें प्रकृति को उसके मूल रूप में बचाने की कोशिश करनी चाहिए।
- सोशल मीडिया का उपयोग: अगर आपको लगता है कि कोई गलत काम हो रहा है, तो सोशल मीडिया के जरिए आवाज उठाएं, जैसे परंजय गुहा ठाकुरता ने किया।