जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों ने वैश्विक खाद्य उत्पादन को गंभीर खतरे में डाल दिया है। यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया के नेतृत्व में किए गए एक नए वैश्विक अध्ययन के अनुसार, बढ़ती गर्मी और सूखे के कारण मकई, सोयाबीन और ज्वार की पैदावार में साल-दर-साल भारी उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहे हैं।
यह अस्थिरता न केवल किसानों के लिए आर्थिक तंगी का कारण बन रही है, बल्कि वैश्विक खाद्य सुरक्षा के लिए भी बड़ा खतरा पैदा कर रही है। अध्ययन के नतीजे अंतरराष्ट्रीय जर्नल साइंस एडवांसेज में प्रकाशित हुए हैं।
फसलों पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
अध्ययन में तीन प्रमुख फसलों—मकई, सोयाबीन और ज्वार—पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का विश्लेषण किया गया। वैज्ञानिकों ने पाया कि वैश्विक तापमान में प्रत्येक 1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ:
- मकई: पैदावार में 7% अस्थिरता बढ़ती है।
- सोयाबीन: पैदावार में 19% अस्थिरता बढ़ती है।
- ज्वार: पैदावार में 10% अस्थिरता बढ़ती है।
यदि तापमान 2 डिग्री सेल्सियस बढ़ता है, तो:
- सोयाबीन की फसलें, जो पहले सदी में एक बार विफल होती थीं, हर 25 साल में बर्बाद हो सकती हैं।
- मकई की फसलें हर 49 साल में और ज्वार की फसलें हर 54 साल में विफल हो सकती हैं।
यदि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर नियंत्रण नहीं किया गया, तो सदी के अंत तक स्थिति और गंभीर हो सकती है। अनुमान है कि सोयाबीन की फसलें हर 8 साल में बर्बाद हो सकती हैं, जो किसानों और खाद्य आपूर्ति के लिए विनाशकारी होगा।
वैश्विक और स्थानीय प्रभाव
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव केवल विकासशील देशों तक सीमित नहीं है। 2012 में अमेरिका के मिडवेस्ट में सूखे और लू के कारण मकई और सोयाबीन की पैदावार में 20% की गिरावट आई, जिससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था को अरबों डॉलर का नुकसान हुआ।
वैश्विक खाद्य कीमतों में 10% की वृद्धि हुई, जिसने दुनिया भर में उपभोक्ताओं को प्रभावित किया।अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता डॉ. जोनाथन प्रॉक्टर ने कहा, “किसान औसत पैदावार पर नहीं, बल्कि हर साल की कटाई पर निर्भर करते हैं।
एक खराब साल उनके लिए आर्थिक तंगी और भुखमरी का कारण बन सकता है। हर कोई फसलें नहीं उगाता, लेकिन हर किसी को खाना पड़ता है। इसलिए, फसलों की अस्थिरता का असर वैश्विक स्तर पर महसूस किया जाएगा।”
गर्मी और सूखे का दोहरा प्रभाव
वैज्ञानिकों ने फसलों के रिकॉर्ड के साथ तापमान और मिट्टी की नमी का विश्लेषण किया। निष्कर्ष बताते हैं कि गर्मी और सूखे का संयोजन फसलों की अस्थिरता का प्रमुख कारण है।
गर्म मौसम मिट्टी को सुखा देता है, और सूखी मिट्टी तापमान को और बढ़ाती है, जिससे लू का खतरा बढ़ जाता है। यह स्थिति पौधों के परागण को प्रभावित करती है, उनकी वृद्धि अवधि को कम करती है और पौधों को कमजोर बनाती है।
जोखिम में कमी के उपाय
अध्ययन में कुछ समाधान सुझाए गए हैं:
- गर्मी और सूखा प्रतिरोधी फसलें: ऐसी किस्मों का विकास और उपयोग जो प्रतिकूल मौसम में भी टिक सकें।
- सटीक मौसम पूर्वानुमान: किसानों को समय पर जानकारी देने के लिए मौसम निगरानी प्रणालियों में निवेश।
- मिट्टी प्रबंधन: मिट्टी की नमी बनाए रखने के लिए बेहतर तकनीकों का उपयोग।
- फसल बीमा: आर्थिक नुकसान से बचाने के लिए मजबूत वित्तीय सुरक्षा जाल।
- उत्सर्जन में कमी: ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना सबसे प्रभावी उपाय है।
हालांकि, जहां सिंचाई उपलब्ध है, वहां अस्थिरता कम हो सकती है, लेकिन जोखिम वाले क्षेत्रों में पानी की कमी या बुनियादी ढांचे की कमी एक बड़ी चुनौती है।
