इंदौर के प्रशासन की विफलता के कारण रोजाना 1,036 एमएलडी (1 अरब 3 करोड़ 60 लाख लीटर) गंदा पानी कान्ह नदी में बहाया जा रहा है। यह गंदगी उज्जैन पहुंचने के बाद क्षिप्रा नदी को भी प्रदूषित कर रही है। इस पानी की गुणवत्ता इतनी खराब है कि यह डी कैटेगरी में आता है, जो नहाने के लिए भी सुरक्षित नहीं है।
इंदौर को ‘वाटर प्लस’ का दर्जा, लेकिन सच्चाई अलग
इंदौर को वाटर प्लस सिटी का तमगा मिला हुआ है। इसका मतलब है कि किसी भी तरह का गंदा (ब्लैक या ग्रे) पानी नदियों और नालों में नहीं जाना चाहिए। फिर भी कान्ह नदी में रोजाना बड़ी मात्रा में गंदा पानी मिल रहा है।
उज्जैन की गंदगी से 11 गुना ज्यादा है इंदौर का योगदान
जल संसाधन विभाग के एसडीओ योगेश सेवक के मुताबिक, इंदौर से 1,036 एमएलडी गंदा पानी कान्ह नदी में आता है, जो उज्जैन की गंदगी (92 एमएलडी) से लगभग 11 गुना अधिक है। इसके कारण तमाम कोशिशों के बावजूद क्षिप्रा का पानी साफ नहीं हो पा रहा है।
919 करोड़ की परियोजना से उम्मीद
कान्ह नदी में गंदगी रोकने के लिए 919 करोड़ रुपये की कान्ह क्लोज डक्ट परियोजना पर काम चल रहा है। इससे पहले, 21 सालों में क्षिप्रा नदी को साफ करने के लिए 650 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं। इंदौर के संभागायुक्त दीपक सिंह ने बताया कि नगर निगम, स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट और आईडीए (इंदौर विकास प्राधिकरण) मिलकर इस समस्या का समाधान निकालने में जुटे हैं।
क्या है वाटर प्लस का मतलब?
वाटर प्लस का मतलब है कि शहर में किसी भी प्रकार का गंदा पानी (ब्लैक या ग्रे वाटर) सीधे नदियों या नालों में नहीं मिलना चाहिए। साथ ही, खुले सीवरेज सिस्टम को पूरी तरह खत्म करना जरूरी है।
पानी की गुणवत्ता और कैटेगरी
पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के अनुसार, पानी को चार श्रेणियों में बांटा गया है:
- ए कैटेगरी: पीने के लिए उपयुक्त।
- बी कैटेगरी: नहाने के लिए उपयुक्त।
- सी कैटेगरी: सामान्य उपयोग के लिए खराब।
- डी कैटेगरी: बहुत खराब, जिससे मछलियों और अन्य जलीय जीवों को खतरा।
क्षिप्रा नदी का पानी फिलहाल डी कैटेगरी का है।
छोटे ट्रीटमेंट प्लांट लगाने की सलाह
विशेषज्ञों का कहना है कि बड़े ट्रीटमेंट प्लांट लगाने के बजाय शहर के अलग-अलग इलाकों में छोटे-छोटे प्लांट लगाने चाहिए। कॉलोनियों में स्थानीय स्तर पर सीवरेज ट्रीटमेंट होने से गंदगी को सीधे नदियों में जाने से रोका जा सकता है।
वर्तमान समस्या: बारिश का पानी सीवरेज में जा रहा
इंदौर में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग को ठीक से लागू नहीं किया गया है। बारिश का पानी सीवरेज में मिल रहा है, जिससे गंदे पानी की मात्रा और बढ़ रही है। इसे ट्रीट करना मुश्किल हो रहा है।