34 लाख साल पुरानी छुपी विकासवादी कहानी:
आज से लगभग 34 लाख साल पहले, इंडो-बर्मा क्षेत्र में एक छुपी हुई विकासवादी प्रक्रिया शुरू हुई, जिससे एक नई पैंगोलिन प्रजाति विकसित हुई। इसे लंबे समय तक चीनी पैंगोलिन (मैनिस पेंटाडैक्टाइला) की ही एक शाखा माना जाता रहा, लेकिन भारतीय वैज्ञानिक अब इसे एक अलग प्रजाति के रूप में देख रहे हैं। हालांकि, कुछ विशेषज्ञ अभी भी संशय में हैं।
नई प्रजाति का वैज्ञानिक प्रमाण
भारतीय प्राणी सर्वेक्षण (ZSI) के वैज्ञानिकों ने ‘मैमेलियन बायोलॉजी’ नामक पत्रिका में प्रकाशित अपने अध्ययन में इस नई पैंगोलिन प्रजाति को मैनिस इंडोबर्मानिका नाम दिया है।
वैज्ञानिकों ने इस प्रजाति की खोज के लिए माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए (mtDNA) का विश्लेषण किया। उन्होंने पाया कि यह लगभग 34 लाख साल पहले चीनी पैंगोलिन से अलग हो गया था। इस आनुवंशिक विश्लेषण में इंडो-बर्मा पैंगोलिन और चीनी पैंगोलिन के बीच महत्वपूर्ण अंतर पाए गए, जो इसे एक अलग प्रजाति के रूप में स्थापित करते हैं।
अगर मान्यता मिली तो बढ़ेंगी पैंगोलिन प्रजातियां
अगर यह नई प्रजाति वैज्ञानिक और संरक्षण समुदायों द्वारा आधिकारिक रूप से मान्यता प्राप्त कर लेती है, तो दुनिया में पैंगोलिन की ज्ञात प्रजातियों की संख्या 9 हो जाएगी। इनमें 4 एशियाई और 4 अफ्रीकी प्रजातियां शामिल हैं:
एशियाई पैंगोलिन:
- चीनी पैंगोलिन (मैनिस पेंटाडैक्टाइला)
- भारतीय पैंगोलिन (मैनिस क्रैसिकौडाटा)
- सुंडा पैंगोलिन (मैनिस जावानिका)
- फिलीपीन पैंगोलिन (मैनिस कुलियोनेसिस)
अफ्रीकी पैंगोलिन:
- ब्लैक-बेलिड पैंगोलिन (फ़ैतागिनस टेट्राडैक्टाइला)
- व्हाइट-बेलिड पैंगोलिन (फ़ैतागिनस ट्राइकसपिस)
- टेमिन्क पैंगोलिन (स्मुट्सिया टेमिन्की)
- विशाल ग्राउंड पैंगोलिन (स्मुट्सिया गिगेंटिया)
इंडो-बर्मा पैंगोलिन की विशेषताएं
इंडो-बर्मी पैंगोलिन अपने अन्य एशियाई समकक्षों से कई समानताएं साझा करता है, लेकिन इसमें कुछ अनोखी विशेषताएं भी पाई गई हैं:
- शल्कों के बीच बालों की उपस्थिति
- शरीर का आकार और कपाल संरचना में अंतर
- चीनी और भारतीय पैंगोलिन से अलग विकासवादी लक्षण
संरक्षण के लिए बड़ी चुनौती
वैश्विक वन्यजीव संरक्षण प्राधिकरण IUCN के पैंगोलिन विशेषज्ञ समूह ने इस नई खोज को रोमांचक बताया है, लेकिन इसके संरक्षण पर गंभीर चिंता भी जताई है। इंडो-बर्मी पैंगोलिन को कई खतरों का सामना करना पड़ रहा है:
- अवैध वन्यजीव व्यापार:
- इसका निवास स्थान दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में मुख्य तस्करी मार्गों के पास स्थित है, जिससे यह शिकारियों के लिए आसान लक्ष्य बन जाता है।
- अन्य पैंगोलिन प्रजातियों की तरह, इसे भी मांस और पारंपरिक दवाओं के लिए अवैध रूप से शिकार किया जाता है।
- वन्यजीव व्यापार समझौते (CITES) में स्थिति:
- वर्तमान में आठ ज्ञात पैंगोलिन प्रजातियों को CITES (अंतरराष्ट्रीय वन्यजीव व्यापार समझौते) के परिशिष्ट-I में सूचीबद्ध किया गया है, जिससे इनका व्यावसायिक व्यापार प्रतिबंधित है।
- हालांकि, पैंगोलिन की नई प्रजाति को अभी CITES के परिशिष्ट-II में रखा गया है, जहां कुछ व्यापार की अनुमति हो सकती है।
- यह चिंता का विषय हो सकता है क्योंकि इससे नई प्रजाति के अवैध शिकार और व्यापार को बढ़ावा मिल सकता है।
- पर्यावरणीय खतरों का प्रभाव:
- आवासीय क्षति: खेती, शहरीकरण और बुनियादी ढांचे के विकास से इसके प्राकृतिक आवास को खतरा है।
- जलवायु परिवर्तन: लगातार बदलते पर्यावरणीय कारक इस प्रजाति के अस्तित्व के लिए गंभीर चुनौती प्रस्तुत कर सकते हैं।
IUCN रेड लिस्ट में स्थान
इन सभी खतरों को देखते हुए, वैज्ञानिकों का मानना है कि इंडो-बर्मी पैंगोलिन IUCN की रेड लिस्ट में ‘लुप्तप्राय’ या ‘गंभीर रूप से लुप्तप्राय’ श्रेणी में आ सकता है। यदि इसे जल्द से जल्द संरक्षण प्रयासों में शामिल नहीं किया गया, तो यह प्रजाति विलुप्त होने के कगार पर आ सकती है।