नई दिल्ली/न्यूयॉर्क: भारत ने संयुक्त राष्ट्र फोरम ऑन फॉरेस्ट्स (UNFF) में 5-9 मई को न्यूयॉर्क में आयोजित बैठक में बताया कि भारत का वन और वृक्ष आवरण अब देश के भौगोलिक क्षेत्र का 25.17% हो गया है। यह उपलब्धि राष्ट्रीय स्तर की प्रमुख पहलों जैसे अरावली ग्रीन वॉल, ग्रीन इंडिया मिशन, और ‘एक पेड़ माँ के नाम’ (Plant4Mother) अभियान के कारण संभव हुई है।
पर्यावरण मंत्रालय ने शुक्रवार को यह जानकारी दी। भारत ने संयुक्त राष्ट्र में ‘वन पारिस्थितिकी तंत्र का राष्ट्रीय नीति और रणनीति में मूल्यांकन’ पर एक उच्च-स्तरीय पैनल में भी भाग लिया, जहां उत्तराखंड, राजस्थान और टाइगर रिजर्व में किए गए पायलट अध्ययनों के निष्कर्ष साझा किए गए।
भारत की उपलब्धियां
2023 की इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट (ISFR) के अनुसार, भारत का वन और वृक्ष आवरण 8,27,357 वर्ग किलोमीटर है, जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 25.17% है। इसमें 21.76% वन आवरण और 3.41% वृक्ष आवरण शामिल है।
2021 की तुलना में 1,445 वर्ग किलोमीटर (लगभग दिल्ली के आकार का) वन और वृक्ष आवरण में वृद्धि हुई है। यह रिपोर्ट, जो हर दो साल में जारी की जाती है, केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा दिसंबर 2023 में प्रकाशित की गई थी।
मंत्रालय ने बताया कि पिछले एक दशक में मैंग्रोव आवरण में 7.86% की वृद्धि हुई है, ग्रीन इंडिया मिशन के तहत 1.55 लाख हेक्टेयर में वनीकरण किया गया है, और ‘एक पेड़ माँ के नाम’ अभियान के तहत 1.4 अरब पौधे रोपे गए हैं। अरावली ग्रीन वॉल परियोजना ने भी भूमि पुनर्स्थापन में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं का मूल्यांकन
भारत ने उत्तराखंड, राजस्थान और टाइगर रिजर्व में किए गए पायलट अध्ययनों के निष्कर्ष साझा किए, जिनमें कार्बन अवशोषण, जल प्रावधान, और जैव विविधता संरक्षण जैसी पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं का मूल्यांकन किया गया। इन अध्ययनों में सिस्टम ऑफ एनवायरनमेंटल-इकनॉमिक अकाउंटिंग (SEEA) और मिलेनियम इकोसिस्टम असेसमेंट (MEA) जैसे ढांचों का उपयोग किया गया।
भारत ने गैर-बाजार सेवाओं के मूल्यांकन में आने वाली चुनौतियों को स्वीकार करते हुए राष्ट्रीय नियोजन में पारिस्थितिकी तंत्र मूल्यांकन को शामिल करने की आवश्यकता पर जोर दिया। इससे सूचित वन शासन और दीर्घकालिक पारिस्थितिक स्थिरता सुनिश्चित होगी।
चुनौतियां और चिंताएं
हिंदुस्तान टाइम्स ने 24 दिसंबर को बताया कि ISFR 2023 के प्रमुख निष्कर्षों के अनुसार भारत का हरा-भरा आवरण बढ़ रहा है, लेकिन बड़े पैमाने पर वन भूमि का क्षरण, वृक्षारोपण में वृद्धि, और तथाकथित ‘अवर्गीकृत वनों’ की स्थिति में स्पष्टता की कमी चिंता का विषय है। विशेषज्ञों का कहना है कि ये कारक जैव विविधता, वनों पर निर्भर लोगों, और पुराने वनों द्वारा प्रदान की जाने वाली पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर गंभीर प्रभाव डाल सकते हैं।