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भारत का कृषि निर्यात क्षेत्र 2025 में देख सकता है महत्वपूर्ण वृद्धि, एफपीओ और तकनीकी नवाचार से मिलेगा बढ़ावा

by kishanchaubey
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नई दिल्ली, 3 जनवरी: सरकार के बुनियादी ढांचे के विकास, तकनीकी प्रगति और निर्यात को बढ़ावा देने के लिए किए गए प्रयासों से भारत का कृषि निर्यात क्षेत्र 2025 में महत्वपूर्ण वृद्धि का सामना कर सकता है। एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है। रिपोर्ट में खासतौर पर किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) और कृषि क्षेत्र में निवेश को लेकर संभावनाओं पर चर्चा की गई है।

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किसान उत्पादक संगठन (FPOs) ने छोटे किसानों के लिए एक प्रभावी मंच के रूप में उभर कर, उनके आर्थिक सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। FPOs के माध्यम से किसानों को संसाधनों का साझा उपयोग करने, बेहतर मूल्य प्राप्त करने, और बाज़ार तक पहुँच बनाने में मदद मिल रही है। यह मॉडल अमूल जैसे सफल उदाहरणों से प्रेरित है, जहाँ लाखों छोटे किसान अच्छे मूल्य और विशाल बाज़ार नेटवर्क से लाभान्वित हो रहे हैं।

एफपीओ के प्रभावी मॉडल से छोटे किसानों को हो रहा लाभ

रिपोर्ट के अनुसार, FPOs किसानों को सामूहिक रूप से अपने उत्पादों को बाजार में बेचने का अवसर प्रदान करते हैं, जिससे उन्हें गुणवत्ता वाले कृषि उत्पादों के लिए बेहतर कीमतें मिलती हैं। इससे न सिर्फ किसानों की आय में वृद्धि होती है, बल्कि उनके समग्र जीवन स्तर में भी सुधार होता है। इस संबंध में प्रैक्टिस लीडर, खाद्य और कृषि, आकाशत गुप्ता ने कहा, “अमूल जैसे FPO मॉडल ने लाखों छोटे किसानों को उचित मूल्य और विश्वसनीय बाज़ार नेटवर्क से जोड़ा है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है।”

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भारत की कृषि क्षेत्र की महत्वपूर्ण स्थिति

भारत की कृषि क्षेत्र देश की अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है, जिसमें लगभग 42 प्रतिशत लोग कार्यरत हैं। इसका कुल GDP में 18 प्रतिशत का योगदान है। ऐसे में कृषि क्षेत्र की निर्यात क्षमता को बढ़ाकर, भारत अपनी वैश्विक स्थिति को मजबूत कर सकता है।

निर्यात वृद्धि के लिए बुनियादी ढांचे में निवेश

रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के मेगा फूड पार्कों और कोल्ड चेन नेटवर्क में निवेश से कृषि उत्पादों का शेल्फ-लाइफ बढ़ेगा और पोस्ट-हार्वेस्ट लॉस को कम किया जा सकेगा। इससे भारत को उच्च मूल्य वाले अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक अपनी पहुंच बनाने में मदद मिलेगी।

इसके अतिरिक्त, ऑस्ट्रेलिया का कृषि निर्यात क्षेत्र अपनी सफलता का श्रेय फॉर्म एक्सपोर्ट फैसिलिटेशन प्रोग्राम (FEFP) को देता है, जो निर्यात हब की स्थापना और बेहतर व्यापार समझौतों के माध्यम से बाज़ार तक पहुंच आसान बनाता है। भारत भी इस मॉडल को अपना सकता है और अपनी निर्यात क्षमता को बढ़ाने के लिए बुनियादी ढांचे में सुधार कर सकता है।

मूल्य-वर्धित उत्पादों से निर्यात को मिलेगा बढ़ावा

रिपोर्ट में यह भी सुझाव दिया गया है कि भारत को मूल्य-वर्धित प्रौद्योगिकियों में निवेश करने की दिशा में काम करना चाहिए। उदाहरण के तौर पर, कच्चे दूध को पनीर, दूध पाउडर, और व्हे प्रोटीन जैसे उत्पादों में परिवर्तित करना, या उच्च-मूल्य वाले फल और मसाले को जूस, सांद्रण और आवश्यक तेलों में बदलना, भारत के लिए बड़े निर्यात अवसर पैदा कर सकता है।

न्यूज़ीलैंड ने दूध प्रसंस्करण तकनीकों में निवेश कर अपने डेयरी निर्यात को बढ़ावा दिया है, और भारत को भी इस दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए। इसके साथ ही, भारत को फल और मसाले जैसे कृषि उत्पादों का प्रसंस्करण करके उन्हें अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में भेजने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

निजी कंपनियों की भूमिका

भारत में निजी कंपनियाँ कृषि क्षेत्र की प्रतिस्पर्धा को बढ़ाने में एक अहम भूमिका निभा सकती हैं। तकनीकी नवाचार और उन्नत तकनीकों में निवेश से न केवल किसानों की उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है, बल्कि उनकी लागत में भी कमी लाई जा सकती है। इसके साथ ही, पोस्ट-हार्वेस्ट लॉस को कम करने के उपायों से किसानों के लिए नए अवसर पैदा होंगे।

आशा का एक नया सूरज

रिपोर्ट में अगले वर्ष के लिए आशावाद व्यक्त किया गया है। यह कहा गया है कि भारत के कृषि निर्यात क्षेत्र में 2025 में महत्वपूर्ण वृद्धि हो सकती है, अगर सरकार और निजी क्षेत्र मिलकर इन अवसरों का लाभ उठाते हैं। किसानों को सशक्त बनाकर और उचित तकनीकी समर्थन देकर, भारत एक वैश्विक कृषि निर्यात नेता बन सकता है।

भारत के कृषि क्षेत्र को वैश्विक प्रतिस्पर्धा के साथ तालमेल बिठाने और निर्यात बढ़ाने के लिए यह कदम महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं, और आने वाले समय में कृषि क्षेत्र को नया विस्तार मिल सकता है।

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