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वातावरण में बढ़ता ओजोन प्रदूषण उष्णकटिबंधीय जंगलों के लिए बना बड़ा खतरा

by kishanchaubey
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वातावरण में बढ़ता प्रदूषण न केवल हम इंसानों बल्कि पेड़-पौधों के स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर रहा है। एक नए अध्ययन से यह पता चला है कि जमीन के पास मौजूद ओजोन गैस उष्णकटिबंधीय जंगलों को नुकसान पहुंचा रही है, जिससे पेड़ों की बढ़ने की रफ्तार धीमी हो रही है। इस वजह से पेड़ हवा से उतना कार्बन नहीं सोख पा रहे हैं, जितना बढ़ते प्रदूषण को सीमित करने में मदद करता है। इस अध्ययन के नतीजे जर्नल ‘नेचर जियोसाइंस’ में प्रकाशित हुए हैं।

ऊपरी वायुमंडल में मौजूद ओजोन परत पृथ्वी को हानिकारक अल्ट्रा वायलेट (यूवी) किरणों से बचाती है, जिसे बचाने के प्रयास पर्यावरण के लिए बड़ी सफलता रहे हैं। हालांकि, जमीन के पास मौजूद ओजोन पेड़-पौधों और जीवों के लिए हानिकारक है और इंसानी स्वास्थ्य को भी प्रभावित करती है। ग्राउंड लेवल ओजोन का निर्माण तब होता है जब इंसानी गतिविधियों से निकलने वाले प्रदूषक सूर्य की रोशनी से प्रतिक्रिया करते हैं, जिससे पेड़-पौधों के लिए कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करना मुश्किल हो जाता है।

विकास की राह पर मानवता या विनाश का रास्ता?

इस प्रदूषण के लिए हम इंसान ही जिम्मेदार हैं। हमारी कारों, कारखानों और अन्य गतिविधियों से निकलने वाले प्रदूषक सूर्य के प्रकाश के साथ प्रतिक्रिया कर ओजोन का निर्माण करते हैं। अध्ययन के अनुसार, जमीनी स्तर पर मौजूद इस ओजोन के कारण उष्णकटिबंधीय जंगल सालाना 5.1% धीमी रफ्तार से बढ़ रहे हैं, जिसका मतलब है कि उनकी वृद्धि दर में पांच प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है। एशिया में इसका प्रभाव और भी अधिक है, जहां उष्णकटिबंधीय जंगलों की वृद्धि में 10.9% तक की कमी आई है।

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उष्णकटिबंधीय जंगल जलवायु परिवर्तन के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि वे वातावरण से बड़े पैमाने पर कार्बन डाइऑक्साइड सोखते हैं। यदि वे ऐसा न कर पाएं तो वातावरण में हानिकारक ग्रीनहाउस गैसों का स्तर बहुत बढ़ सकता है, जो जलवायु के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य के लिए भी खतरनाक हो सकता है।

ओजोन के प्रभाव से जंगलों की धीमी वृद्धि

ओजोन की वजह से पेड़-पौधों की बढ़ने की रफ्तार धीमी हो रही है। ऐसे में जब जंगल धीमी रफ्तार से बढ़ते हैं तो वे सामान्य से कम कार्बन अवशोषित करते हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव और भी बढ़ रहे हैं। जेम्स कुक और एक्सेटर विश्वविद्यालय से जुड़े शोधकर्ता एलेक्जेंडर चीजमैन ने इस बारे में कहा है कि “कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने में उष्णकटिबंधीय वन महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।” अध्ययन ने भी पुष्टि की है कि वायु प्रदूषण वनों द्वारा प्रदान की जाने वाली इस महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र सेवा को खतरे में डाल रहा है।

शोधकर्ताओं का अनुमान है कि ओजोन ने 2000 से उष्णकटिबंधीय जंगलों को सालाना 29 करोड़ टन कार्बन को अवशोषित करने से रोका है। इसका मतलब है कि इस सदी में इन जंगलों द्वारा सोखे जा सकने वाले कार्बन की मात्रा में 17% की कमी आई है।

शोधकर्ताओं के निष्कर्ष और उपाय

शोधकर्ताओं ने यह समझने के लिए कई प्रयोग किए हैं कि उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाई जाने वाली वृक्षों की अलग-अलग प्रजातियां ओजोन पर कैसे प्रतिक्रिया करती हैं। इनके परिणामों को कंप्यूटर मॉडल से जोड़ा गया है। शहरीकरण, औद्योगिकीकरण, जीवाश्म ईंधन के उपयोग और आग के कारण प्रदूषकों में वृद्धि हो रही है, जिससे ओजोन का निर्माण हो रहा है। जैसे-जैसे शहरीकरण और अन्य प्रदूषक बढ़ रहे हैं, ओजोन का स्तर भी बढ़ता जा रहा है।

शोधकर्ताओं के अनुसार, पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान देने से जमीनी स्तर पर ओजोन में गिरावट आएगी, जिससे वायु गुणवत्ता में सुधार होगा और उष्णकटिबंधीय जंगलों को अधिक कार्बन अवशोषित करने में मदद मिलेगी। यह जलवायु परिवर्तन के लिहाज से भी फायदेमंद साबित होगा।

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