इंग्लैंड में बाढ़ और जलभराव से प्रभावित किसानों को अब सरकार की ओर से अधिक वित्तीय सहायता दी जाएगी। यूके सरकार ने अगले दो वर्षों में किसानों की मदद के लिए £5 बिलियन का फंड प्रदान करने का वादा किया है, ताकि वे अधिक उत्पादक और पर्यावरण के अनुकूल कृषि पद्धतियों की ओर बढ़ सकें। इसके साथ ही, बाढ़ के कारण किसानों को जलभराव की स्थिति में पर्यावरणीय नियमों का पालन भी करना होगा, जिससे पर्यावरण को नुकसान न हो।
फंड की घोषणा और इसके लाभ
हाल ही में घोषित इस फंड की घोषणा यूके की चांसलर रेचेल रीव्स ने अपने शरद ऋतु के बजट के दौरान की। इसके तहत इस साल £60 मिलियन की अतिरिक्त राशि ‘फार्मिंग रिकवरी फंड’ में दी जाएगी, जो उन किसानों की मदद करेगा जिनकी जमीन बाढ़ और भारी वर्षा से क्षतिग्रस्त हुई है। यह राशि उन्हें भूमि की मरम्मत और पुनः खेती के लिए मदद करेगी।
पर्यावरण नियम और किसानों की जिम्मेदारी
बाढ़ और भारी बारिश के बीच किसानों को अपने कार्यों में इस बात का विशेष ध्यान रखना होगा कि उनके कारण जल प्रदूषण न हो। यूके के जल प्रदूषण कानून इस सिद्धांत पर आधारित हैं कि “जो प्रदूषण फैलाएगा, उसे उसकी भरपाई करनी होगी”। यानी अगर किसी की वजह से पानी दूषित होता है, तो उसे ही इसका समाधान करना होगा, जो किसानों के लिए महंगा और कानूनी जोखिम भरा हो सकता है।
पर्यावरण और नियम विशेषज्ञ इलुनेड वॉटसन के अनुसार, हालांकि पानी के प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए कई नियम बनाए गए हैं, लेकिन ये नियम कृषि से होने वाले प्रदूषण के लिए पूरी तरह उपयुक्त नहीं हैं। उदाहरण के लिए, पर्यावरण परमिटिंग नियम के अनुसार किसी भी जहरीले पदार्थ को बिना परमिट के पानी में छोड़ना एक अपराध है। लेकिन यह परमिट उन स्थितियों के लिए होता है जहाँ प्रदूषण जानबूझकर किया जाता है, जबकि खेती में अक्सर अनजाने में मिट्टी का कटाव या रिसाव के कारण जल प्रदूषण होता है।
पिछले चार वर्षों में पर्यावरण एजेंसी ने लगभग 8,000 बार किसानों की जांच की है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे जल प्रदूषण के नियमों का पालन कर रहे हैं। एजेंसी ने कहा है कि उनके निरीक्षक पहले किसानों को सलाह और मार्गदर्शन देते हैं, लेकिन यदि नियमों का उल्लंघन किया जाता है, तो वे दंड, चेतावनी या मुकदमे जैसी कड़ी कार्रवाई करने में हिचकिचाएंगे नहीं।
‘फार्मिंग रूल्स फॉर वॉटर’ और किसानों के लिए आवश्यक कदम
इंग्लैंड में ‘रिडक्शन एंड प्रिवेंशन ऑफ एग्रीकल्चरल डिफ्यूज पॉल्यूशन (इंग्लैंड) रेगुलेशन 2018’ यानी ‘फार्मिंग रूल्स फॉर वाटर’ लागू किए गए हैं। इन नियमों के तहत, किसानों को उर्वरकों का उपयोग और भंडारण इस प्रकार करना होगा कि जलस्रोतों को प्रदूषित न करें। इन नियमों में जैविक खाद के भंडारण, मिट्टी की जांच और पशुपालन के प्रबंधन के भी प्रावधान शामिल हैं।
अगर किसान इन नियमों का पालन नहीं करते हैं, तो इसे अपराध माना जाएगा। हालांकि, किसान अगर यह साबित कर सकें कि उन्होंने जल प्रदूषण से बचने के लिए सभी सावधानियां बरती हैं, तो इसे एक बचाव का आधार माना जा सकता है। जैसे, मिट्टी की जांच करना या मौसम के पूर्वानुमान के अनुसार उर्वरक का प्रयोग करना इन सावधानियों में शामिल है।
हाल ही में एक मामले में अदालत ने यह स्पष्ट किया कि केवल भारी बारिश के पूर्वानुमान पर ही भरोसा करना पर्याप्त नहीं है। एक किसान ने बारिश के पूर्वानुमान के आधार पर उर्वरक (स्लरी) का इस्तेमाल किया, जो पर्यावरण नियमों का उल्लंघन था। इससे यह संदेश दिया गया कि किसानों को मौसम की स्थिति के साथ ही अन्य सावधानियों का भी ध्यान रखना होगा।
पर्यावरण और स्वास्थ्य पर प्रभाव
बाढ़ और जलभराव के कारण मिट्टी का कटाव, रासायनिक उर्वरकों का रिसाव, और अपशिष्ट पदार्थों का जलस्रोतों में मिलना जल प्रदूषण का कारण बन सकता है। यह प्रदूषित जल कृषि भूमि, जल स्रोतों और पशुओं के लिए हानिकारक हो सकता है।
प्रदूषित जल का उपयोग करने से मानव स्वास्थ्य पर भी गहरा असर पड़ता है, जिससे जल जनित रोग, त्वचा संक्रमण और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। साथ ही, प्रदूषक तत्वों का जलस्रोतों में मिलना जलीय जीवों के लिए विषाक्त हो सकता है, जिससे मछलियों और अन्य जलीय जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
इसलिए किसानों के लिए इन पर्यावरणीय नियमों का पालन न केवल कानूनी अनिवार्यता है, बल्कि यह जलस्रोतों और स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए भी आवश्यक है।