एक ओर जहाँ किसानों की मासिक घरेलू आय में वृद्धि हो रही है, वहीं दूसरी ओर उनके खर्चों और कर्ज का बोझ भी तेजी से बढ़ रहा है। बढ़ती आय के साथ, किसान परिवार गैर-खाद्य खर्चों की ओर भी रुख कर रहे हैं, और सबसे चिंताजनक बात यह है कि खेती के लिए उपलब्ध भूमि का रकबा भी कम हो रहा है।
यह जानकारी राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (NABARD) के ऑल इंडिया रूरल फाइनेंशियल इंक्लूज़न सर्वे (NAFIS) 2021-22 से सामने आई है। यह NABARD का दूसरा सर्वेक्षण है, जो 2016-17 के बाद किया गया है।
सर्वेक्षण के अनुसार, किसानों की औसत भूमि जोत 2016-17 में 1.08 हेक्टेयर से घटकर 2021-22 में मात्र 0.74 हेक्टेयर रह गई है, जो लगभग 31% की कमी को दर्शाता है।
आशा की किरण या चिंता का विषय?
हालांकि, सर्वेक्षण में कुछ उत्साहजनक समाचार भी सामने आए हैं। किसानों की मासिक घरेलू आय 2016-17 में ₹8,059 से बढ़कर 2021-22 में ₹12,698 हो गई है, जो 57.6% की वृद्धि को दर्शाता है।
हालांकि, ग्रामीण आय में 9.5% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) सकारात्मक है, लेकिन मासिक खर्चों में भी वृद्धि देखी गई है।
सर्वेक्षण के अनुसार, ग्रामीण परिवार जो 2016-17 में मासिक ₹6,646 खर्च करते थे, अब ₹11,262 खर्च कर रहे हैं, जो 69.4% की वृद्धि को दर्शाता है। इसका अर्थ है कि लोग जितना कमा रहे हैं, उससे कहीं अधिक खर्च भी कर रहे हैं।
गैर-खाद्य खर्चों में वृद्धि
कुल खर्च में खाद्य खर्च की हिस्सेदारी 51% से घटकर 47% हो गई है, जो बताता है कि ग्रामीण परिवार अब अधिकतर गैर-खाद्य खर्चों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। यह खर्च करने की प्रवृत्तियों और खाद्य सुरक्षा पर सवाल उठाता है।
कर्ज का बढ़ता बोझ
किसान परिवारों पर कर्ज का बोझ भी लगातार बढ़ रहा है। सर्वेक्षण के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में ऋण लेने वाले परिवारों की संख्या 47.4% से बढ़कर 52% हो गई है।
2016-17 में जहां प्रत्येक 100 परिवारों में से लगभग 47 परिवारों के पास कोई न कोई कर्ज था, यह संख्या 2021-22 में बढ़कर 52 हो गई।
सर्वेक्षण से यह भी पता चला कि जिन परिवारों पर बकाया ऋण है, उनकी संख्या में इज़ाफ़ा हुआ है। यह बताता है कि अधिक परिवार अपने खर्चों को पूरा करने या अपनी ज़रूरतें पूरी करने के लिए कर्ज पर निर्भर हो रहे हैं।
हालांकि, एक सकारात्मक पहलू यह भी है कि संस्थागत ऋणदाताओं से ऋण लेने वाले परिवारों की संख्या 60.5% से बढ़कर 75.5% हो गई है।
सरकारी योजनाओं का फायदा
किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) योजना का कवरेज भी 10.5% से बढ़कर 44.1% हो गया है, जिससे किसानों की वित्तीय समावेशन में सुधार हुआ है।
पेंशन योजना तक पहुंच में भी सुधार देखा गया है। सर्वे के अनुसार, 23.5% परिवारों में कम से कम एक सदस्य पेंशन प्राप्त कर रहा है, जो पहले 18.9% था। इसके अलावा, बीमा कवरेज में भी सुधार हुआ है, जहाँ अब 80.3% परिवारों में कम से कम एक सदस्य बीमित है, जो 2016-17 में सिर्फ 25.5% था।
वित्तीय जागरूकता में वृद्धि
वित्तीय साक्षरता और वित्तीय व्यवहारों में भी सुधार हुआ है। 51.3% परिवारों ने वित्तीय जानकारी में सुधार की सूचना दी, जो पहले 33.9% थी। इसके अलावा, 72.8% परिवारों ने समय पर बिलों का भुगतान किया और अपने पैसे का बेहतर प्रबंधन किया, जो पहले 56.4% था।
ग्रामीण परिवारों में वित्तीय बचत में भी वृद्धि देखी गई है, जो ₹9,104 से बढ़कर ₹13,209 हो गई है। 2021-22 में लगभग 66% ग्रामीण परिवारों ने बचत की, जबकि 2016-17 में यह आंकड़ा 50.6% था।
कुल मिलाकर, यह सर्वेक्षण किसानों की बढ़ती आय, खर्चों और कर्ज की स्थिति को स्पष्ट करता है, जबकि कुछ क्षेत्रों में सुधार भी दिखाता है। हालांकि, यह साफ़ है कि किसानों को अपनी आर्थिक स्थिति के संतुलन के लिए और कदम उठाने की जरूरत है।