नई दिल्ली, 27 जून 2025: बढ़ते वैश्विक तापमान का असर अब हमारी थाली तक पहुंच गया है। एक नए अंतरराष्ट्रीय अध्ययन के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण सदी के अंत तक प्रमुख फसलों से मिलने वाली कैलोरी की मात्रा 24 फीसदी तक कम हो सकती है। यह अध्ययन, जो नेचर जर्नल में प्रकाशित हुआ है, दुनिया भर में मानव आहार की दो-तिहाई कैलोरी प्रदान करने वाली फसलों जैसे गेहूं, मक्का, धान, सोयाबीन, जौ और कसावा पर केंद्रित है।
तापमान वृद्धि और कैलोरी में कमी
अध्ययन के मुताबिक, वैश्विक तापमान में प्रत्येक एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ प्रति व्यक्ति दैनिक खाद्य उपलब्धता में औसतन 120 कैलोरी की कमी आएगी, जो आज की प्रति व्यक्ति दैनिक खपत का 4.4 फीसदी है। स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और शोधकर्ता सोलोमन हसियांग के अनुसार, अगर तापमान तीन डिग्री सेल्सियस तक बढ़ता है, तो यह ऐसा होगा जैसे दुनिया का हर व्यक्ति अपना नाश्ता छोड़ दे। यह स्थिति खासकर उन 80 करोड़ लोगों के लिए गंभीर है, जो आज भी भुखमरी का सामना करते हैं।
सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे अमीर और गरीब देश
शोध में पाया गया कि बढ़ता तापमान आधुनिक और पारंपरिक दोनों तरह की खेती को प्रभावित करेगा। अमीर देशों में, जहां बड़े पैमाने पर आधुनिक तकनीकों से खेती होती है, फसल पैदावार में 41 फीसदी तक की गिरावट हो सकती है। वहीं, गरीब देशों में, जहां छोटे किसान सीमित संसाधनों के साथ खेती करते हैं, यह गिरावट 28 फीसदी तक हो सकती है। विशेष रूप से अमेरिका के मिडवेस्ट क्षेत्र, जो मक्का और सोयाबीन का केंद्र है, को भारी नुकसान होने की आशंका है।
चावल को फायदा, बाकी फसलों को नुकसान
अध्ययन के मॉडल के अनुसार, गर्म रातों के कारण चावल की पैदावार में 50 फीसदी संभावना के साथ वृद्धि हो सकती है। हालांकि, गेहूं, मक्का, सोयाबीन और जौ जैसी अन्य प्रमुख फसलों की पैदावार में 70 से 90 फीसदी संभावना के साथ कमी आएगी। शोधकर्ताओं ने 55 देशों के 12,000 से अधिक क्षेत्रों के आंकड़ों का विश्लेषण कर यह निष्कर्ष निकाला है।
किसानों का अनुकूलन, पर सीमित प्रभाव
अध्ययन में पाया गया कि किसान जलवायु परिवर्तन के अनुकूल फसलों, बीजों और खाद में बदलाव करेंगे, लेकिन अगर कार्बन उत्सर्जन में वृद्धि जारी रही, तो ये प्रयास सदी के अंत तक नुकसान की केवल एक-तिहाई भरपाई कर पाएंगे। शोधकर्ताओं का कहना है कि तापमान में वृद्धि के कारण वैश्विक खाद्य उत्पादन में कमी को पूरी तरह रोका नहीं जा सकता।
पहले से ही दिखने लगा असर
पृथ्वी का तापमान औद्योगिक काल से अब तक डेढ़ डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है। इसके परिणामस्वरूप, कई क्षेत्रों में लंबे सूखे, असमय गर्मी और अनिश्चित मौसम के कारण फसल पैदावार पहले ही प्रभावित हो रही है। बेहतर खाद और सिंचाई के बावजूद, किसानों को नुकसान उठाना पड़ रहा है।
भविष्य की चेतावनी
अध्ययन के अनुसार, अगर कार्बन उत्सर्जन को तुरंत कम कर नेट जीरो हासिल कर लिया जाए, तब भी सदी के अंत तक फसल पैदावार में 11 फीसदी की कमी आ सकती है। लेकिन अगर उत्सर्जन इसी तरह बढ़ता रहा, तो यह कमी 24 फीसदी तक पहुंच सकती है। शोधकर्ताओं का अनुमान है कि 2050 तक जलवायु परिवर्तन के कारण फसल पैदावार में 8 फीसदी की गिरावट निश्चित है, क्योंकि वातावरण में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड सैकड़ों वर्षों तक प्रभावी रहता है।
कुछ देशों को हो सकता है फायदा
अमेरिका जैसे गर्म क्षेत्रों को नुकसान होगा, लेकिन कनाडा, रूस और चीन जैसे ठंडे देशों में फसल पैदावार में मामूली वृद्धि हो सकती है। फिर भी, वैश्विक स्तर पर खाद्य सुरक्षा पर खतरा बना रहेगा।
अभी भी है समय
वैज्ञानिकों का कहना है कि उत्सर्जन में तेजी से कमी और किसानों को उचित संसाधन व जानकारी प्रदान करने से स्थिति को बेहतर किया जा सकता है। लेकिन समय तेजी से कम हो रहा है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि अगर अभी कदम नहीं उठाए गए, तो भविष्य में खाद्य संकट और गंभीर हो सकता है।