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बुद्ध नाला के कारण सतलुज नदी की जल गुणवत्ता खराब

by kishanchaubey
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जल संकट और जल प्रदूषण आज के समय की सबसे गंभीर पर्यावरणीय चुनौतियों में से एक हैं। बढ़ती जनसंख्या, अवैध जल दोहन और औद्योगिक प्रदूषण के कारण पानी की गुणवत्ता और उपलब्धता लगातार बिगड़ती जा रही है। भारत की राजधानी दिल्ली में अवैध बोरवेलों के माध्यम से भूजल का अत्यधिक दोहन किया जा रहा है, जिससे जल स्तर तेजी से गिर रहा है। दूसरी ओर, पंजाब में बुद्ध नाला के जरिए सतलुज नदी का प्रदूषण चिंता का विषय बना हुआ है।

सरकार और पर्यावरणीय एजेंसियां इस पर कड़ी निगरानी रख रही हैं, लेकिन अभी भी कई चुनौतियां बनी हुई हैं। दिल्ली जल बोर्ड (DJB) ने अवैध बोरवेलों की पहचान कर उन्हें सील करने की प्रक्रिया तेज कर दी है, जबकि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) सतलुज नदी की जल गुणवत्ता सुधारने के लिए लगातार निगरानी कर रहा है।

क्यों हो रहा है प्रदूषण?

इस समस्या की जड़ पंजाब डायर्स एसोसिएशन द्वारा छोड़ा जाने वाला गंदा पानी है।

  • यह संगठन कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (CETP) से साफ किए गए अपशिष्ट को बुद्ध नाला में छोड़ रहा है।
  • इस ट्रीटमेंट प्लांट की क्षमता 50 मिलियन लीटर प्रतिदिन (MLD) है।
  • हालांकि, पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (PPCB) ने 25 सितंबर 2024 को आदेश दिया था कि इस तरह का निर्वहन नहीं होना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट और NGT के आदेशों की अनदेखी

  • सुप्रीम कोर्ट ने 22 फरवरी 2017 को आदेश दिया था कि बुद्ध नाला में किसी भी तरह का गंदा पानी नहीं छोड़ा जाए।
  • 3 मई 2013 को मिली पर्यावरण मंजूरी में भी यह स्पष्ट रूप से कहा गया था कि सीईटीपी से निकला अपशिष्ट जल बुद्ध नाला में नहीं जाना चाहिए।

सीपीसीबी की नई रिपोर्ट में बड़ा खुलासा

19 मार्च 2025 को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें यह बताया गया:

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  1. दो सीईटीपी (40 MLD और 50 MLD) अभी भी पुराने नियमों के तहत चल रहे हैं।
  2. 15 MLD और 500 KLD क्षमता वाले नए सीईटीपी के लिए अलग से मंजूरी ली गई है।
  3. तीन बड़े सीईटीपी (40 MLD, 50 MLD और 15 MLD) साफ करने के बाद भी अपना अपशिष्ट जल बुद्ध नाला में छोड़ रहे हैं।
  4. सिर्फ 500 KLD का सीईटीपी ही “Zero Liquid Discharge (ZLD)” यानी बिना अपशिष्ट छोड़े काम कर रहा है।

क्या हो सकता है समाधान?

  • सरकार और पर्यावरण एजेंसियों को सख्त निगरानी करनी होगी।
  • उद्योगों को आधुनिक ट्रीटमेंट तकनीकों का इस्तेमाल करना होगा।
  • एनजीटी और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का सख्ती से पालन कराना होगा।

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