गुवाहाटी, 23 जून 2025: भारत के कई राज्यों में फ्लोराइड और आयरन युक्त दूषित भूजल की समस्या से जूझ रही आबादी के लिए एक उम्मीद की किरण सामने आई है। IIT गुवाहाटी के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा कम्युनिटी-स्केल वॉटर ट्रीटमेंट सिस्टम विकसित किया है, जो प्रतिदिन 20,000 लीटर दूषित पानी को साफ कर सकता है। यह तकनीक कम लागत पर दूरदराज के गांवों और कस्बों में सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने में कारगर साबित हो सकती है।
फ्लोराइड की समस्या कितनी गंभीर?
फ्लोराइड एक प्राकृतिक मिनरल है, जो टूथपेस्ट, कीटनाशकों, उर्वरकों और औद्योगिक प्रक्रियाओं में उपयोग होता है। यह प्राकृतिक रूप से या मानवीय गतिविधियों के कारण भूजल में घुल जाता है। अधिक फ्लोराइड युक्त पानी पीने से स्केलेटल फ्लोरोसिस जैसी गंभीर बीमारी हो सकती है, जिसमें हड्डियां सख्त हो जाती हैं और जोड़ों में अकड़न व दर्द होता है। राजस्थान, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, हरियाणा और गुजरात जैसे राज्यों में यह समस्या विशेष रूप से गंभीर है।
चार चरणों में पानी शुद्ध करने की तकनीक
IIT गुवाहाटी द्वारा विकसित यह तकनीक चार मुख्य चरणों में पानी को शुद्ध करती है:
- एरेशन: विशेष उपकरण की मदद से पानी में ऑक्सीजन मिलाई जाती है, जिससे घुला हुआ आयरन बाहर निकल जाता है।
- इलेक्ट्रोकोएगुलेशन: एल्यूमीनियम इलेक्ट्रोड के माध्यम से हल्का विद्युत प्रवाह भेजा जाता है, जो दूषित तत्वों को आकर्षित कर एकत्रित करता है।
- फ्लोकुलेशन और सेटलिंग: एकत्रित कण बड़े गुच्छों में बदलकर फ्लोकुलेशन चैंबर में नीचे बैठ जाते हैं।
- फिल्ट्रेशन: अंत में, पानी को कोयले, रेत और बजरी की परतों वाले फिल्टर से गुजारा जाता है, जिससे बची हुई अशुद्धियां हट जाती हैं।
20 रुपये में 1,000 लीटर पानी साफ
इस तकनीक की सबसे बड़ी खासियत इसकी लागत-प्रभाविता है। यह मात्र 20 रुपये में 1,000 लीटर पानी साफ कर सकती है। इसे चलाने में न्यूनतम निगरानी की जरूरत होती है और इसका जीवनकाल करीब 15 साल है। हर छह महीने में इलेक्ट्रोड बदलने की आवश्यकता होती है, जिसके लिए सेफ्टी अलर्ट सिस्टम भी शामिल किया गया है।
इस तकनीक का पायलट प्रोजेक्ट असम के चांगसारी इलाके में काकाटी इंजीनियरिंग प्राइवेट लिमिटेड और पब्लिक हेल्थ इंजीनियरिंग विभाग के सहयोग से स्थापित किया गया। 12 सप्ताह के सफल परीक्षण में यह सिस्टम 94% आयरन और 89% फ्लोराइड को हटाने में कामयाब रहा, जिससे पानी भारतीय मानकों के अनुसार सुरक्षित हो गया।
भविष्य की संभावनाएं
IIT गुवाहाटी के केमिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर मिहिर कुमार पुरकैत ने बताया, “हम इस सिस्टम को सौर या पवन ऊर्जा से चलाने की दिशा में काम कर रहे हैं। साथ ही, इलेक्ट्रोकोएगुलेशन प्रक्रिया में बनने वाली हाइड्रोजन का उपयोग करने की योजना है। रियल-टाइम सेंसर और ऑटोमैटिक कंट्रोल जैसी स्मार्ट तकनीकों को जोड़कर इसे और भी कम रखरखाव में चलने योग्य बनाया जाएगा।”
वैज्ञानिक इस सिस्टम को अन्य जल शुद्धिकरण तकनीकों के साथ एकीकृत करने पर भी काम कर रहे हैं ताकि इसकी कार्यक्षमता और बढ़े। इस अध्ययन के नतीजे प्रतिष्ठित जर्नल एसीएस ईएसएंडटी वाटर में प्रकाशित हुए हैं।
एक उम्मीद की किरण
IIT गुवाहाटी की यह पहल न केवल वैज्ञानिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि उन लाखों लोगों के लिए भी राहत की उम्मीद है जो स्वच्छ पेयजल की कमी से जूझ रहे हैं। प्रोफेसर मिहिर कुमार पुरकैत, डॉ. अन्वेशन, डॉ. पियाल मंडल और रिसर्च स्कॉलर मुकेश भारती द्वारा विकसित यह तकनीक गांव-गांव में स्वच्छ जल की आपूर्ति सुनिश्चित करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।