एक नए अध्ययन में वैज्ञानिक बर्फ की चादरों और ग्लेशियरों की गतिविधियों को बेहतर तरीके से समझने और उनके बदलावों का सटीक अनुमान लगाने के लिए नए तरीके विकसित कर रहे हैं। यह शोध जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र के बढ़ते स्तर और बाढ़ जैसे खतरों से निपटने में मददगार साबित हो सकता है। आइए, इस अध्ययन के बारे में आसान भाषा में विस्तार से जानते हैं।
कौन कर रहा है यह शोध?
यह अध्ययन कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय (यूके), पेनसिल्वेनिया विश्वविद्यालय (अमेरिका), और मैरीलैंड विश्वविद्यालय (अमेरिका) के वैज्ञानिकों की टीम ने किया है। इसके अलावा, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, और फ्रांस के विशेषज्ञों ने भी इसमें योगदान दिया है। यह शोध नेचर जियोसाइंस पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
शोध का मकसद
वैज्ञानिक बर्फ की चादरों और ग्लेशियरों में होने वाले बदलावों को समझना चाहते हैं। ये बदलाव जलवायु परिवर्तन की वजह से हो रहे हैं और इनका सीधा असर समुद्र के स्तर पर पड़ता है। जब समुद्र का तापमान बढ़ता है, तो बर्फ की चादरें किनारों पर पतली हो जाती हैं। इससे बर्फ और पिघला हुआ पानी समुद्र में मिल जाता है, जिससे समुद्र का स्तर बढ़ता है। यह तटीय इलाकों में बाढ़ और कटाव का खतरा बढ़ाता है।
शोध का मुख्य लक्ष्य है:
- बर्फ की गति को सटीक तरीके से मापना।
- समुद्र के स्तर में बढ़ोतरी का सही अनुमान लगाना।
- बाढ़ और तटीय कटाव से बचाव की योजना बनाना।
बर्फ की गति को समझने का तरीका
वैज्ञानिक बर्फ की गति को समझने के लिए प्रवाह नियम (फ्लो लॉ) नामक गणितीय मॉडल का इस्तेमाल करते हैं। यह मॉडल बताता है कि बर्फ कैसे बहती है और उसका आकार कैसे बदलता है। लेकिन मौजूदा मॉडल पूरी तरह सटीक नहीं हैं, क्योंकि बर्फ का व्यवहार बहुत जटिल होता है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि पुराने मॉडल जलवायु परिवर्तन के असर को पूरी तरह नहीं समझ पाते। इसलिए, उन्होंने एक नया और बेहतर प्रवाह नियम विकसित करने की कोशिश की है। इसके लिए उन्होंने:
- 70 साल के आंकड़े जुटाए: दुनिया भर से, जैसे न्यूजीलैंड, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, और फ्रांस, से बर्फ के व्यवहार पर डेटा इकट्ठा किया।
- उन्नत तकनीक का इस्तेमाल: आधुनिक सांख्यिकीय विधियों से पुराने मॉडल की कमियों को दूर किया।
- विस्तृत डेटाबेस बनाया: बर्फ की गति और विकृति (खिंचाव या दबाव) के बारे में सटीक जानकारी तैयार की।