प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज से ठीक एक दशक पहले स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत की थी. प्रधानमंत्री ने लाल किले के प्राचीर से इस मुद्दे को लोगों के सामने रखा था. इसके परिणामस्वरूप 2 अक्टूबर 2014 को स्वच्छ भारत मिशन का शुभारंभ हुआ था, जिसमें सरकार के सभी विभागों ने मिलकर स्वच्छता को सभी नागरिकों का समूहिक जीम्मेदारी बनाने का प्रयास किया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महात्मा गांधी की जयंती के अवसर पर ‘स्वच्छ भारत मिशन’ की शुरुआत की थी. इस अभियान का मकसद गांधीजी के स्वच्छता के आदर्शों को साकार करना था. आज, 2 अक्टूबर 2024 को, यह मिशन अपने 10 साल पूरे कर चुका है और इस दौरान देशभर में स्वच्छता को लेकर एक व्यापक जन आंदोलन खड़ा हुआ है.
स्वच्छ भारत मिशन की सफलता
बीते 10 वर्षों में स्वच्छता के मोर्चे पर कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की गई हैं:
खुले में शौच से मुक्ति: 12 करोड़ से अधिक घरों में शौचालयों का निर्माण हुआ है, जिससे खुले में शौच की समस्या लगभग समाप्त हो गई है.
स्वच्छ पेयजल आपूर्ति: हर घर नल जल योजना के तहत 16 फीसदी कवरेज से बढ़कर 78 प्रतिशत घरों में पाइप से स्वच्छ पानी की आपूर्ति हो रही है.
स्वच्छ ऊर्जा: उज्ज्वला योजना के तहत 11 करोड़ से अधिक परिवारों को रसोई गैस का कनेक्शन मिला है, जिससे महिलाओं को धुएं के प्रदूषण से मुक्ति मिली है.
स्वच्छता अभियान का स्वास्थ्य पर प्रभाव
स्वच्छ भारत अभियान का सीधा असर देश के स्वास्थ्य पर भी पड़ा है. पिछले महीने ही कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के शोध के अनुसार, शौचालय क्रांति के कारण शिशु मृत्यु दर में कमी आई है. 2015 और 2020 के बीच शिशु मृत्यु दर में 10 प्रतिशत की कमी हुई और हर साल करीब 60-70 हजार शिशुओं की मृत्यु को रोका गया है. इसके अलावा, लड़कियों के लिए बने विशेष शौचालयों की वजह से स्कूल छोड़ने की दर में भी कमी दर्ज की गई है.
स्वच्छता से सामाजिक परिवर्तन
गांधीजी के स्वच्छता के विचारों को मोदी सरकार ने मुख्यधारा में लाने का प्रयास किया है. 1901 में कोलकाता कांग्रेस अधिवेशन के दौरान गांधीजी ने स्वयं झाड़ू उठाकर सफाई की थी और तब से ही स्वच्छता को उन्होंने स्वतंत्रता से भी अधिक महत्वपूर्ण माना था. प्रधानमंत्री मोदी ने इसी विचार को आगे बढ़ाते हुए लाल किले से ‘स्वच्छता क्रांति’ की बात की और आज यह अभियान एक राष्ट्रीय आंदोलन बन चुका है.
हालांकि, भारत में स्वच्छता को लेकर अभी भी कई तरह की चुनौतियां बनी हुई हैं. लेकिन, इस अभियान के माध्यम से देश में सार्वजनिक स्वच्छता को लेकर जागरूकता जरूर बढ़ी है. अब ये देखा जाता है कि नई पीढ़ी के बच्चे भी अब बड़ों को सार्वजनिक जगहों पर गंदगी फैलाने पर टोकने लगे हैं, जो कहीं न कहीं एक बदलाव का संकेत है.