Himalayas: शहरों से शुरू हुआ वायु प्रदूषण अब हिमालय की ऊंचाइयों तक पहुंच चुका है। क्लाइमेट ट्रेंडस की नई रिपोर्ट, “हिमालयी हिमनदों पर ब्लैक कार्बन का प्रभाव: 23 वर्षों का प्रवृत्ति विश्लेषण,” में खुलासा हुआ है कि 2000 से 2019 के बीच हिमालय में ब्लैक कार्बन की सघनता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई, जिससे हिमनदों का तापमान 4 डिग्री सेल्सियस से अधिक बढ़ा। 2000-2009 में बर्फ की सतह का औसत तापमान -11.27 डिग्री सेल्सियस था, जो 2020-2023 में -7.13 डिग्री सेल्सियस हो गया।
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी के उपग्रह डेटा (2000-2023) पर आधारित इस अध्ययन के अनुसार, ब्लैक कार्बन बर्फ की परावर्तकता को कम कर उसे तेजी से पिघलाता है, जिससे दक्षिण एशिया के दो अरब लोगों की जल आपूर्ति पर संकट मंडरा रहा है। पूर्वी और मध्य हिमालय में ब्लैक कार्बन का स्तर सबसे अधिक है, जिसके प्रमुख स्रोत भारत-गंगा के मैदानों में बायोमास दहन, जीवाश्म ईंधन और खुले में कचरा जलाना हैं।
अच्छी खबर यह है कि ब्लैक कार्बन का वायुमंडलीय जीवनकाल केवल कुछ दिन से हफ्तों तक है। अध्ययन की मुख्य लेखिका डॉ. पलक बलियान के अनुसार, उत्सर्जन नियंत्रण से कुछ वर्षों में क्षेत्रीय तापमान में कमी लाई जा सकती है। क्लाइमेट ट्रेंडस की निदेशक आरती खोसला ने सुझाव दिया कि पारंपरिक चूल्हों, फसल जलाने और परिवहन से होने वाले उत्सर्जन को कम करने से जलवायु और वायु गुणवत्ता में त्वरित सुधार संभव है।
यह अध्ययन नीति निर्माताओं के लिए एक चेतावनी है कि तत्काल कदम उठाकर हिमालयी हिमनदों को बचाया जा सकता है, जिससे जल सुरक्षा और पर्यावरण संतुलन को सुनिश्चित किया जा सकता है।