बेंगलुरु में अत्यधिक बारिश और बदलते मौसम के कारण शहर में स्वास्थ्य और सामाजिक समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं। विशेषज्ञों और कार्यकर्ताओं का मानना है कि यह समस्या बढ़ते जलवायु संकट और बेंगलुरु के अनियंत्रित ढांचागत विकास से और गंभीर होती जा रही है।
जलवायु संकट का बढ़ता प्रभाव:
द लैंसेट काउंटडाउन की 2024 की रिपोर्ट, जो 9 नवंबर को जारी हुई, बताती है कि जलवायु परिवर्तन के कारण दुनियाभर में स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ रहे हैं, जैसे कि अत्यधिक बारिश, सूखा और मच्छरों जैसे कीड़ों से फैलने वाली बीमारियों में वृद्धि।
बेंगलुरु में अवैज्ञानिक और अनियंत्रित विकास:
सोसाइटी फॉर कम्युनिटी हेल्थ अवेयरनेस रिसर्च एंड एक्शन (SOCHARA) के सचिव प्रफुल्ल सालिग्राम के अनुसार, जलवायु परिवर्तन और बेंगलुरु के असंतुलित विकास ने जलवायु संकट को और गंभीर बना दिया है। उन्होंने कहा, “शहर में ऊंची इमारतें बनाने के लिए जमीन में अधिक गहरी खुदाई करनी पड़ती है, जिससे सतही जलभृत (shallow aquifers) पर असर पड़ता है। इससे बारिश के पानी को जमीन में समाने में समस्या आती है। जैसे, हेब्बल फ्लाईओवर के कारण हेब्बल झील का विभाजन हो गया है।”
विकास के बजाय समाधान और अनुकूलन पर ध्यान देने की जरूरत:
सालिग्राम ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के बजाय हमें जलवायु के अनुकूल होने और उससे बचाव के उपाय करने चाहिए। वर्तमान में विकास केवल एक ही दिशा में हो रहा है, जिसका खामियाजा गरीब और वंचित समुदायों को भुगतना पड़ रहा है।
प्रदूषण और कचरा प्रबंधन की समस्या:
भारतीय मानव बस्तियों के अध्ययन संस्थान के वरिष्ठ सलाहकार पुष्कर एस वी ने बताया कि बेंगलुरु में प्रदूषण के मुख्य कारण वाहन, उद्योगों से निकलने वाला धुआं और निर्माण कार्य हैं। इसके अलावा ठोस कचरा प्रबंधन की कमी भी ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का कारण बन रही है, जो जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा देता है। बेंगलुरु हर दिन लगभग 6,000 टन कचरा उत्पन्न करता है, लेकिन उसमें से केवल 1,000-1,500 टन ही सही तरीके से निपटाया जाता है। बाकी का कचरा लैंडफिल में डाल दिया जाता है, जहां से मीथेन गैस का उत्सर्जन होता है, जो एक प्रमुख ग्रीनहाउस गैस है।
संक्रमण और जलवायु का प्रभाव:
नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंसेज (NCBS) की सुफिया सादफ ने बताया कि बदलते मौसम के कारण मच्छरों से फैलने वाली बीमारियों में वृद्धि हो रही है। गर्म और आर्द्र मौसम में इन कीटों की प्रजनन अवधि बढ़ जाती है और जलभराव के कारण उनके प्रजनन क्षेत्र भी बढ़ जाते हैं। इसके अलावा, गर्म और नमी वाले मौसम में हैजा जैसी अन्य बीमारियों के लिए भी परिस्थितियां अनुकूल हो जाती हैं।
शाकाहार और शाकाहारवाद का प्रभाव:
जन स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. सिल्विया कार्पागम ने कहा कि शाकाहार और शाकाहारवाद को बढ़ावा देने से जलवायु परिवर्तन का बोझ उन कमजोर समूहों पर डाला जा रहा है जो पर्यावरण को सबसे कम हानि पहुंचाते हैं। उन्होंने कहा, “भारत में गरीब लोग पहले से ही बहुत कम भोजन कर पाते हैं, शाकाहारी भोजन अपनाने की सलाह देना उनके लिए अतिरिक्त बोझ है।” उन्होंने बताया कि “क्रूरता-मुक्त” माने जाने वाले उत्पाद, जैसे बादाम का दूध, एकल फसल खेती (monocropping) पर आधारित होते हैं, जो जलवायु के लिए हानिकारक साबित होते हैं।
निष्कर्ष:
बेंगलुरु में बढ़ता जलवायु संकट, अनियंत्रित विकास, ठोस कचरा प्रबंधन में कमी और बदलते मौसम की वजह से सामाजिक और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं उभर रही हैं। इसके समाधान के लिए समग्र उपायों की जरूरत है ताकि जलवायु के अनुकूल ढांचागत विकास हो और कमजोर समुदायों पर इसका नकारात्मक प्रभाव कम हो सके।