असम के डिब्रू-सैखोवा राष्ट्रीय उद्यान और बायोस्फीयर रिजर्व में जंगली घोड़ों (फेरल हॉर्स) और अन्य वन्यजीवों के आवास पर गंभीर संकट मंडरा रहा है। सालाना बाढ़ और नदी कटाव के कारण इस क्षेत्र की वनस्पति, घास के मैदान और भूमि को भारी नुकसान हो रहा है, जिससे वन्यजीवों के लिए सुरक्षित आवास लगातार कम हो रहे हैं।
यह जानकारी असम के मुख्य वन्यजीव संरक्षक ने 8 मई, 2025 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में पेश अपनी विस्तृत रिपोर्ट में दी है। यह रिपोर्ट फील्ड अवलोकनों और स्थानीय समुदायों से प्राप्त आंकड़ों पर आधारित है।
बाढ़ और कटाव का कहर
रिपोर्ट के अनुसार, डिब्रू-सैखोवा राष्ट्रीय उद्यान में हर साल आने वाली बाढ़ घास के मैदानों और जंगलों को जलमग्न कर देती है। इससे मिट्टी, रेत, गाद और मलबे की मोटी परत जम जाती है, जो भूमि की उर्वरता और वनस्पति को नष्ट कर देती है। इसके साथ ही, ब्रह्मपुत्र नदी और उसकी सहायक नदियों के कारण होने वाला कटाव पार्क के क्षेत्र को लगातार कम कर रहा है।
यह प्राकृतिक आपदा न केवल जंगली घोड़ों, बल्कि बंगाल टाइगर, एशियाई भैंस, गंगा डॉल्फिन और कई पक्षी प्रजातियों जैसे अन्य वन्यजीवों के लिए भी खतरा बन रही है।
रिपोर्ट में बताया गया कि कटाव के कारण पार्क का भौगोलिक क्षेत्र सिकुड़ रहा है, जिससे वन्यजीवों के लिए चरागाह और सुरक्षित आवास की कमी हो रही है। बाढ़ के बाद दलदली और जलमग्न क्षेत्रों में घास की प्रजातियां कम हो रही हैं, जो जंगली घोड़ों के भोजन का प्रमुख स्रोत हैं।
जंगली घोड़ों का जीवन और आवास
डिब्रू-सैखोवा राष्ट्रीय उद्यान में जंगली घोड़े मुख्य रूप से पार्क के कोर क्षेत्रों जैसे लंका, टापू, लैका चपारी और बफर जोन के बाघिनी चपारी, सुरखे चपारी, शिवगुड़ी और पगलं जैसे इलाकों में पाए जाते हैं।
सूखे मौसम में ये घोड़े कोर क्षेत्रों में रहते हैं, जहां ऊंची ताजी घास और पानी की उपलब्धता होती है। ये घोड़े लंबी घास वाले खुले मैदानों को पसंद करते हैं, जो उन्हें चरने और स्वतंत्र रूप से घूमने का अवसर प्रदान करते हैं।
रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि डिब्रू-सैखोवा का क्षेत्र दलदली, नदी-झीलों और जल चैनलों से भरा हुआ है। ये जल स्रोत बाढ़ के दौरान फिर से सक्रिय हो जाते हैं। जंगली घोड़ों ने समय के साथ नदी तटीय और दलदली क्षेत्रों में रहना सीख लिया है।
ये घोड़े अब बाढ़ के मैदानों, रेत के टीलों और जल चैनलों से होकर आसानी से गुजर सकते हैं, जो उनकी अनुकूलन क्षमता को दर्शाता है।
जंगली घोड़ों की संख्या और संरक्षण की चुनौतियां
वन विभाग और स्थानीय सीमान्त समुदायों के आंकड़ों के अनुसार, पार्क के कोर और बफर क्षेत्रों में वर्तमान में 175 से 250 जंगली घोड़े मौजूद हैं। राहत की बात यह है कि अब तक इन घोड़ों के अवैध शिकार की कोई रिपोर्ट नहीं मिली है।
हालांकि, जंगली घोड़ों को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत अनुसूचित प्रजातियों में शामिल नहीं किया गया है, जिसके कारण उनके संरक्षण में कानूनी और प्रशासनिक बाधाएं आ रही हैं।
रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि यदि इन घोड़ों को अनुसूचित प्रजातियों की सूची में शामिल किया जाए, तो उनके शिकार, व्यापार या नुकसान को रोकने के लिए कानूनी कार्रवाई आसान हो जाएगी। अनुसूचित प्रजातियों को नुकसान पहुंचाने पर सजा और जुर्माने का प्रावधान है, जो संरक्षण को और मजबूत करेगा।
अपर्याप्त शोध और भविष्य की योजनाएं
जंगली घोड़ों के व्यवहार, प्रजनन, संख्या और आवास की प्राथमिकताओं पर अन्य वन्यजीवों की तरह विस्तृत जानकारी उपलब्ध नहीं है। इस संबंध में कोई ठोस वैज्ञानिक अध्ययन भी नहीं हुआ है। रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (डब्ल्यूआईआई), देहरादून जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों को इस दिशा में शोध करने के लिए शामिल किया जाए।
ऐसे अध्ययन जंगली घोड़ों के संरक्षण के लिए दीर्घकालिक और प्रभावी योजनाएं तैयार करने में मदद कर सकते हैं।
अतिरिक्त उपायों की जरूरत
डिब्रू-सैखोवा राष्ट्रीय उद्यान को बचाने के लिए बाढ़ और कटाव से निपटने के लिए व्यापक उपायों की आवश्यकता है। विशेषज्ञों का सुझाव है कि नदी तटों पर बांधों का निर्माण, वृक्षारोपण और मिट्टी संरक्षण की तकनीकों को अपनाकर कटाव को कम किया जा सकता है।
साथ ही, घास के मैदानों को पुनर्जनन के लिए विशेष परियोजनाएं शुरू की जा सकती हैं। स्थानीय समुदायों को संरक्षण कार्यों में शामिल करना भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे पार्क के आसपास रहते हैं और वन्यजीवों के साथ सह-अस्तित्व में हैं।
डिब्रू-सैखोवा का महत्व
डिब्रू-सैखोवा राष्ट्रीय उद्यान न केवल जंगली घोड़ों, बल्कि जैव-विविधता के लिए भी एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है। यह पार्क कई लुप्तप्राय प्रजातियों जैसे बंगाल टाइगर, गंगा डॉल्फिन, और विभिन्न प्रवासी पक्षियों का घर है। यह क्षेत्र पर्यटकों और शोधकर्ताओं के लिए भी आकर्षण का केंद्र है।
यदि समय रहते उचित कदम नहीं उठाए गए, तो यह पार्क और इसके अनमोल वन्यजीव स्थायी रूप से नष्ट हो सकते हैं।