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गुवाहाटी: असम राज्य चिड़ियाघर में पैदा हुई नन्ही मादा गैंडा ‘रत्न’ नाम से हो सकती है प्रसिद्ध

by kishanchaubey
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असम राज्य चिड़ियाघर और वनस्पति उद्यान में हाल ही में जन्मी एक मादा गैंडा के बछड़े का नामकरण लोगों के लिए उत्साह का विषय बना हुआ है। इस बछड़े का नामकरण करने के लिए असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने सुझाव मांगा था, जिसके बाद सोशल मीडिया पर कई लोगों ने इस प्यारे बछड़े का नाम ‘रत्न’ रखने का सुझाव दिया है। यह नाम प्रसिद्ध उद्योगपति और परोपकारी रतन टाटा के सम्मान में रखा जा सकता है। इसके अलावा, अन्य नामों में ‘दुर्गा’, ‘प्रचंड’, ‘प्रिय’, ‘बेला’, ‘गोल्डी’, ‘आर-जू’ और मजाकिया नाम ‘बेरोजगारी’ शामिल हैं। आखिरकार, इस नाम का चयन लॉटरी के माध्यम से किया जाएगा।

विशेष गैंडा का जन्म

यह मादा गैंडा बछड़ा 7 नवंबर को चिड़ियाघर के गैंडा प्रजनन केंद्र में पैदा हुआ था। इसे “गांवबुड़ा” (असमिया में ‘गांव का मुखिया’) और “पोरी” (परियों जैसी) नामक जोड़ी से जन्म मिला, जो एक बचाए गए और पाले गए गैंडे की जोड़ी है। चिड़ियाघर में पिछले एक दशक में यह पहला गैंडा जन्म है, जिससे गैंडा संरक्षण और प्रजनन प्रयासों को बल मिला है।

गैंडा संरक्षण और प्रजनन में कठिनाइयाँ

चिड़ियाघर में पिछले कई वर्षों में तीन गैंडा बछड़े पैदा हुए हैं: “पोरी” (2002), “सनातन” (नर गैंडा, 2013) और अब यह नई मादा गैंडा। अधिकारियों का कहना है कि एक गैंडा बछड़े का जन्म इतनी देरी से हुआ क्योंकि समय पर प्रजनन के लिए गैंडा जोड़े उपलब्ध नहीं थे। प्रजनन के लिए गैंडों की रक्त रेखा (ब्लडलाइन) की जांच भी करनी पड़ती है ताकि परिवार के भीतर ही मिलन से बचा जा सके। इसके अलावा, कई बार मादा और नर गैंडे एक ही समय में प्रजनन के लिए तैयार नहीं होते, और ऐसे में उन्हें लंबे समय तक साथ रखना उनके लिए हानिकारक हो सकता है, जिससे लड़ाई का खतरा भी बढ़ जाता है।

प्राकृतिक और सुरक्षित वातावरण

चिड़ियाघर में गैंडों के प्रजनन के लिए उन्हें प्राकृतिक वातावरण में रखा जाता है, जहाँ जड़ी-बूटियाँ, झाड़ियाँ, पानी, घास के मैदान, और कृत्रिम वर्षा की सुविधा होती है। चिड़ियाघर में आगंतुकों के संपर्क से बचाने के लिए प्रजनन योग्य गैंडों को अलग रखा जाता है। गर्भावस्था के दौरान, मादा गैंडे को विशेष आहार और स्वास्थ्य जांच दी जाती है ताकि उसकी देखभाल में कोई कमी न रहे। चिड़ियाघर के अधिकारियों को उम्मीद है कि अब चिड़ियाघर में दो जोड़ी गैंडों के साथ, आगे और सकारात्मक परिणाम मिल सकते हैं।

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पर्यावरणीय और स्वास्थ्य प्रभाव

  1. पर्यावरणीय प्रभाव:
    गैंडों के प्रजनन और संरक्षण से स्थानीय जैव विविधता को बल मिलता है, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र संतुलित रहता है। गैंडों का संरक्षण न केवल गैंडों की सुरक्षा करता है, बल्कि पूरे पर्यावरण को भी मजबूत बनाता है।
  2. स्वास्थ्य पर प्रभाव:
    गंदे पानी और वातावरण में पलने वाले गैंडों को कई बार बीमारियों का सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी संख्या कम हो सकती है। प्राकृतिक वातावरण में गैंडों को रखने से उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। इसके अलावा, गैंडों के संरक्षण से पर्यावरण में सुधार आता है, जिससे स्थानीय लोगों का स्वास्थ्य भी बेहतर रहता है।

चिड़ियाघर में गैंडों के प्रजनन की यह पहल असम और देश के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, जो वन्यजीव संरक्षण और जैव विविधता को संजोए रखने में सहायक होगी।

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