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पुणे में गुइलेन-बैरे सिंड्रोम के 26 मामले: स्वास्थ्य अधिकारियों ने जताई चिंता

by kishanchaubey
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Guillain-Barre Syndrome – GBS: पुणे शहर में गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) के 26 मामले सामने आए हैं, जो स्वास्थ्य विशेषज्ञों के लिए चिंता का विषय बन गए हैं। शहर के तीन प्रमुख अस्पतालों ने इन मामलों की बढ़ती संख्या को देखते हुए स्वास्थ्य अधिकारियों को अलर्ट किया है। अधिकांश मरीज सिंहगढ़ रोड, धायरी और आसपास के इलाकों से हैं।

गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) क्या है?

गुइलेन-बैरे सिंड्रोम एक दुर्लभ न्यूरोलॉजिकल रोग है जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली गलती से परिधीय तंत्रिका तंत्र पर हमला करती है। इससे कमजोरी, सुन्नता और गंभीर मामलों में लकवे जैसी स्थिति हो सकती है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, जीबीएस किसी भी उम्र के व्यक्ति को प्रभावित कर सकता है, लेकिन यह वयस्क पुरुषों में ज्यादा देखने को मिलता है।

जीबीएस के लक्षण

  • पैरों से शुरू होने वाली कमजोरी और झुनझुनी, जो धीरे-धीरे बाहों और चेहरे तक फैलती है।
  • चलने और संतुलन बनाने में कठिनाई।
  • पीठ और अंगों में तेज दर्द।
  • गंभीर मामलों में सांस लेने में कठिनाई और दिल की धड़कन में गड़बड़ी।
  • चरम स्थिति में लकवा, जिसके लिए वेंटिलेटर की जरूरत पड़ सकती है।

जीबीएस के कारण

  • संक्रमण: कैम्पिलोबैक्टर जेजुनी (जो अधपकी चिकन में पाया जाता है), एपस्टीन-बार वायरस, साइटोमेगालोवायरस और जीका वायरस जैसे बैक्टीरिया और वायरस।
  • टीकाकरण: दुर्लभ मामलों में, इन्फ्लूएंजा और टेटनस के टीके के बाद जीबीएस के मामले देखे गए हैं। हालांकि, टीकाकरण के फायदे जोखिम से कहीं अधिक हैं।

निदान और जांच

  • लक्षणों और न्यूरोलॉजिकल परीक्षण पर आधारित।
  • डीप-टेंडन रिफ्लेक्स की जांच, लंबर पंचर, और इलेक्ट्रोमायोग्राफी (EMG)।
  • रक्त परीक्षण आमतौर पर जरूरी नहीं होते।

इलाज और देखभाल

जीबीएस का कोई स्थायी इलाज नहीं है, लेकिन उपचार इसके लक्षणों को कम कर सकता है।

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  • इम्यूनोथेरेपी:
    • प्लाज्मा एक्सचेंज (Plasmapheresis): रक्त से हानिकारक एंटीबॉडी को हटाने के लिए।
    • इंट्रावीनस इम्युनोग्लोबुलिन (IVIG): प्रतिरक्षा प्रणाली को नियंत्रित करने के लिए।
  • सांस लेने की समस्या: गंभीर मामलों में वेंटिलेटर की जरूरत पड़ सकती है।
  • पुनर्वास: बीमारी के बाद मांसपेशियों को मजबूत करने के लिए फिजियोथेरेपी।

विशेषज्ञों की चिंता

डॉक्टरों का कहना है कि एक सप्ताह में 26 मामलों का सामने आना असामान्य है। आमतौर पर बड़े अस्पतालों में महीने में एक-दो जीबीएस के मामले ही आते हैं। इसलिए, यह जरूरी है कि इसकी गहराई से जांच की जाए।

सरकार और स्वास्थ्य विभाग को क्या करना चाहिए?

  1. तत्काल जांच: मामलों की बढ़ती संख्या के कारण संक्रमण या पर्यावरणीय कारणों का पता लगाना।
  2. सामाजिक जागरूकता: लोगों को जीबीएस के लक्षणों और इससे बचाव के उपायों के बारे में जानकारी देना।
  3. बेहतर निगरानी: अस्पतालों में मरीजों की हालत की निगरानी।
  4. टीकाकरण पर ध्यान: वैक्सीन के संभावित दुष्प्रभावों की समीक्षा।

जीबीएस से बचाव कैसे करें?

  • बैक्टीरिया और वायरस से बचाव के लिए स्वच्छता का ध्यान रखें।
  • अधपके मांस से बचें।
  • किसी भी संक्रमण के लक्षण पर डॉक्टर से तुरंत संपर्क करें।

गुइलेन-बैरे सिंड्रोम के बढ़ते मामलों को देखते हुए पुणे और देशभर में स्वास्थ्य अधिकारियों और आम नागरिकों को सतर्क रहना होगा। यह स्थिति जागरूकता और सही समय पर इलाज से नियंत्रित की जा सकती है।

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