आज पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन की चपेट में है, जहां वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) की बढ़ती मात्रा प्रमुख वजह है। कारखाने, वाहन, बिजली उत्पादन और जंगलों की कटाई से CO2 का स्तर लगातार ऊंचा हो रहा है, जो धरती की गर्मी को फंसाकर वैश्विक तापमान बढ़ा रहा है। वैज्ञानिकों ने लंबे समय से माना कि बढ़ता CO2 पौधों की वृद्धि को तेज कर सकता है, क्योंकि वे इसे प्रकाश संश्लेषण के जरिए सोखते हैं। इसे ‘CO2 उर्वरक प्रभाव’ कहा जाता है, जो जलवायु परिवर्तन को धीमा करने में मददगार लगता था।
लेकिन हालिया शोध इस धारणा को चुनौती दे रहे हैं। ऑस्ट्रिया की यूनिवर्सिटी ऑफ ग्राज और कनाडा की साइमन फ्रेजर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने पाया कि प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्रों में नाइट्रोजन की उपलब्धता को जलवायु मॉडलों में 50% तक अधिक आंका गया है। नाइट्रोजन पौधों की वृद्धि के लिए CO2 जितना ही जरूरी है, जो पत्तियों, तने और प्रोटीन निर्माण में सहायक होता है। वातावरण में नाइट्रोजन प्रचुर है, लेकिन पौधे इसे सीधे ग्रहण नहीं कर पाते। मिट्टी के सूक्ष्मजीवों द्वारा जैविक नाइट्रोजन स्थिरीकरण ही इसे उपयोगी रूप देते हैं।
शोधकर्ताओं के अनुसार, प्राकृतिक जंगलों और घास के मैदानों में यह स्थिरीकरण पहले सोचा गया से काफी कम है। इसके विपरीत, कृषि क्षेत्रों में पिछले 20 वर्षों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण 75% बढ़ा है, उर्वरकों और फसल प्रणालियों के कारण। लेकिन मॉडल इस अंतर को नजरअंदाज कर रहे थे, जिससे पौधों को पर्याप्त नाइट्रोजन मानकर CO2 अवशोषण को 11% अधिक अनुमानित किया गया। ‘प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज’ में प्रकाशित इस अध्ययन से साफ है कि नाइट्रोजन की कमी पौधों की CO2 सोखने की क्षमता सीमित कर देती है, जिससे जलवायु परिवर्तन के अनुमान कमजोर पड़ते हैं।
नाइट्रोजन चक्र से निकलने वाली नाइट्रस ऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसी गैसें भी ग्रीनहाउस प्रभाव बढ़ाती हैं। इसलिए, मॉडलों को नई सटीक डेटा से अपडेट करना जरूरी है। वैज्ञानिक चेतावनी देते हैं कि प्राकृतिक प्रक्रियाओं पर अंधविश्वास के बजाय, मानवीय उत्सर्जन नियंत्रण ही असली हल है। अंतरराष्ट्रीय जलवायु रिपोर्टों और नीतियों को अब पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता है, ताकि सच्चाई के आधार पर कार्रवाई हो सके।
