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गाजीपुर लैंडफिल: पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए बढ़ता खतरा, कोर्ट कमिश्नर की रिपोर्ट में खुलासा

by kishanchaubey
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गाजीपुर लैंडफिल, जो पूर्वी दिल्ली का प्रमुख कचरा निपटान स्थल है, पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बनता जा रहा है। यह बात नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को 29 मार्च, 2025 को सौंपी गई कोर्ट कमिश्नर की एक ताजा रिपोर्ट में सामने आई है।

रिपोर्ट में गाजीपुर लैंडफिल और इससे जुड़े कचरे से ऊर्जा बनाने वाले प्लांट (वेस्ट-टू-एनर्जी) की स्थिति पर विस्तृत जानकारी दी गई है। 26 मार्च, 2025 को किए गए निरीक्षण के आधार पर तैयार इस रिपोर्ट में कई चिंताजनक तथ्य उजागर हुए हैं।

रिपोर्ट के अनुसार, गाजीपुर लैंडफिल से निकलने वाला एक नाला ड्रेन नंबर 1 में मिलता है, जो आगे चलकर यमुना नदी में जा रहा है। इस नाले में लैंडफिल से निकलने वाला जहरीला लीचेट भी बहता है, जो जल प्रदूषण का बड़ा कारण बन रहा है। इसके साथ ही, लैंडफिल की नहर की तरफ कोई बाउंड्री वॉल नहीं है, जिससे प्रदूषण का खतरा और बढ़ जाता है।

कोर्ट कमिश्नर ने पाया कि लीचेट को केवल आंशिक रूप से नियंत्रित किया जा रहा है और मानसून के दौरान रिसाव को टैंकों में मोड़ने से पहले उसे सीधे नालियों में छोड़ने की व्यवस्था की गई है।

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लैंडफिल में कचरे के ढेर और कुछ मीथेन वेंट भी देखे गए हैं। यह मीथेन गैस, जो कचरे के सड़ने से उत्पन्न होती है, को इकट्ठा करने के बजाय हवा में छोड़ दिया जा रहा है, जिससे वायु प्रदूषण बढ़ रहा है। लैंडफिल के ऊपरी हिस्से में दरारें भी देखी गई हैं, जो संरचनात्मक अस्थिरता का संकेत देती हैं।

दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के एक अधिकारी ने दावा किया कि 2019 में लैंडफिल पर मौजूद कचरे की मात्रा 100 लाख मीट्रिक टन थी, जो अब घटकर 85 लाख मीट्रिक टन रह गई है। साथ ही, पांच एकड़ जमीन को पुनः प्राप्त करने की बात कही गई। हालांकि, कोर्ट कमिश्नर ने करीबी निरीक्षण और हवाई दृश्यों के आधार पर स्पष्ट किया कि इस साइट पर कोई भी जमीन पूरी तरह से पुनः प्राप्त नहीं हुई है। तस्वीरों से पता चलता है कि यह क्षेत्र अभी भी बायो-माइनिंग के अधीन है, जहां दो ट्रॉमेल मशीनें काम कर रही हैं। नहर की तरफ भी दो ट्रॉमेल देखे गए, जहां कोई चारदीवारी मौजूद नहीं थी।

गाजीपुर लैंडफिल का इतिहास और वर्तमान स्थिति

गाजीपुर लैंडफिल को 1984 में एक निचले क्षेत्र में ठोस कचरे के निपटान के लिए स्थापित किया गया था। पिछले कुछ दशकों में यह 70 एकड़ के विशाल डंपसाइट में बदल गया है। शुरू में इसकी अधिकतम अनुमत ऊंचाई 40 मीटर निर्धारित की गई थी, लेकिन लगातार कचरे की डंपिंग के कारण यह अब 60 मीटर से अधिक ऊंचा हो गया है। इसकी वजह से पर्यावरण और संरचनात्मक जोखिम बढ़ गए हैं।

लैंडफिल के आसपास महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा मौजूद है, जिसमें पोल्ट्री, मछली, पशुधन, डेयरी और सब्जी बाजार शामिल हैं। इसके पास ही एक बूचड़खाना और अपशिष्ट से ऊर्जा संयंत्र भी स्थित है। यह साइट भीड़भाड़ वाले इलाके में है, जिसके ठीक पीछे हिंडन नदी नहर और ड्रेन नंबर 1 बहता है। पानी के इतने करीब होने से लीचेट के कारण जल प्रदूषण का खतरा और गंभीर हो जाता है।

बढ़ता प्रदूषण और स्वास्थ्य संकट

लैंडफिल में जमा कचरे की भारी मात्रा के कारण वायु, जल और मृदा प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है। मीथेन गैस का उत्सर्जन और लीचेट का रिसाव आसपास के पारिस्थितिकी तंत्र और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा बन रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर इस स्थिति पर जल्द काबू नहीं पाया गया, तो इसके दुष्परिणाम और व्यापक हो सकते हैं।

एनजीटी अब इस रिपोर्ट के आधार पर आगे की कार्रवाई पर विचार कर रहा है। गाजीपुर लैंडफिल की समस्या को हल करने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत पर जोर दिया जा रहा है, ताकि पर्यावरण और लोगों के स्वास्थ्य को बचाया जा सके।बात नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को 29 मार्च, 2025 को सौंपी गई कोर्ट कमिश्नर की एक ताजा रिपोर्ट में सामने आई है।

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