गंगा नदी पिछले 1,300 वर्षों के सबसे गंभीर सूखे से जूझ रही है। IIT गांधीनगर और एरिजोना विश्वविद्यालय की PNAS जर्नल में प्रकाशित स्टडी के अनुसार, 1991 से नदी का प्रवाह स्थाई रूप से घटा है – औसतन 620 घन मीटर/सेकंड (हर सेकंड 6.2 लाख लीटर) की कमी। यह 16वीं सदी के विनाशकारी सूखे से 76% अधिक गंभीर है, जिसने उत्तरी भारत में भयंकर अकाल लाया था।
1991-2020 के बीच चार बार तीन साल से अधिक लंबे सूखे पड़े, जबकि सामान्यतः ऐसे सूखे 70-200 वर्षों में एक बार आते हैं। 2004-2010 का सूखा पिछले 1,000 वर्षों में सबसे भयावह रहा। शोधकर्ताओं ने 700 ईस्वी से 2012 तक के 1,312 वर्षों के आंकड़ों का विश्लेषण किया।
कारण: जलवायु परिवर्तन, हिंद महासागर का गर्म होना, कमजोर मानसून (1951-2020 में 9.5% वर्षा कमी, पश्चिम भारत में 30%+), और भूजल का अत्यधिक दोहन। गर्मियों में भूजल योगदान 50% घटा; सदी मध्य तक 75% तक गिर सकता है।
कृषि में अकुशल सिंचाई (केवल 1/3 पानी उपयोगी) और बढ़ता प्रदूषण संकट बढ़ा रहे हैं।प्रभाव: 60 करोड़ लोगों की जल-जीविका खतरे में। 11.5 करोड़ की खाद्य सुरक्षा दांव पर। 25 वैश्विक मॉडलों में से केवल 5 ने सही अनुमान लगाया; वास्तविक संकट प्राकृतिक सीमाओं से परे।
समाधान: सटीक मॉडलिंग, जल संरक्षण, कुशल सिंचाई, क्षेत्रीय सहयोग (भारत-नेपाल-बांग्लादेश) जरूरी। बिना तत्काल कदमों के गंगा का प्रवाह और घटेगा।
