बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (बीएसपीसीबी) द्वारा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में प्रस्तुत की गई जल गुणवत्ता विश्लेषण रिपोर्ट के अनुसार, गंगा नदी का जल पीएच, घुलनशील ऑक्सीजन (डीओ), और बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) के मानकों को पूरा करता है। हालांकि, स्नान के लिए सुरक्षित आवश्यक बैक्टीरियोलॉजिकल मानकों, जैसे टोटल कोलीफॉर्म और फीकल कोलीफॉर्म, को पूरा करने में असफल है।
यह रिपोर्ट 10 अक्टूबर 2024 को एनजीटी में सौंपी गई थी, जिसमें बताया गया कि गंगा और उसकी सहायक नदियों के किनारे बसे शहरों से छोड़े गए दूषित सीवेज के कारण पानी में बैक्टीरिया का स्तर बढ़ गया है। इस संदर्भ में, बीएसपीसीबी ने 646 उद्योगों की पहचान की है जो गंगा में दूषित जल छोड़ रहे हैं। इनमें से 105 उद्योगों को अत्यधिक प्रदूषणकारी श्रेणी में रखा गया है, जबकि बाकी 541 अन्य उद्योग भी इसमें शामिल हैं।
प्रदूषणकारी उद्योगों का निरीक्षण थर्ड पार्टी एजेंसियों को सौंपा
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अत्यधिक प्रदूषण फैलाने वाले इन उद्योगों का निरीक्षण करने का कार्य थर्ड पार्टी एजेंसियों को सौंपा है। इन एजेंसियों में नेशनल शुगर इंस्टीट्यूट, आईआईटी बीएचयू, एनआईटी पटना, मुजफ्फरपुर का एमआईटी, और केंद्रीय विश्वविद्यालय दक्षिण बिहार (सीयूएसबी) शामिल हैं। रिपोर्ट के अनुसार, इन उद्योगों ने अपशिष्ट जल उपचार और निपटान के लिए अपने संयंत्र (ईटीपी) स्थापित किए हैं।
एनजीटी का आदेश और जल गुणवत्ता विश्लेषण
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने 1 मई, 2024 को एक आदेश में राज्य और जिला अधिकारियों को गंगा की जल गुणवत्ता का विश्लेषण कर रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था। ट्रिब्यूनल ने यह भी कहा था कि नमूने उन स्थानों से एकत्र किए जाएं जहां सहायक नदियां गंगा में मिलती हैं, साथ ही राज्य में नदी के प्रवेश और निकास बिंदुओं से भी नमूने लिए जाएं।
बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने गंगा में सहायक नदियों के मिलने वाले स्थानों से और नदी के राज्य में प्रवेश और निकास बिंदुओं से जल के नमूने एकत्र किए हैं। यह रिपोर्ट राज्य के सभी 38 जिलों से मांगी गई जानकारी के आधार पर संकलित की गई है और इसे बिहार सरकार द्वारा एनजीटी में प्रस्तुत किया गया है।
प्रदूषण की स्थिति पर बढ़ती चिंता
रिपोर्ट के निष्कर्ष गंगा के जल की गुणवत्ता पर गंभीर चिंताएं बढ़ा रहे हैं। भले ही गंगा का जल कुछ मानकों पर खरा उतरता है, लेकिन बैक्टीरियोलॉजिकल प्रदूषण के कारण इसे स्नान या अन्य उपयोगों के लिए सुरक्षित नहीं माना जा सकता। विशेषज्ञों का मानना है कि गंगा के किनारे के शहरों से सीवेज के सही निपटान के लिए और सख्त कदम उठाने की जरूरत है।