Forest Crisis In India : भारत ने 1,488 वर्ग किलोमीटर ‘अनवर्गीकृत जंगल’ खो दिए हैं, जो स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट (SOFR) 2023 के आंकड़ों से सामने आया है। ये जंगल सरकारी स्वामित्व वाले हैं, लेकिन इन्हें अधिसूचित नहीं किया गया है। इनमें से कई राजस्व विभाग, रेलवे और अन्य विभागों के अधीन आते हैं।
रिपोर्ट में असंगतियां और सवाल
विशेषज्ञों ने रिपोर्ट में इन जंगलों के नुकसान पर सफाई न देने पर सवाल उठाए हैं।
‘जंगल क्षेत्र’ और ‘जंगल कवर’ का अंतर:
- जंगल क्षेत्र: सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज जंगल भूमि।
- जंगल कवर: वह भूमि जहां 1 हेक्टेयर या उससे अधिक क्षेत्रफल में 10% या अधिक छतरी घनत्व है। इसमें बाग, बांस और ताड़ शामिल हैं।
केरल की वन विभाग की पूर्व प्रमुख प्रकृति श्रीवास्तव ने कहा, “रिपोर्ट में ‘जंगल क्षेत्र’ और ‘जंगल कवर’ के बीच कोई तालमेल नहीं है। इससे पता चलता है कि 1,488 वर्ग किलोमीटर जंगल गायब हैं।”
रिपोर्ट में गंभीर विसंगतियां
- ओडिशा:
- 1999 में ‘अनवर्गीकृत जंगल’ 17 वर्ग किलोमीटर था।
- 2001-2015 के बीच यह बढ़कर 16,282 वर्ग किलोमीटर हो गया।
- 2017 और 2023 में इसे फिर से सिर्फ 22 वर्ग किलोमीटर दिखाया गया, लेकिन इसका कोई कारण नहीं बताया गया।
- उत्तर प्रदेश:
- 1995-1999 के बीच 13,739 वर्ग किलोमीटर से घटकर 2001 में सिर्फ 3,323 वर्ग किलोमीटर रह गया।
- अन्य राज्य: हिमाचल प्रदेश, गोवा, पश्चिम बंगाल और झारखंड में भी इसी तरह के उतार-चढ़ाव दर्ज किए गए।
स्थायी निर्माण और जंगलों का नुकसान
संरक्षण शोधकर्ता कृतिका संपथ ने कहा, “डैम, सड़कें और रेलवे जैसे निर्माणों के कारण जंगल हमेशा के लिए खत्म हो जाते हैं, लेकिन उन्हें रिकॉर्ड में ‘जंगल’ के रूप में ही रखा जाता है, जिससे आंकड़े गलत दिखते हैं।”
गलत आकलन से फूला हुआ आंकड़ा
- पेड़ों के प्रकार:
- रिपोर्ट में आम (13.25%) और नारियल (4.37%) को जंगल कवर में शामिल किया गया है।
- रुबर, सुपारी, चाय-कॉफी के बागानों के पेड़ और विदेशी प्रजातियां जैसे यूकेलिप्टस और एकेशिया भी इसमें जोड़ी गई हैं।
- बांस का मुद्दा:
- 1927 के भारतीय वन अधिनियम के अनुसार, बांस को पेड़ नहीं माना जाता।
- फिर भी 2023 की रिपोर्ट में इसे ‘जंगल कवर’ में शामिल किया गया।
विशेषज्ञों की चिंता
- प्रerna सिंह बिंद्रा ने कहा, “आम, नारियल और अन्य बागों को जंगल कवर में शामिल करना गलत है। यह डेटा को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करता है।”
- प्रकृति श्रीवास्तव ने कहा, “ये क्षेत्र न तो जैव विविधता के लिए सहायक हैं और न ही वन्यजीव संरक्षण के लिए। इन्हें जंगल कवर में गिनना अनुचित है।”
समाधान की आवश्यकता
विशेषज्ञों ने इस रिपोर्ट को अधिक पारदर्शी और वैज्ञानिक तरीके से तैयार करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि सही आकलन से जंगल कवर और पेड़ कवर में बड़ी गिरावट दिखेगी, जिसे वर्तमान रिपोर्ट छुपा रही है।
भारत को अपने जंगलों की सही स्थिति जानने और उन्हें बचाने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है।