ISFR 2023 Report : वन सर्वे ऑफ इंडिया (FSI) की 18वीं द्विवार्षिक रिपोर्ट ‘इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट (ISFR) 2023’ 21 दिसंबर को जारी की गई। रिपोर्ट के अनुसार, देश का 21.76% भूभाग वनों से ढका है, जो वैश्विक मानक 33% से काफी कम है। पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने दावा किया कि यदि 3.41% पेड़ आवरण (Tree Cover) को भी शामिल किया जाए, तो कुल हरित क्षेत्र 25.17% तक पहुंचता है। उन्होंने यह भी कहा कि 2021 से 2023 के बीच 1,445.81 वर्ग किमी वन क्षेत्र जोड़ा गया है।
वन क्षेत्र के आंकड़ों पर सवाल
कई पर्यावरणविदों ने रिपोर्ट के इन आंकड़ों को “भ्रामक” और “अधूरी सच्चाई” बताया है।
वन क्षेत्र की परिभाषा
रिपोर्ट में ‘वन आवरण’ को परिभाषित किया गया है:
“ऐसे सभी क्षेत्र, जो 1 हेक्टेयर या उससे बड़े हैं और जिनमें 10% या उससे अधिक पेड़ों की छतरी है। इसमें बांस, नारियल, और बाग-बगीचे भी शामिल हैं, भले ही उनकी कानूनी स्थिति या स्वामित्व कुछ भी हो।”
यह परिभाषा मुख्य विवाद का कारण बनी है।
हकीकत में मामूली बढ़ोतरी
रिपोर्ट के अनुसार, 156.41 वर्ग किमी वन क्षेत्र जोड़ा गया, लेकिन इसका 95% (149.13 वर्ग किमी) संरक्षित वन क्षेत्र के बाहर है। इसका मतलब यह है कि यह वृद्धि असल वनों में नहीं, बल्कि अन्य क्षेत्रों में हुई है।
इसके अलावा, रिपोर्ट में उपयोग किए गए मानचित्र (granular data) सार्वजनिक नहीं किए गए, जिससे पर्यावरणविद रिपोर्ट को “जमीनी हकीकत से मेल नहीं खाती” कह रहे हैं।
विवादित वृद्धि
विशेषज्ञों का दावा है कि जो क्षेत्र वनों के रूप में गिने गए हैं, उनमें ज्यादातर “कमर्शियल प्लांटेशन” (बांस, नारियल के पेड़ और बागान) हैं। ये असली वनों की तरह जैव विविधता का समर्थन नहीं करते।
खोया गया वन क्षेत्र
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2021 से 2023 के बीच 1,488 वर्ग किमी ‘अनवर्गीकृत वनों’ (Unclassed Forests) का नुकसान हुआ। लेकिन ISFR 2023 में इस पर कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई।
‘पेड़ आवरण’ के आंकड़ों पर विवाद
रिपोर्ट कहती है कि 1,445.81 वर्ग किमी नए वन क्षेत्र में से 1,289 वर्ग किमी ‘पेड़ आवरण’ में जोड़ा गया। ‘पेड़ आवरण’ को परिभाषित किया गया है:
“ऐसे पेड़, जो संरक्षित वन क्षेत्र के बाहर हैं और 1 हेक्टेयर से छोटे हैं। इसमें गांवों और शहरों में सड़क किनारे के पेड़ भी शामिल हैं।”
विशेषज्ञों का कहना है कि इसमें “सड़क किनारे के हाल ही में लगाए गए पेड़, यहां तक कि बांस के झुंड और छोटे-छोटे पेड़” भी शामिल हैं। ISFR 2023 ने पहली बार 5-10 सेमी मोटाई वाले पेड़ों और बांस के झुंडों को भी पेड़ आवरण में गिना है।
विशेषज्ञों की राय
केरल के पूर्व प्रमुख वन संरक्षक प्रकृति श्रीवास्तव, संरक्षण शोधकर्ता कृतिका संपत, और पूर्व राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की सदस्य प्रेरणा सिंह बिंद्रा ने कहा कि सरकार ने बांस और नारियल के बगीचों को वन क्षेत्र में गिना है। यह “गलत और बढ़ा-चढ़ाकर पेश की गई रिपोर्ट” है।
रिपोर्ट पर आगे की जरूरत
रिपोर्ट पर उठे विवाद से साफ है कि असली वनों के संरक्षण और वृद्धि पर गंभीरता से काम करना होगा।
- स्पष्ट डेटा: रिपोर्ट में उपयोग किए गए मानचित्र और वास्तविक वन क्षेत्र के आंकड़े सार्वजनिक किए जाएं।
- वन की सही परिभाषा: वनों को केवल व्यावसायिक प्लांटेशन के आधार पर नहीं गिना जाना चाहिए।
- जमीनी प्रयास: वनों के प्राकृतिक स्वरूप को बढ़ाने के लिए जैव विविधता-संवर्धन वाले कदम उठाने की जरूरत है।
वन संरक्षण और सही रिपोर्टिंग के बिना, भारत का पर्यावरणीय संतुलन और सतत विकास खतरे में पड़ सकता है।