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उत्तराखंड में फिन बया गायब: तराई का आखिरी गढ़ भी खाली, प्रजाति विलुप्ति के मुहाने पर

by kishanchaubey
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उधमसिंह नगर का तराई क्षेत्र लंबे समय तक हिमालयी फिन बया (Finn’s Weaver – Ploceus megarhynchus) का देश में सबसे प्रमुख और आखिरी बड़ा प्राकृतिक आवास माना जाता रहा है। लेकिन 2025 के मानसून सीजन में न तो हरिपुरा बांध के आसपास और न ही पूरे उत्तराखंड राज्य में इस चमकीले पीले रंग की दुर्लभ बुनकर चिड़िया की एक भी मौजूदगी दर्ज की जा सकी। पक्षी विशेषज्ञ इसे प्रजाति के स्थानीय स्तर पर विलुप्त होने का स्पष्ट संकेत बता रहे हैं।

2017 में बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (BNHS) की रिपोर्ट ने पहले ही चेतावनी दी थी कि यदि तत्काल संरक्षण कार्रवाई नहीं हुई तो भारत के तराई क्षेत्र से फिन बया हमेशा के लिए गायब हो जाएगी। आठ साल बाद वही आशंका सच होती दिख रही है।

पांच साल में शून्य तक पहुंची आबादी

उत्तराखंड वन विभाग की रिसर्च असोसिएट तनुजा ढौंडियाल पिछले पांच साल (2021-2025) से हरिपुरा बांध और आसपास के वेटलैंड्स में फिन बया की लगातार निगरानी कर रही हैं। उनके अनुसार:

  • 2021 में सबसे ज्यादा 17 नर और 10 मादा दर्ज की गईं।
  • इसके बाद हर साल संख्या तेजी से घटी।
  • 2024 में नर तो दिखे, पर एक भी मादा नहीं आई। नर पक्षी घास पर घोंसले बनाकर पंख फड़फड़ाते रहे, लेकिन मादा न आने से प्रजनन नहीं हो सका।
  • 2025 में नर-मादा कोई भी फिन बया नहीं दिखी। बौर बांध से लेकर जंगल तक हर संभावित जगह खोजी गई, एक भी घोंसला नहीं मिला।

चिंता की सबसे बड़ी बात यह है कि तनुजा ने पांच साल के अध्ययन में सैकड़ों घोंसले और कॉलोनियां देखीं, लेकिन एक भी अंडा या चूजा नहीं देख पाईं। यानी पिछले कई सालों से इस क्षेत्र में सफल प्रजनन लगभग बंद हो चुका है।

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मौसमी अनियमितता और बांध का पानी प्रबंधन

तनुजा ने मौसमी बदलाव भी दर्ज किए:

  • 2021 में जून तक बारिश न होने से पूरा क्षेत्र सूख गया था। फिन बया को दलदली मिट्टी और स्थायी पानी चाहिए।
  • 2023 में जून-जुलाई में हरिपुरा बांध क्षेत्र में बाढ़ आई, सारे घोंसले बह गए। पक्षी बार-बार नए घोंसले बना रहे थे, जैसे उन्हें हैबिटेट सुरक्षित नहीं लग रहा हो।

ये स्थितियां सिंचाई विभाग द्वारा बांध के पानी के स्तर के नियंत्रण से भी जुड़ी हैं। पानी कम होने पर स्थानीय लोग झील के तल में गेहूं की फसल उगा लेते हैं और ऊंची घास व पेड़ काट देते हैं।

हैबिटेट का तेजी से विनाश

स्थानीय बर्ड वॉचर और eBird से जुड़े राजेश पंवार बताते हैं कि रुद्रपुर, किच्छा, सितारगंज, बाजपुर समेत पूरे उधमसिंह नगर के तराई में घास के मैदान खेती में बदलते जा रहे हैं। सेमल, शीशम जैसे पेड़ सुखाकर काट दिए जाते हैं। पहले नैनीताल और हरिद्वार के तराई वेटलैंड्स में भी ये पक्षी खूब दिखते थे, अब वहां भी गायब हैं।

2017 की BNHS रिपोर्ट अब सच साबित हो रही

BNHS के पूर्व सहायक निदेशक डॉ. रजत भार्गव ने 1990 से 2017 तक देशभर में फिन बया का सर्वे किया था। उनकी रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष:

  • 2012-2017 के बीच उधमसिंह नगर में ही 84-96% तक आबादी घटी।
  • उत्तराखंड + उत्तर प्रदेश में कुल बची आबादी मात्र 200 पक्षी अनुमानित।
  • असम की एक अलग उप-प्रजाति को मिलाकर पूरे भारत में सिर्फ 500 के आसपास फिन बया बचे थे।

डॉ. भार्गव आज कहते हैं, “ये बचाने का आखिरी मौका था। जब तक सरकार की इच्छाशक्ति नहीं होगी, ये चिड़िया नहीं बचेगी।”

कौवों का हमला भी बड़ा खतरा

डॉ. भार्गव ने अपने सर्वे में देखा था कि कम संख्या होने की वजह से फिन बया कॉलोनियां जंगली कौवों के हमले का शिकार आसानी से हो जाती हैं। एक ही हमले में 8-10 अंडे और चूजे खा लिए गए थे, उसके बाद पूरी कॉलोनी खाली हो गई थी।

संरक्षण के प्रयास अब तक नाकाफी

  • BNHS ने 2017 में ही कैप्टिव ब्रीडिंग का प्रस्ताव दिया था, स्वीकार नहीं हुआ।
  • उत्तराखंड जैव-विविधता बोर्ड ने 2025 में नेचर साइंस इनिशिएटिव से नया अध्ययन कराया है। बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. एसपी सुबुद्धि कहते हैं, “रिपोर्ट आने के बाद फैसला लेंगे, सिंचाई विभाग से भी समन्वय करेंगे।”
  • वन विभाग का कहना है कि मानसून के अलावा पीले रंग की पहचान मुश्किल है, इसलिए पूरी तरह अनुपस्थिति की पुष्टि नहीं की जा सकती। लेकिन सफल प्रजनन का कोई प्रमाण भी नहीं है।

अंतरराष्ट्रीय चिंता

IUCN रेड लिस्ट में 2016 में इसे Vulnerable, 2021 में Endangered घोषित किया गया। IUCN के सीनियर अधिकारी एलेक्स बेरीमैन अगस्त 2025 में हरिपुरा आए थे। उन्होंने कहा, “मुझे एक भी फिन बया नहीं दिखी। अगर नेपाल सहित अन्य क्षेत्रों से भी यही डेटा आया तो हम संरक्षण श्रेणी को Critically Endangered में बदलने के लिए तुरंत प्रक्रिया शुरू कर देंगे।”

देश के तराई क्षेत्र से फिन Canvas का चुपचाप गायब होना यह याद दिलाता है कि हम बाघ-हाथी-गैंडे पर तो ध्यान देते हैं, पर छोटी प्रजातियां बिना शोर के विलुप्त हो जाती हैं। फिन बया के पास अब शायद कुछ महीने या एक-दो मानसून ही बचे हैं।

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