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पंजाब में पराली जलाने पर जुर्माना बढ़ा, किसान बोले – समाधान चाहिए, सजा नहीं

by reporter
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केंद्र सरकार द्वारा पंजाब में पराली जलाने पर जुर्माना दोगुना करने के फैसले का किसान यूनियनों ने विरोध किया है। उनका कहना है कि सरकार किसानों को बिना समाधान के ही सजा देने पर तुली हुई है, जबकि प्रदूषण में उद्योगों, वाहनों और अन्य कारणों का भी योगदान है।

किसानों का पक्ष

भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) उग्राहां के महासचिव सुखदेव सिंह कोकरीकलां ने इस फैसले की आलोचना करते हुए कहा कि किसान अपनी मर्जी से पराली नहीं जलाते, बल्कि उनके पास विकल्प न होने के कारण मजबूरी में ऐसा करना पड़ता है। उन्होंने कहा, “जुर्माना बढ़ाने से क्या किसान डरेंगे? मुझे नहीं लगता। अगर जुर्माना 10 गुना भी बढ़ा दें, तब भी किसान इसे नहीं चुकाएंगे।” कोकरीकलां का तर्क है कि 51% प्रदूषण उद्योगों से और 25% वाहनों से आता है, लेकिन सरकार इन पर ध्यान देने के बजाय किसानों को ही दोषी ठहरा रही है।

क्या है जुर्माने की नई दरें?

अब दो एकड़ तक की जमीन पर पराली जलाने पर 2,500 रुपये की जगह 5,000 रुपये का जुर्माना लगाया गया है। इसी तरह, दो से पांच एकड़ की जमीन के लिए जुर्माना 5,000 रुपये से बढ़ाकर 10,000 रुपये किया गया है। वहीं, पांच एकड़ या उससे अधिक जमीन पर पराली जलाने पर अब 10,000 रुपये के बजाय 20,000 रुपये जुर्माना लगेगा।

किसानों की मांग: जुर्माना नहीं, मुआवजा और समाधान चाहिए

बीकेयू डकौंडा के महासचिव जगमोहन सिंह पटियाला ने कहा कि किसानों को जुर्माने से बचाने के लिए मुआवजा और पराली प्रबंधन के साधन मुहैया कराए जाने चाहिए। उन्होंने कहा, “फसलों का विविधीकरण ही असली समाधान है। पहले से परेशान किसान पर जुर्माना लगाना ठीक नहीं है। सरकार को वाहन, निर्माण और औद्योगिक प्रदूषण पर ध्यान देना चाहिए।”

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दिल्ली में प्रदूषण की स्थिति पर उन्होंने कहा कि “जनवरी में दिल्ली की हवा सबसे ज्यादा प्रदूषित होती है, जब पराली नहीं जलाई जाती। ऐसे में केवल किसानों को जिम्मेदार ठहराना गलत है।”

मजबूरी में पराली जलाते हैं किसान

किसान मजदूर मोर्चा के संयोजक सरवन सिंह पंढेर ने कहा कि किसान पराली जलाने के लिए मजबूर हैं क्योंकि राज्य सरकार द्वारा पराली प्रबंधन के लिए आवश्यक मशीनें उपलब्ध नहीं कराई गई हैं। उन्होंने कहा कि सरकार उद्योगों और वाहनों से होने वाले प्रदूषण की अनदेखी कर रही है।

आरोप – किसान आंदोलन को कमजोर करने की कोशिश

पंढेर ने यह भी आरोप लगाया कि सरकार का यह कदम किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी के लिए चल रहे आंदोलन को कमजोर करने का प्रयास है। बरनाला, संगरूर और मलेरकोटला के सहकारी समिति के अध्यक्ष अवतार सिंह तारी ने कहा कि किसान अपनी फसल बेचने के लिए मंडियों में बैठे हैं, लेकिन सरकार उन्हें मुआवजा देने के बजाय जुर्माने से दंडित कर रही है।

पराली जलाने का पर्यावरण एवं स्वास्थ्य पर प्रभाव

पराली जलाने से वायु प्रदूषण में भारी वृद्धि होती है। पराली के जलने से कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड और अन्य हानिकारक गैसें हवा में फैल जाती हैं, जिससे दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु गुणवत्ता बेहद खराब हो जाती है। वायु में छोटे-छोटे कण (पार्टिकुलेट मैटर) होते हैं, जो सांस के जरिए हमारे फेफड़ों में पहुंच सकते हैं। इससे सांस की बीमारियों जैसे अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, और हृदय रोगों का खतरा बढ़ जाता है।

पराली जलाने के अलावा वाहनों से निकलने वाला धुआं, निर्माण कार्य, पटाखों का धुआं, और प्रतिकूल मौसम की स्थितियां भी दिल्ली के प्रदूषण में योगदान देती हैं। ठंड के मौसम में धुआं और धूल वायुमंडल में नीचे की ओर फंस जाते हैं, जिससे स्मॉग की समस्या बढ़ती है।

कुल मिलाकर, किसानों का कहना है कि उन्हें पराली जलाने के लिए दोषी ठहराने की बजाय समाधान और मुआवजा दिया जाना चाहिए।

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