भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां हर मौसम में विभिन्न प्रकार के फल, सब्जियां और अनाज उगाए जाते हैं। इन दिनों एक खास फल की डिमांड तेजी से बढ़ रही है, जिसका नाम है ड्रैगन फ्रूट। पहले भारत में इसकी खेती सीमित मात्रा में होती थी, लेकिन अब किसान इसके लाभों को देखते हुए इसे उगाने के प्रति जागरूक हो रहे हैं। ड्रैगन फ्रूट की खासियत यह है कि इसके पौधे को एक बार लगाने के बाद 25 साल या उससे अधिक समय तक लगातार मुनाफा होता रहता है। इस फल की मांग भारत ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी तेजी से बढ़ रही है।
कहां होती है ड्रैगन फ्रूट की खेती
भारत में ड्रैगन फ्रूट की खेती मुख्य रूप से महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश और मिजोरम जैसे राज्यों में की जाती है। इन क्षेत्रों के किसान अब बड़े पैमाने पर ड्रैगन फ्रूट की खेती कर रहे हैं।
ड्रैगन फ्रूट की खेती का तरीका
ड्रैगन फ्रूट की खेती दो तरीकों से की जा सकती है — पौधे या बीज से। बीज से उगाने पर फल आने में 4-5 साल का समय लग सकता है, जबकि पौधे से खेती करने पर 2 साल में या उससे पहले ही फल मिलने लगते हैं।
मिट्टी और जलवायु की जरूरतें
ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए मिट्टी की गुणवत्ता बहुत उच्च होने की आवश्यकता नहीं होती। यह बलुई मिट्टी में भी उगाया जा सकता है और कम पानी में भी इसका उत्पादन संभव है। इस फल को उगाने के लिए ज्यादा धूप की भी जरूरत नहीं होती, जिससे यह देश के कई हिस्सों में सफलतापूर्वक उगाया जा रहा है।
एक एकड़ में लागत और मुनाफा
ड्रैगन फ्रूट का एक पौधा साल में 3-4 बार फल देता है। शुरुआत में एक एकड़ की खेती पर लगभग पांच लाख रुपये का खर्च आ सकता है। इसके बदले में सालाना 8 से 10 लाख रुपये तक की कमाई हो सकती है। यदि दो एकड़ में खेती की जाती है, तो सालाना कमाई 16 से 20 लाख रुपये तक पहुंच सकती है। बाजार में प्रति ड्रैगन फ्रूट की कीमत 50-60 रुपये तक होती है।
ड्रैगन फ्रूट के अन्य नाम
ड्रैगन फ्रूट को हिंदी में कमलम के नाम से जाना जाता है। मैक्सिको में इसे पिथैया, मध्य और उत्तरी अमेरिका में पिटया रोजा, और थाईलैंड में पिथाजाह कहा जाता है। इसे 21वीं सदी का चमत्कारिक फल भी माना जाता है।
इस तरह, ड्रैगन फ्रूट की खेती भारतीय किसानों के लिए एक फायदेमंद विकल्प बनता जा रहा है, जो कम निवेश में लंबे समय तक अधिक मुनाफा देने की क्षमता रखता है।