मणिपुर के तमेंगलॉन्ग जिले में 8 नवंबर को ग्यारह अमूर बाज़ों (Amur Falcons) को चुयुलुआन गांव में आज़ाद किया गया। इन्हें एक दिन पहले, 7 नवंबर को, मणिपुर के तमेंगलॉन्ग वन विभाग की टीम और स्थानीय स्वयंसेवकों द्वारा पकड़ा गया था। इन बाज़ों को पकड़ने का मकसद शोध करना था, ताकि उनकी प्रवास यात्रा और व्यवहार को समझा जा सके।
शोध कार्यक्रम का उद्देश्य
इस शोध कार्यक्रम को भारत सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अंतर्गत चलाया जा रहा है, जिसका नेतृत्व वैज्ञानिक डॉ. सुरेश कुमार (वैज्ञानिक-एफ, वन्यजीव संस्थान, देहरादून) कर रहे हैं। इस कार्यक्रम का उद्देश्य अमूर बाज़ों की प्रवास यात्रा पर नजर रखना है, ताकि इनके संरक्षण के लिए प्रभावी कदम उठाए जा सकें।
सेटेलाइट टैगिंग और रिलीज
दो अमूर बाज़ों को सेटेलाइट ट्रांसमीटर के साथ टैग किया गया। इनका नाम चुयुलुआन2 और गुआंगराम रखा गया है, जो तमेंगलॉन्ग जिले के दो महत्वपूर्ण गांवों के नाम हैं जहां अमूर बाज़ अक्सर विश्राम करते हैं। इन ट्रांसमीटरों की मदद से इन बाज़ों के उड़ान पथ और व्यवहार का अध्ययन किया जाएगा। टैगिंग की अनुमति मणिपुर के प्रधान मुख्य वन संरक्षक और मुख्य वन्यजीव वार्डन अनुराग बाजपेई द्वारा दी गई थी।
इन टैग किए गए अमूर बाज़ों को तमेंगलॉन्ग के डिविज़नल फॉरेस्ट ऑफिसर ख. हिटलर सिंह, वैज्ञानिक डॉ. सुरेश कुमार, वन अधिकारी जोएल गैंगमई और अन्य गांव के अधिकारी और वन विभाग के सदस्यों की उपस्थिति में चुयुलुआन गांव में आजाद किया गया।
अन्य अमूर बाज़ों की रिंगिंग
सैटेलाइट टैग वाले दो बाज़ों के अलावा, दो अन्य अमूर बाज़ों, जिन्हें रियांगसुनेई और लाइसना नाम दिया गया है, को पंखों पर एक रिंग के साथ चिह्नित किया गया। बाकी सात अमूर बाज़ों को भी रिंगिंग के बाद छोड़ा गया। सभी बाज़ों को बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (BNHS) की C58352 से C58362 रिंग दी गई है।
पर्यावरण और स्वास्थ्य पर प्रभाव
अमूर बाज़ों की प्रवास यात्रा महत्वपूर्ण है क्योंकि ये पक्षी हर साल लंबी दूरी तय करते हैं और अलग-अलग देशों की पारिस्थितिकी को संतुलित रखने में मदद करते हैं। ये पक्षी कीटों का सेवन करते हैं, जिससे कृषि पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
शोधकर्ताओं का मानना है कि इनके संरक्षण से जैव विविधता को सुरक्षित रखने में मदद मिलेगी। इनके आवास स्थलों की सुरक्षा से न केवल पारिस्थितिकी पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, बल्कि स्थानीय समुदायों को भी इन पक्षियों से जुड़े पर्यावरणीय लाभ मिल सकते हैं।
साथ ही, अमूर बाज़ों की ट्रैकिंग से हमें ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को समझने में भी सहायता मिलेगी। इनके प्रवास की जानकारी से जलवायु परिवर्तन से प्रभावित पारिस्थितिकी तंत्र पर शोध और संरक्षण के बेहतर तरीके ढूंढे जा सकते हैं, जो मनुष्यों और पर्यावरण दोनों के लिए लाभदायक होंगे।