हर गुजरते दिन के साथ धरती पहले से कहीं ज्यादा गर्म होती जा रही है। मार्च के महीने में भी ऐसा ही कुछ देखने को मिला जब दुनिया ने जलवायु इतिहास के अब तक के अपने दूसरे सबसे गर्म मार्च का सामना किया।
यूरोपियन कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस (C3S) की नई रिपोर्ट के अनुसार, मार्च 2025 में वैश्विक औसत तापमान 14.06 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। यह औद्योगिक काल से पहले के तापमान से 1.6 डिग्री सेल्सियस अधिक है, जो एक बार फिर डेढ़ डिग्री सेल्सियस की सीमा रेखा को पार कर गया है।
मार्च 2025: तापमान में रिकॉर्ड वृद्धि
रिपोर्ट के मुताबिक, मार्च 2025 का तापमान 1991-2020 के औसत से 0.65 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा। अब तक का सबसे गर्म मार्च 2024 में दर्ज किया गया था, जिसके मुकाबले इस साल तापमान में केवल 0.08 डिग्री सेल्सियस का अंतर रहा। वहीं, तीसरे सबसे गर्म मार्च 2016 की तुलना में इस साल तापमान 0.02 डिग्री सेल्सियस ज्यादा था।
पिछले 21 में से 20 महीनों में तापमान औद्योगिक काल से पहले के स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा है। अप्रैल 2024 से मार्च 2025 के बीच का औसत तापमान भी औद्योगिक काल से पहले के मुकाबले 1.59 डिग्री सेल्सियस और 1991-2020 के औसत से 0.71 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया।
यूरोप में सबसे गर्म मार्च
क्षेत्रीय रूप से, यूरोप ने इस साल अपने इतिहास का सबसे गर्म मार्च देखा। यहां सतह का औसत तापमान 6.03 डिग्री सेल्सियस रहा, जो 1991-2020 के औसत से 2.41 डिग्री सेल्सियस अधिक है। पूर्वी यूरोप और दक्षिण-पश्चिम रूस में तापमान में सबसे ज्यादा वृद्धि हुई, हालांकि स्पेन और पुर्तगाल के कुछ हिस्से असामान्य रूप से ठंडे रहे।
आर्कटिक, अमेरिका, मैक्सिको, एशिया और ऑस्ट्रेलिया के कुछ हिस्सों में भी तापमान सामान्य से अधिक रहा, जबकि उत्तरी कनाडा, हडसन बे और पूर्वी रूस में ठंड छाई रही।
महासागर भी उबल रहे हैं
मार्च 2025 में समुद्र की सतह का औसत तापमान 20.96 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जो इसे अब तक का दूसरा सबसे गर्म मार्च बनाता है। भूमध्य सागर और उत्तरी अटलांटिक जैसे क्षेत्र सामान्य से कहीं अधिक गर्म रहे।
आर्कटिक में समुद्री बर्फ 47 साल के रिकॉर्ड में सबसे छोटी सीमा तक सिमट गई, जो औसत से 6% कम है। यह लगातार चौथा महीना है जब बर्फ इस स्तर तक सिकुड़ी। अंटार्कटिका में भी हालात चिंताजनक हैं, जहां बर्फ औसत से 24% कम पाई गई।
मौसम की मार: बाढ़ और सूखे का कहर
मार्च में मौसम से जुड़ी चरम घटनाओं ने दुनिया को प्रभावित किया। दक्षिणी यूरोप, खासकर स्पेन और पुर्तगाल में भारी बारिश और बाढ़ ने तबाही मचाई, जबकि यूके, आयरलैंड, मध्य यूरोप, ग्रीस और तुर्किये असामान्य रूप से शुष्क रहे।
उत्तरी अमेरिका, एशिया, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिणी अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के कुछ हिस्सों में सूखे ने फसलों को नुकसान पहुंचाया। वहीं, पूर्वी कनाडा, अमेरिका के पश्चिमी इलाके, रूस, मध्य पूर्व, अफ्रीका और उत्तर-पूर्वी ऑस्ट्रेलिया में सामान्य से अधिक बारिश हुई।
प्रकृति की चेतावनी
बढ़ता तापमान, पिघलती बर्फ, उबलते महासागर और बेकाबू मौसम जलवायु परिवर्तन की कड़वी सच्चाई को उजागर करते हैं। यह प्रकृति की ओर से स्पष्ट चेतावनी है कि यदि समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो परिणाम गंभीर होंगे।
साल दर साल जलवायु के रिकॉर्ड टूट रहे हैं, लेकिन सवाल वही है- क्या हम इस चेतावनी को सुन रहे हैं या अनसुना कर रहे हैं?