2 दिसंबर 2024 को संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम सम्मेलन (UNCCD) और यूरोपीय आयोग के जॉइंट रिसर्च सेंटर ने वर्ल्ड ड्रॉट एटलस जारी किया। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि 2050 तक विश्व की 75% आबादी सूखे से प्रभावित होगी। यह रिपोर्ट रियाद में UNCCD के 16वें सम्मेलन के दौरान जारी की गई।
इस एटलस को CIMA रिसर्च फाउंडेशन (इटली), विजे यूनिवर्सिटी एम्स्टर्डम (नीदरलैंड्स) और UN यूनिवर्सिटी इंस्टीट्यूट फॉर एनवायरनमेंट एंड ह्यूमन सिक्योरिटी (जर्मनी) के साथ मिलकर तैयार किया गया है।
सूखे का व्यापक प्रभाव
एटलस ने सूखे के कृषि, ऊर्जा और व्यापार पर पड़ने वाले प्रभावों पर प्रकाश डाला है।
यूरोपीय आयोग के जॉइंट रिसर्च सेंटर के कार्यवाहक निदेशक बर्नार्ड मैगनहान ने कहा,
“सूखा सिर्फ जलवायु की समस्या नहीं है। भूमि और जल संसाधनों के गलत उपयोग से सूखा और इसके प्रभाव और गंभीर हो सकते हैं।”
सूखे को बढ़ाने वाले कारकों में अत्यधिक जल दोहन, जल संसाधनों का खराब प्रबंधन, और बिना योजना के शहरीकरण शामिल हैं।
भारत पर सूखे का खतरा
भारत, जहां 25 मिलियन से अधिक लोग कृषि क्षेत्र में कार्यरत हैं, सूखे से सबसे ज्यादा प्रभावित देशों में शामिल है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में सोयाबीन की फसल पर सूखे का बड़ा प्रभाव पड़ सकता है।
2019 में चेन्नई में आई ‘डे जीरो’ की स्थिति ने इस संकट की गंभीरता को उजागर किया।
- चेन्नई, जहां सालाना औसतन 1,400 मिमी बारिश होती है, जल प्रबंधन की खामियों और अनियंत्रित शहरीकरण के कारण सूखे जैसे हालात से गुजरा।
- बारिश के पानी को संग्रहित करने के कानून लागू होने के बावजूद, इसकी सही तरीके से अमल न होने और जलाशयों के अतिक्रमण ने भूजल स्तर को गिरा दिया।
वैश्विक चिंताएं और समाधान
2020-2023 के बीच भारत में पानी के गलत प्रबंधन के कारण कई जगह दंगे और तनाव हुए।
सब सहारा अफ्रीका इस संकट के अगले केंद्र के रूप में उभर सकता है।
रिपोर्ट में जलवायु संकट से निपटने के लिए त्वरित कार्रवाई और अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता पर जोर दिया गया है।
ड्रॉट प्रबंधन के लिए समाधान:
- डेटा की अहमियत:
सूखे का सही प्रबंधन करने के लिए पूर्वानुमान प्रणाली और डाटा मॉनिटरिंग को मजबूत करना होगा। - कृषि में सुधार:
- उपज को बचाने के लिए मिट्टी प्रबंधन और सिंचाई तकनीकों का सुधार जरूरी है।
- IDRA (इंटरनेशनल ड्रॉट रेजिलियंस एलायंस), जो 2022 में स्थापित हुआ, फंड जुटाने, ज्ञान बढ़ाने और ठोस कार्रवाई के लिए काम कर रहा है।
- नीति और भागीदारी:
- सूखे से बचने के लिए देशों को समाज-आधारित रणनीतियों को अपनाने और सभी क्षेत्रों को शामिल करने की आवश्यकता है।
- अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जल संसाधनों की साझेदारी को बढ़ावा देना होगा।
सूखा प्रबंधन के लिए सामूहिक प्रयास जरूरी
UNCCD के कार्यकारी सचिव इब्राहिम थियाव ने कहा,
“हमें जल्दी से कार्रवाई करनी होगी। सभी देशों और UNCCD के सदस्यों से आग्रह है कि वे इस एटलस की सिफारिशों पर ध्यान दें और सूखा प्रबंधन में बड़े कदम उठाएं।”
एटलस का महत्व:
एटलस सरकारों और नीति निर्माताओं को सूखा प्रबंधन के लिए एक व्यवस्थित दृष्टिकोण प्रदान करता है। यह सूखे के प्रभावों को आपस में जुड़े क्षेत्रों के माध्यम से समझने और प्रभावी समाधान की ओर बढ़ने का मार्गदर्शन देता है।
“समाज, सरकार और व्यवसायों को मिलकर काम करना होगा ताकि सूखे के प्रभावों को कम किया जा सके और भविष्य में जलवायु से जुड़े खतरों के लिए तैयारी की जा सके।”