Drone: ड्रोन तकनीक भारतीय जंगलों में संरक्षण के काम में क्रांतिकारी बदलाव ला रही है। इनका उपयोग वन्यजीवों पर नजर रखने, जंगल की आग का पता लगाने, आक्रामक प्रजातियों की पहचान करने और मानव-पशु संघर्ष को कम करने के लिए किया जा रहा है। हालांकि, इस तकनीक को व्यापक रूप से अपनाने में कई बाधाएं हैं, जैसे कि कम बैटरी लाइफ, ऊंची लागत, बजट की कमी, सख्त नियम और प्रशिक्षित कर्मचारियों की कमी।
ड्रोन के उपयोग के प्रमुख उदाहरण
1. असम: बाढ़ के दौरान मिट्टी के कटाव की निगरानी
2023 में असम में आई बाढ़ के दौरान काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में ड्रोन का इस्तेमाल किया गया।
चार रोटर वाले क्वाडकॉप्टर ड्रोन ने कोहारा रेंज में मिट्टी के कटाव का आकलन किया।
इससे बाढ़ के बाद सड़क नेटवर्क को सुधारने और जानवरों की निगरानी में मदद मिली।
काजीरंगा के डीएफओ अरुण विग्नेश ने बताया कि बाढ़ के दौरान मैन्युअल निगरानी मुश्किल होती है, इसलिए ड्रोन बेहतर विकल्प साबित हुए।
2. मध्य प्रदेश: जंगल की आग पर नजर: पन्ना बाघ अभयारण्य में 2017 से ड्रोन के उपयोग ने जंगल की आग की घटनाओं को आधा कर दिया।
ड्रोन न केवल आग वाले क्षेत्रों की पहचान करते हैं, बल्कि इससे तत्काल उपायों में मदद मिलती है।
WII के इंजीनियर शशांक सावन ने कहा कि मानवीय गतिविधियों पर नजर रखने से आग की घटनाओं में कमी आई है।
3. तमिलनाडु: नीलगिरी तहर की आबादी की गणना: नीलगिरी तहर, जो समुद्र तल से 300 से 2800 मीटर की ऊंचाई पर रहता है, की निगरानी ड्रोन से की जा रही है।
प्रोजेक्ट नीलगिरी तहर के निदेशक एम.जी. गणेशन ने बताया कि ड्रोन ने तहर के लिंगानुपात, आबादी और परिदृश्य को समझने में मदद की।
4. ड्रोन से जुड़े फायदे: जंगल की आग की रोकथाम: ड्रोन आग वाले क्षेत्रों की सटीक जानकारी देते हैं।
आक्रामक प्रजातियों की पहचान: ड्रोन से जंगल में हानिकारक प्रजातियों को आसानी से ट्रैक किया जा सकता है।
मानव-पशु संघर्ष कम करना: ड्रोन वन्यजीवों की गतिविधियों पर नजर रखते हैं, जिससे संघर्ष को रोका जा सकता है।
5. ड्रोन से जुड़ी चुनौतियां
कम बैटरी लाइफ और सीमित उड़ान समय: असम में इस्तेमाल किए गए क्वाडकॉप्टर सिर्फ 35 मिनट तक उड़ सकते हैं।
छोटे ड्रोन 40 मिनट बाद बेस पर लौट आते हैं।
लंबी दूरी वाले ड्रोन महंगे हैं, इसलिए वन विभाग इन्हें कम उपयोग करते हैं।
6. महंगे उपकरण: वीटीओएल (वर्टिकल टेक-ऑफ और लैंडिंग) ड्रोन 20 लाख रुपये तक के होते हैं।
अधिकतर वन विभाग बजट की कमी के कारण सस्ते क्वाडकॉप्टर का इस्तेमाल करते हैं।
7. प्रशिक्षण और जागरूकता की कमी: कई वन अधिकारी ड्रोन तकनीक को अपनाने को लेकर अनिच्छुक हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि अधिकारियों की सोच बदलने और उन्हें प्रशिक्षित करने की जरूरत है।
8. अपर्याप्त संख्या: काजीरंगा जैसे बड़े क्षेत्र (1,500 वर्ग किमी) के लिए केवल तीन ड्रोन उपलब्ध हैं।
नीलगिरी तहर परियोजना में सात माइक्रो ड्रोन का इस्तेमाल किया जा रहा है, जो पर्याप्त नहीं है।
9. ड्रोन तकनीक को और बेहतर बनाने के सुझाव
उन्नत ड्रोन का उपयोग:
वीटीओएल ड्रोन लंबी उड़ान और बड़े क्षेत्र की निगरानी में सक्षम हैं।
इनका उड़ान समय 1 से 10 घंटे तक हो सकता है।
नीतिगत सुधार: बजट बढ़ाने और ड्रोन की खरीद के लिए ठोस नीतियां बनानी होंगी।
वन विभाग को विशेष प्रशिक्षित टीम बनानी चाहिए।
साझेदारी और सहयोग: ड्रोन की जरूरत को पूरा करने के लिए अन्य संस्थानों के साथ सहयोग करना चाहिए।
उदाहरण: पंचायती राज मंत्रालय ने मानचित्रण के लिए 500 से अधिक वीटीओएल ड्रोन खरीदे हैं।
जागरूकता अभियान: अधिकारियों को ड्रोन के फायदों के बारे में जागरूक किया जाए।
सफलता की कहानियां साझा करने से सोच में बदलाव लाया जा सकता है।